आर के तिवारी
सागर
आँख मींच कर गुणगान नहीं करना चाहिए सोच समझकर करना चाहिए जो जितने सम्मान का हक दार हो उसे उतने ही सम्मान से नवाजा जाना चाहिए।
इतना नहीं कि चार लोगों ने किसी की मिथ्या तारीफ कर दी और आपने बिना कुछ सोचे समझे बिना कुछ पड़ताल किये उन चार लोगों के कथन में चार चाँद लगा दिए।
वह सब सही है या नहीं? यार! जो समझते हैं कि इतनी तारीफ के लायक वह व्यक्ति नहीं है तो उनकी नजर में जहाँ वह व्यक्ति जिसका सम्मान हो रहा है वह तो स्वार्थी है ही पर आप भी मूर्ख और चापलूस समझ आते हैं।
अत्याधिक प्रशंसा व दोषपूर्ण टिप्पणी।
अब अत्याधिक प्रशंसा में अधिकांश बार देखने को मिलता है एक दूसरे की प्रशंसा में कोई कसर नहीं रखते और प्रंशसा सुनने वाला मधुर-मधुर मुस्कुरा देता है जिसका अभिप्राय ही यही होता है कि उसके बारे में जो बखान किया जा रहा है वह सब कुछ सत्य है।
फिर चाहे उसे भले ही एक जिले से दूसरे जिले में नहीं जाना जाता हो पर उसे राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाने वाला कहा जाता है।
राजनैतिक पार्टियों में अपने लाभ के लिए तो लोग अपने नेता को आज का मसीहा तक कहने लगते हैं फिर चाहे मसीहा का अर्थ भले ही न समझें।
कभी-कभी तो किसी-किसी की इतनी प्रशंसा होती कि कार्य क्रम के दौरान सभा कक्ष में बैठे उस सम्मान के सही हक़दार होते हैं जिन्हें वास्तव में दूर-दूर तक जाना जाता है। राजनैतिक क्षेत्र में जिसका दबदबा रहता है जो पद का सही हक़दार रहता है जिस पर आज कोई दूसरा बैठा होता है। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में जिनके शिष्य वर्ग की लम्बी लिस्ट भी होती है वह मुँह मसोसकर रह जाते हैं पर कहता कोई कुछ नहीं।
अब यह प्रथा चल पड़ी है कि
एक कवि दूसरे को महाकवि या युग कवि के संबोधन से नवाजते हैं।
किसी की रचना को तुलसीदास की तरह, सूरदास की तरह तो कोई कबीर दास जी की तरह कहे जाते हैं।
किसी को महिला वर्ग की चिन्ता करने वाला सबसे बड़ा लेखक तो किसी को प्रेमचंद के समान तक कह दिया करते हैं।
कभी-कभी तो किसी के लिए अतिश्योक्ति इतनी कि उसके लिये कृष्ण युग राम युग की किसी घटना से जोड़ कर महान बनाने की पुरजोर कोशिश की जाती है! ज़रूरत पड़े तो ये करेला और नीम को भी शक्कर से भी मीठा कहने से न चूकें।
परन्तु वो भूल जाते हैं कि हमारा समाज उन्हें ध्यान से सुनता है। यह बात अलग है कि वह कहता भले ही कुछ नहीं पर यहाँ-वहाँ नुक्कड़ सभायें और काना फूसी तो कर ही लेता है और इसी बहाने अपनी आपत्ति दर्ज कर दिया करता है।
इसमें तारीफ करने वालों को और अपनी तारीफ़ सुनने वालों को सतर्कता बरतनी चाहिए।
हमारी जानकारी में ऐसे कितने ही राजनेता,समाज सेवक हुए जिनका इतिहास देखा जाये तो उनकी प्रंशसा में एक अध्याय लिखा जाये।
साहित्य के क्षेत्र में देखें तो ऐसे ऐसे साहित्य कार हुये जिनके सम्मान में हम नतमस्तक हो जायें पर उनकी प्रशंसा तो दूर उनको याद तक नहीं किया जा रहा है।
कितने ही साहित्य कार लेखक कवि हैं जिनको समाज़ के सामने लाने वाला नहीं मिला उनके लिखे साहित्य! नाम की तरह दब कर रह गये और कुछ लोग मिथ्या गुणगान करा कर राष्ट्रीय स्तर पर चमकने लगे हैं। कुछ तो न जाने कितनी ही काल्पनिक उपाधियों से भी विभूषित किये जाते हैं।
कभी किसी के नाम के सहारे अपने को स्थापित करने वाले मौका देख उसके नाम को ही नहीं दरकिनार करते हैं बल्कि कभी उससे कुछ सीखा भी है न उसका जिक्र करते हैं और न उसको याद करते हैं।
दोषपूर्ण टिप्पणी भी करने से भी बचना चाहिए पर देखने में आता है किसी पर भी अपने स्वार्थ के लिए दूसरे पर दोषपूर्ण टिप्पणी करने से नहीं चूकते। यहाँ भी अपने आपको अधिक ज्ञानी और साफ़ सुथरा दिखलाने के लिए दोष न होते हुए भी दोष निकाल दिया करते हैं पर वे यह भूल जाते हैं कि जो दोष वे निकाल रहे हैं उन दोषों को वहाँ उपस्थित अन्य लोग भी देख सुन रहे हैं वे भी समीक्षा करेंगे तब हो सकता है जो दोष आपने निकाले वे दोष हों ही नहीं!
आज अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए मिथ्या गुणगान करने की प्रवृति से न कोई विभाग बचा है न कोई क्षेत्र चारों ओर यही सब चल रहा है।
