सागर/आर के तिवारी
बाबूजी ये आपकी अंगूठी! मुकेश ने पीछे मुड़कर देखा वह एक लड़की थी जिसका गोरा रंग पर चेहरा दुख और गरीबी के कारण मैला और मलीन दिख रहा था I जो अपने हाथ में अंगूठी लिए उससे कह रही थी बाबूजी ये आपकी अंगूठी यहाँ गिर गई थी।
मुकेश उससे रूखे स्वर में बोला अब यह मेंरे काम की नहीं इसे तुम ही रख लो जिस पर वह बोली मैं क्यों रख लूँ! आपकी है आप ही रखें। जिस पर मुकेश बोला इसे मैंने ही फैंका था।
तब लड़की जिसका नाम किरण था बोली अरे बाबू जी यह तो बहुत कीमती है और आप कह रहे कि इसे मैंने ही फैंका था पर क्यों?
तब मुकेश बोला जिसके लिए यह अंगूठी लाया था उस ने मुझे धोखा दे दिया मैं उसे बहुत प्यार करता था। उससे शादी करना चाहता था वह भी मुझे प्यार करती थी पर आज जब मैं अंगूठी लेकर उसके घर गया तो उसने मना कर दिया।
तब किरण ने उससे पूछा पर उसने ऐसा क्यों किया? उसके सवाल पर मुकेश बोला अब वह मेरे ही आफिस में काम करने वाले मुझसे सीनियर जो मेरा अधिकारी भी है जिसकी तनख्वाह मुझसे कहीं ज्यादा है से प्यार करने लगी है। उसने मुझे धोखा दे दिया तब वह गरीब लड़की मुकेश से बोली उसने बहुत बड़ी गलती की जो आप जैसे नेक दिल खूबसूरत इन्सान को ठुकरा कर पैसे को महत्व दिया।
तब मुकेश बोला इसलिए ही कह रहा हूँ इसे तुम रख लो जिस पर वह बोली मैंने आज सुबह से कुछ नहीं खाया मैं बहुत गरीब लड़की हूँ आप मुझे कुछ खाने को दे दीजिये मुझे इस अंगूठी से कोई मतलब नहीं।
मुकेश ने थोड़ी देर उसकी ओर गौर से देखा कुछ सोचा फिर बोला तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें होटल में खाना खिला देता हूँ। दोनों एक रैस्टोरेंट में गये जहाँ मुकेश ने उसके लिए खाना मँगवाया जिसे देख किरण बोली मैं इसे अपने घर ले जाऊं! जिस पर मुकेश बोला जब तुमने सुबह से कुछ नहीं खाया तो यहीं बैठ कर खा लो तब उसकी आखों में आंसू आ गए वह बोली घर पर मेरी बीमार माँ और एक छोटा भाई भी भूखा है वहाँ हम तीनों खा लेंगे।
उसकी बात सुनकर मुकेश भी दुखी होता हुआ बोला ठीक है तुम यहीं खा लो उनके लिए मैं और पैक करा दूंगा जिस पर वह फिर बोली नहीं और नहीं चाहिए इतने में ही हम तीनों खा लेंगे वैसे भी आधा पेट खाने की आदत ही पड़ गई है।
मुकेश इस बार उसे और भी ध्यान से देखने लगा जिस पर वह बोली क्या देख रहे हो बाबूजी! तब मुकेश बोला सोच रहा हूँ एक वह जिसे मैं हमेशा कीमती तोहफे देता रहा पर उसने यह कभी नहीं कहा कि रहने दो बल्कि हमेशा अपनी एक न एक ख्वाहिश मुझसे पूरी कराती रही और एक तुम हो।
मुकेश ने होटल वाले को पैसे दिए और उससे पूछा तुम कहाँ रहती हो चलो मैं तुम्हें वहाँ छोड़ देता हूँ।
तब वह लड़की बोली अरे नहीं बाबूजी मैं चली जाऊंगी थोड़ी ही दूर तो जाना है पर मुकेश के जोर देने पर वह उसको साथ ले गई।
मुकेश ने देखा एक टूटी सी खाट पर एक बूढ़ी महिला लेटी हुई थी वहीं पास ही जमीन पर एक छोटा बच्चा क़रीब चार पांच साल का बैठा हुआ कुछ टूटे फूटे खिलोने से खेल रहा था।
अपनी बेटी के साथ किसी अजनबी को आया देख घबरा कर वह महिला खाट पर उठ कर बैठ गई। जिस पर मुकेश उससे बोला अरे!लेटी रहिये माँ जी तब वह लड़की अपनी माँ से बोली माँ ये बड़े अच्छे आदमी हैं आज इन्होंने ही हमें होटल से खाना दिलाया है।
जिसे सुनकर वह बूढ़ी महिला मुकेश से बोली बाबू जी मेरी बेटी पढ़ी लिखी है पर मेरी बीमारी के कारण इसकी पढ़ाई छूट गई मेरे पास इसके पिता जो पैसा छोड़ गये थे वह सभी मेरी बीमारी पर खर्च हो गये इसलिए मजबूरी में मेरी बेटी को भीख मांगना पड़ रही है। साथ ही मेरे इस बेटे की परवरिश भी इसी को करना पड़ रही है।
वह आगे बोली बाबूजी इसे कोई छोटा काम हो तो दिला दो इस भीख मांगने के कलंक से अच्छा है एक वक़्त भूखे पेट रह लेंगे।
तब मुकेश ने उस लड़की से पूछा तुम कहाँ तक पढ़ी हो तब किरण ने बतलाया मेट्रिक पास हूँ।
मुकेश कुछ सोचते हुए किरण की माँ से बोला माँ जी मैं आपकी बेटी के लिए कोई काम जरूर दिला दूंगा।
मुकेश कुछ सोचते हुए बोला माँ जी आपसे एक निवेदन है मैं आपकी बेटी से एक नाटक कराना चाहता हूँ आप चिंता न करें मैं इसे काम दिलाने के बदले नहीं कह रहा हूँ। यदि आप नाटक के लिए हाँ भी नहीं करेंगी फिर भी मैं किरण को किसी आफिस में काम अवश्य दिलवा दूंगा।
तब किरण की माँ ने पूछा इसे क्या करना होगा?तब मुकेश ने अपनी प्रेमिका के धोखा देने और खुद के द्वारा एंगेजमेंट के लिए ली अंगूठी फैकने तक का पूरा किस्सा सुना दिया और कहा अब मैं चाहता हूँ वह अंगूठी उस “धोखेबाज” के सामने किरण को जो उससे भी कहीं अधिक खूबसूरत और अच्छे दिल वाली लड़की है सिर्फ दिखावे के लिए पहनाना चाहता हूँ जिससे उसे जलन होगी और मुझे खुशी होगी बस।
मुकेश की बात सुनकर किरण ने तो तुरन्त हाँ कह दी वह बोली ठीक है मैं तैयार हूँ उस लड़की ने आपके साथ अन्याय किया है उसे कुछ तो सजा जरूर मिलना चाहिए। पर किरण की माँ बोली, बेटा मेरी किरण को कोई मुसीबत न आ जाये हम लोग बहुत गरीब आदमी हैं।
तब मुकेश बोला किरण की आप बिल्कुल चिन्ता ना करें मैं तो हूँ।
और फिर दूसरे ही दिन मुकेश ने किरण को शानदार बढ़िया नये कपड़े खरीद दिये और ब्यूटी पार्लर से उसके रूप को भी निखार दिया अब किरण वह भिखारी किरण नहीं थी अब वह पढ़ी-लिखी पैसे वाले बड़े घर की किरण थी।
और फिर एक शाम एक रैस्टोरेंट में मुकेश ने आफिस के अपने पूरे स्टाफ को अपने एंगेजमेंट की पार्टी पर बुलाया और उसने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ मुकेश की वह दगाबाज प्रेमिका और उसका प्रेमी किरण को देख आश्चर्य चकित रह गए।
सबसे अधिक बुरा मुकेश की प्रेमिका को ही लग रहा था बुरा क्या पछतावा हो रहा था क्योंकि आज मुकेश उसके प्रेमी जिसकी उम्र भी अधिक थी से बहुत खूबसूरत लग रहा था साथ ही किरण भी किसी परि से कम नहीं लग रही थी। उसकी खूबसूरती गज़ब ढा रही थी। जहाँ मुकेश के सहकर्मी मुकेश और किरण को बधाईयाँ दे रहे थे तो दूसरी तरफ कोई-कोई मुकेश की पूर्व प्रेमिका को व्यंग्य में यहाँ तक कह दे रहे थे कि तुमने यह क्या किया पैसों के चक्कर में इतने खूबसूरत लड़के को छोड़ कर इस अधेड़ उम्र के आदमी से दिल लगा लिया। जिसे सुनकर वह तिलमिला कर रह जाती पर अब क्या करती अब बहुत देर हो चुकी थी।
कार्य क्रम के बाद मुकेश किरण को छोड़ने उसके घर गया।
पर जैसे ही वह वापिस आने लगा तो किरण बोली बाबू जी ये आपकी अंगूठी! तब मुकेश उसकी आखों में झांकते हुये बोला मैं फिर वही कहूँगा इसे तुम ही रख लो।
तब दोनों के बीच किरण की माँ बोली! बेटा इसे तुमने सिर्फ नाटक करने के लिए अंगूठी पहनाई थी अब नाटक खत्म हो गया है।
तब वह उनसे बोला माँ जी यदि आप मुझ पर भरोसा करें तो मैं किरण से विवाह करना चाहता हूँ।
जिस पर किरण की माँ खुश होते हुए बोली बेटा इससे अच्छी बात मुझे और क्या हो सकती है मेरी किरण को तुम्हारे जैसा पति पाकर भला कौन खुश नहीं होगा मेरी किरण के तो भाग्य ही खुल जायेंगे और मुझ गरीब का जीवन सफ़ल हो जायेगा ।
तब मुकेश किरण से बोला वैसे किरण! जब मैंने यह अंगूठी तुम्हें पहनाई थी सच मानो उस वक़्त मेरे मन में बिल्कुल भी नाटक नहीं था उस वक़्त मैंने तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में देखकर ही अंगूठी पहनाई थी।
मुकेश की बात सुनकर किरण की आखों में आंसू आ गए तब वह भी बोली बाबू जी मैं भी नाटक नहीं दिल ही दिल में आपको चाहने लगी थी।
तब मुकेश ने किरण का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा मैं बड़ा खुश किस्मत हूँ और उसे अपने सीने से लगा कर उसके हाथ की अंगूठी को चूम लिया।
समाप्त