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आर के तिवारी-सागर
कहते हैं!कभी-कभी काली खोपड़ी वाले के दिमाग को तो वह भगवान भी नहीं समझ पाता जिसने इसे बनाया है।

एक दिन एक राज्य के बड़े शहर में किसी काली खोपड़ी वाले ने “अफवाह” फैला दी कि शहर के हृदय स्थल के पास जो खाली जगह पड़ी है! उस पर जो भी जितनी जगह घेर सके उसे उतनी जगह का पट्टा मात्र एक रुपए में मिल जाएगा बशर्तेे वह व्यक्ति गरीब हो!
तो भैया! शहर के चारों ओर से लोग गैती, फावड़ा जो जिसके हाथ लगा हँसिया, सबल कुछ भी लेकर वहाँ भागा जा रहा था।
यह सब किसे अच्छा नहीं लगता! यह काम मुफ्त में रेवडी मिलने जैसा और कौड़ियों के दाम हीरे जैसी कीमती जगह मिल रही थी।
सो भैया मैं भी भागा-भागा वहाँ गया। मैंने देखा सैकड़ों आदमियों ने फुटपाथ पर जिसे जितनी जगह मिल सकी उसने उतनी जगह खोदकर अपना कब्जा ठोक दिया।
मैंने भी एक छोटा सा टुकड़ा खोदा और इत्मीनान से जैसे विजय प्राप्त कर ली हो उसी जगह पर खड़ा हो गया।
यह खबर बिजली की तेजी से प्रशासन तक पहुंच गई। आनंद-फानन में जिला कलेक्टर साहब,एस पी साब, नगर विधायक और निगम महापौर भी वहाँ पहुंच गए! साथ में पुलिस भी थी। एस पी ने पहुंचते ही कड़क आवाज में सभी से कहा यह क्या हो रहा है? बंद करो यह सब! मैं इतनी बड़ी पुलिस फोर्स देख घबरा गया।
प्रशासनिक अधिकारियों को हक्का-बक्का डरा सा देख चुप-चाप एक ओर खड़ा हो गया! फिर भी मैंने हिम्मत करके कहा साहब किसी ने कहा यहाँ की जमीन गरीबों को एक रुपए में पट्टे पर दी जा रही है, इसलिए जिसे जितनी चाहिए वह जमीन पर अपना कब्जा कर ले!
मेरी बात सुनकर कलेक्टर साहब गुस्से में मुझसे बोले पागल हो क्या तुम!एस पी साब बोले यह खबर किसने फैलाई बोलो!अब कौन कहे अरे पता हो तो बतलाया भी जाए। वहाँ सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे! किसी को कोई जवाब समझ नहीं आ रहा था पता हो तो बोले। तब नगर विधायक बोले ऐसा कहीं सुना है? ऐसी कीमती जगह एक रुपए में कहीं मिल रही है? तभी हमारे बीच से एक सज्जन बोले बाद में पता चला उनका नाम रामलाल था। बोले हाँ साब सुना है! शहर की कई बड़ी-बड़ी जगहें गरीबों को,धर्मार्थ कार्य को, सेवा कार्य को इसी तरह एक रुपए यानी दान स्वरूप दी जा रही हैं तो हमने भी सोचा जब बड़ी-बड़ी जगह पहाड़ियाँ बिक रहीं हैं, मैदान तो अब है नहीं। अब सभी जगह पर कुछ ना कुछ निर्माण हो चुके हैं। घरों की छतें तक बिक रहीं हैं। नालों पर निर्माण हो गए हैं। नदी तालाब छोटे हो गए हैं मरघट की जगह छोटी हो गईं हैं। तो हम लोगों को लगा शायद हम गरीबों को भी धंधे पानी के लिए,परिवार के भरण पोषण के लिए थोड़ी जगह सरकार दे रही है! इसलिए ही किसी ने यह हल्ला पूरे में फैला दिया। रामलाल जी की बातें सुनकर वहाँ खड़े सारे प्रशासनिक अधिकारी,विधायक,महापौर एक दूसरे का मुंह देखने लगे। तब एस पी नर्म मिजाज में हमसे बोले नहीं-नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है।
खबर झूठी है आप लोगों के साथ किसी ने बड़ा गंदा मजाक किया है। जाइए आप सब अपने-अपने घर जाइए। तभी उनकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी तो वे उससे बोले अरे! तुम भी? तुम कब से गरीब हो गए? तब मैं बोला साब इनकी तरह यहाँ बहुत से लोग हैं जो रातों रात गरीब बन गए। गरीब क्या! अति गरीब बन गए। अब सरकारी रेवड़ी जो खाना थी। अभी क्या है! अभी तो कुछ लोग और आने वाले हैं। आप देखिए! अभी जो कुछ लोग कचहरी पर ऐफीडेबिट देकर,लाइन लगाकर गरीबी रेखा का सर्टिफिकेट बनवा रहे हैं और जिनके प्रतिनिधि यहाँ कब्जा किये हैं।
मजे की बात देखिये साब! ये वो लोग हैं जो कल तक गरीबों से दूरी बनाये थे कल तक वे गरीबों के मसीहा कहलाते थे पर आज वे अति गरीब का सार्टिफिकेट बनवा रहें हैं। ये बात अलग है कि वहाँ गये जरूर पच्चीस लाख की गाड़ी से हैं।
अब जहाँ देखो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं अभी अखबार में प्रकाशित एक खबर पढ़ी थी कि सरकार हर विभाग में के वाय सी करा रही है जिसमें कितने ही फर्जी बाड़ा सामने आ रहे हैं।
लाखों लोग तो जो वर्षो से गरीबी रेखा के नीचे का सस्ता और मुफ्त का राशन ले रहे थे उन्होंने के वाय सी नहीं कराई पता चला कुछ मर गये जिनके नाम का राशन बाक़ायदा लिया जाता रहा।
अभी और भी फर्जी बाड़ा सामने आयेंगे जिनसे सरकार को करोडों का चूना लगता आया है।
मेरी बात सुनकर वहाँ खड़े सभी अफसर एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
तब एस पी साब ने डांटते हुए कहा बस लोगों को मुफ्त का मिल जाये फिर लूट मार मच जाती है।
उसके लिए कागजों में नाम पता और जाती तक बदल जाती है। बस फायदा कहाँ है वह देखा जाता है। जिस लाभ के लिए जितनी उम्र चाहिए उतनी लिखा लेते हैं।
जिन्दा को मृत और मृत को जिन्दा दिखा देते हैं।
कुछ लोग तो यही देखते रहते हैं कि कहाँ मुफ्त का मिल रहा है फिर चाहे भण्डारा हो सो खायेंगे और प्रसाद के नाम पर बांध कर घर ले जायेंगे।
मैं एस पी साब की बातें सुन रहा था और समझ भी रहा था कि कह तो वे सही रहे हैं।
तभी वे फिर बोले जाईये आप लोग जाईये नहीं तो मुझे सख्ती से काम लेना होगा।
मैंने अपनी इज्जत को बचाना उचित समझा और वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाना ही ठीक समझ और लोगों की तरह वहाँ से वापिस घर को लौट आया।
घर आकर सोचने लगा ये काली खोपड़ी वाला कुछ भी कर सकता है काला पीला तो वर्षो से करता आ रहा है। दो नम्बर का धन्धा पुरानी बात हो गई अब तो पता नहीं कितने नम्बर का धन्धा चल रहा होता है। हेरा फेरी की तो बात ही न करो!कब किसको चूना लगा दे!कब किसका गड़ा हुआ धन खुदवा दे!कब सोने को दो गुना कर दे कहा नहीं जा सकता!गिरगिट की तरह कब रंग बदल ले उड़ती चिड़िया को पहचानने में वह माहिर है। कब किसे राजा बना दे राजा को रंक बना दे कहा नहीं जा सकता।
वह चाहे तो एक अफ़वाह में किसी पहाड़ी पर बस्ती बसा दे।
कभी सुना था इसी तरह की झूठी अफवाहों की दम पर हिन्दू मुस्लिम झगड़े करा कर कितने ही वर्षो तक अंग्रेजों ने हमारे ऊपर शासन किया।
वैसे आज भी यही सब चल रहा है अपने फायदे के लिए कुछ भी अफवाह फैला दो कल कोई पूछे भी कि किसने कहा तो यही एक जबाब पता नहीं किसने कहा था।
कहते हैं कभी-कभी इस काली खोपड़ी वाले को तो भगवान भी नहीं समझ पाता जिसने इसे बनाया है।
समाप्त


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