बिट्टू का फ़ैसला
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 सागर/ आर के तिवारी

क्यों आए हो अब यहां? मैं जैसे ही घर आया तो घर के अन्दर से आ रही आवाज़ सुनकर दरवाजे पर ही ठिठक कर रुक गया जैसे ही मैंने सुना! नफीसा किसी से गुस्से में कह रही है क्यों आए हो अब यहां? मैं दरवाजे पर ही रुक गया सोचने लगा कमरे के  अंदर कौन है ? जिससे नफीसा यह कह रही है कि क्यों आए अब यहाँ । अब मैं अंदर भी नहीं जा सक रहा था और ना वहाँ से हट ही पा रहा था कि तभी नफीसा फिर उसी लहजे में बोली मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि आपने यहाँ आने की ज़ुर्रत कैसे कर ली! क्या आपका ज़मीर बिल्कुल ही मर गया है या आपको वह सलूक याद नहीं जो आपने मेरे साथ  किया था। अब मैं समझ रहा था कि कमरे के अंदर दूल्हा मियां सलीम हैं और उसको याद करते ही मेरे भी जिस्म में आग धधकने लगी। मैंने सोचा मैं भी जाऊं और जो आग मेरे  कलेजे में है उसे मैं भी ठंडा कर लूं !पर यह सोचकर रुक गया कि देखो नफीसा क्या करती है, कि तभी नफीसा बोली उस वक़्त मुझसे ऐसा क्या गुनाह हुआ था कि आपने मुझे घर से निकल जाने का बोल दिया? मैं कुछ भी ना कह पाई और कहती भी कैसे उस वक़्त तो आपके ऊपर शैतान सवार था। आपने मेरी नन्ही सी बुलबुल मेरी जान से भी प्यारी बच्ची को उठाकर फेंक दिया। वह तो गनीमत रही खुदा की मेहरबानी थी कि वह सोफे पर गिरी थी वर्ना वह तो उसी दिन मर गई थी। मैं पूछती रही कि बतलाव मेरा गुनाह क्या है!पर आप उस वक़्त सिर्फ मेरे बदमिजाज शौहर और बुलबुल के बदकिस्मती से  पिता थे जिसे मैं खुदा की तरह मानती थी अरे! आपको ही क्या! आपकी अम्मी जान और आपके अब्बू जान को भी अपने माता-पिता की तरह ही मानती थी पर उस वक़्त वे भी बुत बने तमाशा देखते रहे और आपने मुझे घर से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर लिया! आपने यह भी नहीं सोचा जमाना क्या कहेगा। पूरा मोहल्ला मुझ पर ही शक भरी निगाहों से देख रहा था

 क्योंकि जमाने की तो फ़ितरत ही है कि हम औरतों में ही कमियां देखना और उन देखने वालों में औरतें भी होतीं हैं पर उस वक़्त उन्हें भी तमाशा देखना ही अच्छा लगता है। किसी की बेबसी से कोई सारोकार नहीं। 

 अरे! मैं आपके घर का ऐसा कौन सा काम था जो नहीं करती थी। सुबह उठते ही काम में लग जाती थी तब जाकर दोपहर तक रोटी नसीब होती थी और फिर तुरन्त दूसरे वक़्त का चूल्हा संभालती थी।

ऐसा क्या कहा था मैंने! बस यही न कि मुझे मेरे अब्बू के पास जाने दो मैं दो साल से अपने मायके नहीं गई उनकी तबियत भी खराब रहती है मुझे एक बार उन्हें देख आने दो।

मैं दो तीन दिनों में ही आ जाऊँगी बस “इतनी सी बात” थी मेरी! पर आपने मेरी एक नहीं सुनी और जैसा अम्मा ने कहा आप मान गये कि घर का काम कौन करेगा, हमारे लिए रोटी कौन बनायेगा! आपको अपने घर की रोटी की चिंता थी की रोटी कौन बना कर देगा पर मेरे पिता की कोई चिंता नहीं की बस इतनी सी बात पर आपने मुझे घर से निकाल दिया जबकि मैं इस घर में जब से ब्याह कर आई मैंने कभी कुछ नहीं मांगा। क्या बहुओं की कुछ तमन्नाऐ नहीं होतीं? क्या उन्हें सिर्फ घर के काम के लिए ही लाया जाता है? दो वक़्त की रोटी खाओ और घर के सारे काम करो। बच्चों की भी जबाब दारी हम औरतों की ही है । घर के मामलातों में हमारी कोई दख़ल नहीं। जो आप मर्दों का फैसला वही हमें मानना है।   

आप ने नहीं सोचा मेरा क्या होगा! मेरी बेटी का क्या होगा! मैं कहाँ जाऊँगी वह तो मैं क़ासिम चाचा का ज़िन्दगी  एहसान नहीं भूल सकती जो वे पूरे मोहल्ले से अलग थे जिन्होंने ही मुझे अपने पैसे से बस में बैठाल कर सागर भेज दिया था।

और यहाँ मेरे आते ही मेरे अब्बू का घर बर्बाद हो गया।

मुझे अचानक से बेटी के सहित, खाली हाथ,पुराने कपड़ों में बुरे हाल में आया देखा तो घबराहट में सदमा खा कर गिर पड़े।

 मेरे भाई,मेरी भाभी को जब मालूम हुआ तो उनके मुंह से निकला इतनी-सी बात पर दूल्हे मियां ने घर से निकाल दिया।उन्हें ऊपरवाले का ज़रा भी ख़ौफ नहीं लगा।

कहते हैं दुनियाँ में बच्चे पिता की और बीवी पति की छाया में महफ़ूज रहते हैं पर आप जैसे इन्सानो को पिता और पति नहीं जानवर और शैतान कहें तो भी कम है जिसने छह महीने की अपनी बेटी और अपनी बीवी को घर से ऐसे निकाल दिया जैसे उनसे कोई रिश्ता ही न रहा हो।

उस दिन के बाद से मेरे अब्बू ने बिस्तर पकड़ लिया और कुछ ही दिनों में उनका दम निकल गया।

उनके इंतकाल से मेरे भाई का यह घर बर्बाद हो गया।

न आप मुझे घर से निकालते और न मेरे अब्बू मरते आपकी बदमिजाजी ने माचिस की तीली का काम किया मेरी और मेरी बेटी की जिन्दगी के साथ साथ मेरे भाई की भी खुशियाँ तबाह कर दी। मेरी भाभी की जो तमन्नाऐ थीं वो खत्म हो गईं जिन दो कमरे में वो मियां बीवी अपने बच्चे के साथ शुकून से रहते थे मेरे और बुलबुल के आने के बाद बुरा वक़्त आया समझ समझौता कर जैसे भी बना सभी साथ में   रहने लगे।

मेरे भाई ने मेरा खर्चा ही नहीं उठाया बल्कि मेरी बुलबुल की भी अपने बेटे की ही तरह परवरिश की उसे अच्छी तालीम दिलवाई।

आज वह बीस वर्ष की हो गई है वह अपने मामू को ही अपना पिता का दर्जा देती है।

कभी भूल से भी उसने अपने पिता का कभी नाम नहीं पूछा और न याद ही करती है।

क्योंकि वह देख रही है कि जो फर्ज एक पिता का बनता है वह फर्ज उसके मामू ने निभाया है।

 मेरे भाई और मेरे अब्बू ने आपको बुलावा भी भेजा था कि आप यहाँ आईये ऐसा क्या हुआ जो आपने नफीसा को घर से निकाल दिया पर नहीं उस वक़्त तो आप पर जवानी का जुनून चढ़ा था पर अब तो बहुत देर हो चुकी है। मैंने सारी खुशियां दफन करके बीस साल निकाल दिए गर मेरा भाई न होता या वह भी तुम जैसा खुदगर्ज,जल्लाद होता तो मुझे मरने के सिवा कोई रास्ता नहीं था। 

 वैसे भी मैं और मेरी बेटी आपको तो मर ही गये थे।

सच पूछो तो मैं आपको ख़्वाब में भी याद नहीं करती।

नफीसा बोली देखिये अब आप जाईये मेरे भाई और मेरी बेटी के आने का वक़्त हो गया है मैं नहीं चाहती आपकी छाया भी मेरी बेटी पर पड़े और मेरे भाई से आपका आमना-सामना हो।

तभी मुझे लगा जैसे सलीम कमरे से बाहर निकल रहा है। तो मैं वहीं थोड़ा हट कर खड़ा हो गया जहाँ मुझ पर उसकी निगाह न पड़ सके।

मैंने देखा, सलीम किसी हारे हुए जुआडी की तरह अपनी गर्दन झुकाए दरवाजे से निकला कि तभी बुलबुल भी जो कालेज गई थी घर में आई मैंने देखा उसने एक नज़र सलीम पर डाली और कमरे में चली गई।

मैं उसके पीछे अन्दर जाने लगा कि तभी मैंने सुना बुलबुल ने नफीसा से पूछा अम्मी ! ये अभी-अभी घर से बाहर कौन गया है?

जिस पर नफीसा ने एक लम्बी सांस लेते हुए कहा कोई ख़ास नहीं तेरे मामू के पुराने परिचित थे और बोली चल हाथ पैर धो ले चल अन्दर तेरी मामी तेरा ही रास्ता देख रही है कह रहीं थीं कि बुलबुल आ जाये तो हम दोनों साथ बैठकर चाय पीयेंगे नफीसा की बातें सुनकर मेरी आखों में आंसू आ गए मैं सोचने लगा यदि सलीम ने इसको घर से न निकाला होता तो मेरी नफीसा की यह हालत न होती और न सलीम का घर ही बर्बाद होता।

एक चिंगारी ने दोनों की ज़िंदगी की खुशियाँ तबाह कर दी।

और फिर एक दिन एक ख़बर ने मुझे बहुत दुखी कर दिया।

पता चला नफीसा को घर से निकालने के बाद सलीम शराब पीने लगा था। वह हमेशा शराब के नशे में ही डूबा रहता था जिस वजह से उसके फेफड़े और किडनी खराब हो गईं थीं जिससे उसका इंतकाल हो गया।

इस खबर को मैं नफीसा को बतलाने की हिम्मत नहीं जुटा सका और फिर दोनों की कहानी का अन्त हो गया।

समाप्त 


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