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सागर । आर्थिक विकास के लिए बदलाव में महिलाएं अपनी दृढ़ता और नेतृत्व के माध्यम से असाधारण सफलताएँ हासिल कर रहीं हैं। आदिवासी महिलाओं जो स्वसहायता समूहों के माध्यम से प्राकृतिक फूलों और पत्तियों से हर्बल रंग और गुलाल बना रही हैं और अपने जीविकोपार्जन के लिए नित नए कामों को अंजाम दे रही है। आजीविका मिशन के अंतर्गत इन महिलाओं ने अपने पारंपरिक ज्ञान और सामग्री का उपयोग करके हर्बल रंगों के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया है। ये महिलाएं न केवल अपने लिए आय के नए स्रोत सृजित कर रहीं हैं, बल्कि पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी निवर्हन कर रही हैं।

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होली का त्यौहार नजदीक आ रहा है रंगों के इस त्यौहार में लोग जम कर रंग गुलाल का इस्तेमाल करते है। बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त रंगों तथा गुलाल से लोगांे को विभिन्न प्रकार के त्वचीय रोग होने की संभावना रहती है, इसलिए बाजार में अब हर्बल रंग तथा गुलाल की मांग बढ़ने लगी है। लोगो की इसी मांग को ध्यान में रखते हुए सागर जिले की आजीविका मिशन स्वसहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं इन दिनों हर्बल रंग गुलाल बनाने लगी है। सागर जिले की राधारानी गौ शाला का संचालन कर रही लक्ष्मी स्व-सहायता समूह की आदिवासी महिलाएं अपनी आजीविका के लिए नए नए काम करती है और यह महिलाएं पिछले साल से होली के अवसर पर प्राकृतिक फूलों वनस्पतियों से गुलाल और रंग बना रही है।

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महिलाओं ने बताया कि वह टेसू सेमल के फूलों स्थानीय वनस्पति के फूलों पेड़ की पत्तियों को सुखाकर पीसकर उनसे यह रंग तथा कृत्रिम गुलाल तैयार करती है तथा उन्हें पैक कर आजीविका मिशन सागर के माध्यम से वह बिक्री करती है, इनका यह रंग गुलाल केमिकल फ्री होने से लोगो को पसंद आता है तथा इसके प्रयोग से मानव त्वचा तथा मानव अंगों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता।

आजीविका मिशन के विकासखंड प्रबंधक ने बताया कि यह आदिवासी महिलाएं पिछले 4 वर्षों से राधारानी गौशाला का सफल संचालन कर रही है पर्यावरण संरक्षण के लिए तथा वनों को कटाई से बचाने के प्रयास के तहत गोबर से गौ कास्ट, कंडे तथा होली में उपयोग होने वाली माला बनाती है इसके साथ पिछले वर्ष से यह हर्बल रंग गुलाल भी बना रही है। इनके द्वारा बनाए सभी उत्पाद लोगों को पसंद आते है और इनकी बिक्री से इनको आय की प्राप्ति होती है।


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