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डॉ. अम्बेडकर: असहमति की निडर आवाज और सामाजिक पुनर्निर्माण के शिल्पी- डॉ. सदानंद दामोदर सप्रे

सागर। डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर में भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 134वीं जयंती के अवसर पर डॉ. अम्बेडकर उत्कृष्टता केंद्र एवं डॉ. अम्बेडकर चेयर के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय के अभिमंच सभागार में डॉ. अम्बेडकर: लोकतांत्रिक चेतना और सामाजिक न्याय के सर्वकालिक स्वर विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात सामाजिक चिंतक डॉ. सदानंद दामोदर सप्रे रहे, जबकि इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. अशोक अहिरवार विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने की.
कार्यक्रम का औपचारिक शुभारंभ डॉ. अम्बेडकर, डॉ. हरीसिंह गौर, महात्मा बुद्ध तथा माँ सरस्वती के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
मुख्य अतिथि डॉ. सप्रे ने डॉ. अम्बेडकर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा अध्ययन के प्रति समर्पण के बल पर असाधारण उपलब्धियाँ अर्जित कीं. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक शोध में उन्हें मानवता के ‘मेकर्स ऑफ यूनिवर्स’ की सूची में स्थान दिया गया. उन्होंने कहा कि डॉ. अम्बेडकर केवल संविधान निर्माता ही नहीं थे, बल्कि दलितों सहित सम्पूर्ण समाज के उद्धारक, प्रखर दूरदृष्टा और निडर विचारक थे।
डॉ. सप्रे ने यह भी कहा कि डॉ. अम्बेडकर ने समाज को यह संदेश दिया कि असहमति को साहस और निडरता के साथ, विधिसम्मत मार्ग से अभिव्यक्त किया जाना चाहिए. उनके अनुसार, अम्बेडकर के तीन प्रमुख गुरु कबीर, बुद्ध और महात्मा फुले रहे, जिनसे उन्होंने समरसता, विवेक और सामाजिक न्याय की प्रेरणा ली।
विशिष्ट अतिथि प्रो. अशोक अहिरवार ने अपने वक्तव्य में कहा कि डॉ. अम्बेडकर ने आजीवन वंचित वर्गों सहित समाज के प्रत्येक वर्ग के अधिकारों की पैरवी की. वे केवल समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि उच्चकोटि के विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और संवैधानिक विचारक भी थे. उनका जीवन संघर्ष और उपलब्धियों का अद्भुत संगम है, जो आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत है. उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. अम्बेडकर के जीवन में प्रतिशोध का नहीं, बल्कि सुधार और समरसता का भाव था. उन्होंने जातिवाद और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष कर समाज को संगठित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर की जयंती केवल एक तिथि नहीं, बल्कि उनके विचारों, सद्भावना, समरसता और दूरदृष्टि को आत्मसात करने का अवसर है. उन्होंने बताया कि आज भी डॉ. अम्बेडकर को उतनी ही ऊर्जा, सम्मान और आत्मीयता से याद किया जाता है, जितनी उनके जीवनकाल में थी. डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक योगदान ने भारत में सामाजिक न्याय एवं समावेशी समाज की नींव रखी. उन्होंने उल्लेख किया कि आज देशभर में अनेक भवन, संस्थान और लगभग 15 विश्वविद्यालय डॉ. अम्बेडकर के नाम पर संचालित हैं, यह उनकी असाधारण प्रतिभा, योग्यता और जीवटता का प्रतीक है।
कार्यक्रम में प्रो. चंदा बेन, समन्वयक, डॉ. अम्बेडकर उत्कृष्टता केंद्र ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया तथा उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र यादव ने मुख्य अतिथि का परिचय कराया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. वीरेंद्र मटसेनिया द्वारा एवं आभार प्रदर्शन प्रो. राजेश गौतम द्वारा किया गया.
इस अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा अम्बेडकर जयंती के उपलक्ष्य में पिछले पाँच दिनों से आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए. कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता द्वारा संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक वाचन भी कराया गया।
कार्यक्रम में कुलसचिव डॉ. सत्य प्रकाश उपाध्याय, प्रो. अजीत जायसवाल, प्रो. सुशील कासव, प्रो. के.एस. पित्रे, सुनील देव जी, क्षेत्र संपर्क प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, डॉ. सतीश कुमार, डॉ. देवेंद्र विश्वकर्मा, अनिल अवस्थी, संदीप जैन, ऋषि मिश्र, नलिन जैन, प्रदीप तिवारी, संदीप तिवारी, डॉ. श्वेता नेमा, मनीष यादव, नीरज उपाध्याय, करण बहादुर, प्रो. अमर जैन, आशीष द्विवेदी, रामबाबू सहित विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, कर्मचारी, छात्र एवं बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।


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