बिट्टू का फ़ैसला
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 सागर/आर के तिवारी

बात बहुत पुरानी है,तबकी!  जब हमारा यह शहर एक छोटा शहर था।

आज जहाँ बड़े-बड़े पक्के मकान हैं,पक्की सड़कें हैं वहाँ कुछ अमीर लोगों की बड़ी हवेली छोड़ कर कच्चे छोटे मकान और कच्ची सड़कें हुआ करतीं थीं। चूंकि हमारा शहर जिला स्तर का था जिसके चारों ओर से लोगों का आना-जाना लगा रहता था। उस वक़्त हर मार्ग पर एक- एक दो-दो बसें ही चला करतीं थीं ट्रेक्टर की जगह बैलगाड़ी और तांगा हुआ करते थे। गिने चुने लोगों के पास मोटर साइकिलें,जीप या कार हुआ करतीं थीं अधिकांश लोगों के पास आने जाने के साधनों में साइकिल ही होतीं थीं।

अधिक दूरी की यात्रा लोग रेल से ही करते थे।

मैं एक बार अपने गाँव से अपने काका के साथ अपनी काकी की दवा लेने बैलगाड़ी से यहाँ शहर आया हम यहाँ रात करीब साढ़े आठ बजे पहुँचे चूंकि पहले रात आठ बजे के बाद शहर में बाहर से आने वाली बैल गाड़ियाँ चुंगी नाके के पहले रोक दी जातीं थीं। उन्हें सुबह होने पर ही शहर में प्रवेश दिया जाता था।

 मुझे किसी भी तरह इस शहर के नामी डॉ कुजूर से मिलना था उनसे काकी के लिए दवा लेना थी।

कुछ सोचकर मैंने चुंगी पर तैनात नगर पालिका के एक मुलाजिम जो एक मुस्लमान थे से कहा भाई साब मुझे अभी तुरत डॉ कुजूर से मिलना है और उनसे दवा लेकर गांव वापिस जाना है गाँव पर मेरी काकी को पेट में बहुत तकलीफ़ हो रही है।

उसने मेरी पूरी बात सुनी कुछ सोचा और फिर बोला देखो भाई मैं आपको बैलगाड़ी तो किसी कीमत पर नहीं ले जाने दूंगा क्योंकि रात आठ बजे के बाद गल्ला मंडी बंद हो जाती है इसलिए गाँव देहात से आने वाली बैलगाड़ी सुबह तक यहीं नाके पर रोक दी जातीं हैं आपकी तरह और भी सभी गाड़ी वाले यहाँ रात रुकते हैं उन्हें सुबह ही शहर जाने दिया जाता है । मैंने उनसे बहुत मिन्नते की जिस पर वो बोले देखो भाई मेरी ड्यूटी का वक़्त खत्म हो गया है अब मेरा घर जाने का वक़्त हो रहा है। तुम चाहो तो मेरे साथ मेरी साईकिल से चलो मेरा घर डॉ कुजूर के पीछे ही शनीचरी टोरी पर है। वहाँ से तुम उनके घर चले जाना मैं बहुत खुश हुआ और बोला हाँं-हाँं ले चलो! मैंने उनसे कहा थोड़ा रुको मैं अपने काका को बतला देता हूँ। मैंने दौड़ कर अपने काका को बतलाया कि मैं चुंगी पर काम करने वाले भाई साब के साथ शहर जा रहा हूँ तब काका बोले पर वापिस कैसे आओगे? मैंने कहा जैसे भी होगा आ जाऊंगा पैदल ही आ जाऊंगा पर अभी दवा लेने जाना बहुत जरूरी है यहाँ पूरी रात पड़े रहने से तो अच्छा है। जिस पर काका बोले जा बेटा जा आजकल ऐसे इन्सान कहाँ मिलते हैं। और फिर मैं उनके साथ साइकिल पर बैठ कर शहर की ओर चल दिया । वे मुझसे बोले वैसे डॉ साब मेरे घर के नजदीक ही रहते हैं तुमने उनका घर तो देखा होगा? तब मैंने कहा नहीं! पर किसी से पूछ लूंगा।

तब उन्होंने फिर कुछ सोचा और बोला अच्छा चलो देखता हूँ।

मैं उनकी ओर आश्चर्य से देखने लगा तब वह बोले क्या देख रहे हो मैंने कहा भाई साहब मैं समझ नहीं पा रहा हूं आपकी इस मेहरबानी का बदला कैसे चुका पाऊँगा तब वह बस मुस्कुराकर रह गये।

चुंगी नाका से अल्ताफ भाई साहब! हाँ उनका नाम अल्ताफ था का घर करीब 2 मील था क्योंकि शहर से नाका ही एक मील से अधिक था हम तकरीबन आधा घंटे में अल्ताफ के घर पहुंच गए। कहीं-कहीं रास्ते में गड्ढे होने और कहीं-कहीं कच्चा रास्ता होने के कारण साइकिल चलाने में दिक्कत हो रही थी। इसके अलावा रास्ते में रोशनी भी कहीं-कहीं थी कहीं-कहीं थी ही नहीं। क्योंकि बिजली के किसी खंभे में बल्ब जल रहे थे तो किसी में नहीं इसलिए आराम से चलना पड़ रहा था। घर पहुंचते ही उन्होंने अपनी साइकिल घर के बाहर ही दीवार के सहारे खड़ी कर दी। घर कच्चा खपरैल का था। उनकी गली में भी थोड़ा अंधेरा ही था क्योंकि गली के मोड पर लगे बिजली के खंभे में लगे बल्ब की रोशनी वहां काम ही पहुंच रही थी। अल्ताफ भाई  ने दरवाजे को खटखटाया किसी ने दरवाजा खोला और उन्हें देख बाजू से हट गया। अल्ताफ भाई कमरे में अंदर जाते-जाते मुझसे बोले आओ! क्या नाम है तुम्हारा मैंने कहा घनश्याम तब वे बोले आओ भाई आओ। 

मैंने कमरे में देखा कमरे में लालटेन का उजाला था घर के कोने में एक खाट पड़ी थी जिस पर एक बुजुर्ग महिला बैठी थीं जिसने मुझे देखते ही उनसे पूछा बेटा! यह कौन है जिस पर अल्ताफ ने उन्हें बतलाया यह घनश्याम है पास के गांव का है। फिर मेरी तरफ मुड़कर मुझसे पूछा क्या नाम है तुम्हारे गाँव का! मैंने कहा हरवंशपुरा तब वे उन अम्मा से बोले हरवंशपुरा का है इसकी बैलगाड़ी चुंगी पर खड़ी है बेचारे की चाची गाँव में बीमार है कुजूर डॉक्टर से दवा लेना है। अब बेचारा सुबह तक वहाँ चुंगी पर पड़ा रहता इसने अपनी समस्या जब मुझे बतलाई तब मैंने सोचा मुझे  घर जाना ही है क्यों ना इसे अपने साथ लेता जाऊं। वहाँ से यह डॉक्टर साहब से अपनी चाची को दवा ले आएगा । जिस पर वो अम्मा बोली ठीक किया बेटा! मुसीबत में इंसान ही इंसान के काम आता है और वहाँ खड़ी एक लड़की जिससे कहा बेटा नादिरा! अल्ताफ को रोटी दे दे और मेरी तरफ देखकर बोली तूं भी खा ले!पर,हम लोग मुस्लमान हैं तुम हिंदू हो हमारे यहां मटन मीट खाया जाता है। वैसे रोज नहीं खाते। आज भी दाल रोटी चावल ही बना है। चाहे तो दो रोटी तूं भी खा ले। उन अम्मा के इतना स्पष्ट बतलाने पर जाने मुझे क्या हुआ तो मैं बोला नहीं ऐसी कोई बात नहीं है हम गाँव से कलेवा बांधकर आए थे अभी वापस जाकर काका के साथ खा लेंगे। तब वह बोली जैसी तुम्हारी मर्जी! उनके वह शब्द जैसी तुम्हारी मर्जी! सुनकर लगा जैसे उन्हें दुख हुआ हो। तब मैंने कहा अम्मा यह बात नहीं यदि आप ऐसा सोचती हैं कि मैं आप मुस्लमान हैं सो नहीं खा रहा हूं वह बात नहीं यदि आपको अच्छा लगे तो मैं भी दो रोटी खा लूंगा जिस पर वो बहुत खुश होते हुए नादिरा से बोलीं बेटा नादिरा! चल इसे भी दो रोटी दाल परोस दे मैंने और अल्ताफ भाई ने फटाफट रोटी खाई तब अल्ताफ भाई बोले यार घनश्याम चलो मैं भी चलता हूं डॉक्टर साहब के यहां। तुम इतनी रात को अंधेरे में कहां उनका घर ढूंढते फिरोगे मुझे लगा जैसे बीच भंवर में से किसी ने मुझे किनारे ला खड़ा किया हो। मैं मन ही मन खुश हुआ थोड़ी देर में हम लोग डॉक्टर कुजूर के घर पर पहुंच गए अल्ताफ ने ही दरवाजा खटखटाया डॉक्टर साहब का मकान थोड़ा बड़ा और उन दिनों के अच्छे और पक्के मकान में गिना जाने वाला था इसके अलावा मकान मुख्य सड़क पर था और घर के थोड़ा बाजू से ही बिजली का खंभा लगा हुआ था जिससे उनके घर के सामने अच्छी रोशनी थी। दरवाजे की खटखटाहट सुनकर अंदर से किसी की शायद डॉ साब की ही जोरदार आवाज आई! बोले कौन है भाई? दस बजे रात को कौन है! और दरवाजे के पास हमें खड़ा देख बोले क्या बात है मैं कुछ कहूं कि उसके पहले ही अल्ताफ भाई बोले मैं अल्ताफ हूं आपके पीछे वाली गली में रहता हूं चुंगी नाके पर नौकरी करता हूं ऐ घनश्याम है इनकी चाची गाँव पर बीमार हैं इन्हें उनको दवा चाहिए थी बेचारे को मैं ही अपनी साइकिल से यहां ले आया हूं। अल्ताफ भाई ने एक ही सांस में उन्हें सब कुछ बतला दिया उन्होंने मेरी ओर देखा और वहीं दहलान में पड़ी बेंच पर हमें बैठने को कहा और पूछा तुम्हारी चाची को क्या तकलीफ़ है! मैंने कहा 2 दिन से पेट दर्द हो रहा है तब डॉक्टर साहब ने पूछा दस्त लग रहे है क्या? मैंने कहा हां कल लगे थे पर अब नहीं लग रहे। थोड़ी देर में उन्होंने हमें

तीन दिन की दवा की खुराकें    बनाकर दी और कहा दिन में तीन बार देना है मूंग की दाल का पानी दलिया खाने को देना है खटाई तेल ना दें। पानी खूब पिएँ और एक पुड़िया और दी बोले यह चूर्ण है इसे खुराक के बाद दो वक्त एक चम्मच दें। यदि इतनी दवा में ठीक ना हों तो मरीज को लेकर आना होगा। मैंने दवा ली उनसे दवा के पैसे पूछे तो वह बोले दे दो जो हो।तुम मुसीबत में हो ना हों तो भी चलेगा मैं समझता हूं बेचारे गाँव वालों के पास पैसा कहां होता है जब भी जरूरत पड़ती है साहूकारों से उधार लेते हैं मैं आश्चर्य से उन्हें देखने लगा और सोचने लगा कि ये सच कह रहे हैं मैं लम्बरदार से ही उधार लेकर आया था। तब मैंने कहा आप ठीक कह रहे हैं मैं 20 रुपये गाँव के लम्बरदार से उधार लेकर आया हूं। जिस पर वे सिर्फ मुस्कुरा दिए और बोले लाओ 3 रुपये दे दो मैंने उन्हें 3रुपये दिए और अल्ताफ भाई के साथ उनके घर आ गया। वहाँ पहुंचते ही मैंने उनसे कहा भाई साब आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अब मैं नाके पर जाऊं! जिस पर उनकी अम्मा मुझसे बोलीं अरे! अकेला जायेगा? मैं बोला हाँं चला जाऊंगा जिस पर वे बोलीं  बावला है क्या! मुझे पता है नाका पास में नहीं है। फिर अल्ताफ भाई से बोलीं बेटा अल्ताफ जा इसे नाके तक छोड़ कर आ इतनी रात को इतनी दूर अकेला जायेगा क्या ! और अभी उम्र भी कितनी है छोटा ही है । कोई भी अकेले में कुछ कर दे क्या भरोसा वैसे भी रात को चोर लफंगे घूमते रहते हैं। मुझे लगा कि अल्ताफ भाई भी जैसे खुद भी यही चाह रहे थे तो तुरन्त बोले ठीक है अम्मा मैं छोड़ आता हूँ 

  और फिर वहां से हम चुंगी नाका आए वहाँ अल्ताफ भाई का बहुत-बहुत धन्यवाद कर मैं  काका के साथ गाँव चला आया।

डाँक्टर कुजूर की दवा से मेरी काकी की तबियत बिल्कुल ठीक हो गई थी अब शहर की वह बात आई-गई हो गई मैं गाँव पर अपनी खेती-बाड़ी के काम में लग गया।

इस तरह उस बात को क़रीब पांच साल निकल गये थे कि अचानक एक दिन मुझे बहुत आश्चर्य हुआ मैं दोपहर के वक़्त खेत से रोटी खाने अपने घर आया मैंने देखा मेरी देहलान पर दो तीन लोग बैठे थे उनमें एक महिला भी थी मेरे घर पहुंचते ही मेरे काका बोले यार घनश्याम ये लोग तुमसे मिलने ही बैठे हैं।

 मैंने उनसे राम राम की और पूछा कौन हैं आप लोग और क्या काम है मुझसे। तो मेरी बात पर एक सज्जन मुस्कुराते हुए बोले भाई घनश्याम मुझे भूल गये क्या?मैं अल्ताफ चुंगी नाके वाला मुन्शी! मैं एकदम से चौकंते हुए बोला अरे भाई साब आप तो बिल्कुल बदल गये ऐ दाड़ी! जब मैं आपसे सागर में मिला था उस वक़्त ऐ दाड़ी नहीं थी इसलिए नहीं पहचान पाया मुझे माफ़ करें!यहाँ कैसे आना हुआ और तुरन्त अपने काका से बोला काका ऐ ही हैं जब काकी की दवाई लेने डाँक्टर कुजूर के यहाँ गये थे ऐ ही अपनी साइकिल से मुझे उनके पास ले गये थे जहाँ इनकी अम्मा ने मुझे बड़े प्रेम से रोटी खिलाई थी भला उस रात को उस इत्तेफ़ाक़ को कैसे भूल सकता हूँ न मैं आपके पास जाता और न ही आप मेरी मदद करते और न उस रात मैं काकी की दवा ला पाता और पता नहीं दूसरे दिन कब डॉ साब के पास जाता और कब दवा लेकर कब गाँव वापिस आ पाता और पता नहीं उतने समय में मेरी काकी को कितनी तकलीफ़ उठाना पड़ती।

मैंने उनसे फिर पूछा कहिये कैसे आना हुआ? जिस पर वे साथ में बैठी महिला की ओर ईशारा करते हुए बोले ऐ मेरी बीवी हैं मैंने बीच में ही कहा उस वक़्त जब मैं आपके घर गया था तब ऐ वहाँ नहीं थी! जिस पर उन्होंने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा तब मेरी इनसे शादी नहीं हुई थी जिस पर मुझे भी हंसी आ गई।

वे बोले इनके एक रिश्तेदार की रिश्तेदारी आपके गाँव में हमीद मियां से है और हमीद मियां का एक लड़का है जिसे हम अपनी बहन नादिरा के लिए देखने आये हैं।

मुझे जब इन्होंने बतलाया कि हरवंशपुरा गाँव में मेरे रिश्ते दार का लड़का है तब मुझे फ़ौरन तुम्हारी याद आ गई मैंने तभी सोच लिया था कि भाई तुम उसी गाँव के हो लड़का कैसा है खानदान कैसा है!तुमसे बेहतर कौन जान सकता है।

मैं अल्ताफ भाई की बात सुनकर बहुत खुश हुआ और अपनी खुशी जाहिर करते हुए बोला अरे भाई नादिरा आपकी ही नहीं मेरी भी छोटी बहन है और हमीद मियां की क्या कहें बहुत नेक दिल इंसान हैं।

घर में आटा चक्की लगा रखी है ठंड के सीज़न में रुई का काम करते हैं कुल मिलाकर खाते पीते इन्सान हैं लड़का जमील भी अच्छा लड़का है अपने पिता के काम में हाथ बांटता है वह भी बहुत अच्छा है हमारी नादिरा के लिए अच्छा रहेगा।

और फिर मैं जो हूँ उसका भाई!यहाँ, मेरे रहते मेरी बहन को ज़रा सी भी तकलीफ़ होना मेरे मरने लायक बात है।

सच मानो मेरी कोई बहन भी नहीं है इत्तेफ़ाक़ से मुझे मेरी बहन मिल जायेगी और पता नहीं मैं इतना भावुक हो गया कि मेरी आखों में आंसू आ गए तब अल्ताफ भाई बोले घनश्याम भाई उस इत्तेफ़ाक़ से तुम्हें ही फायदा नहीं हुआ मुझे भी फायदा हुआ मुझे और मेरी बहन को तुम जैसा भाई मिल गया।

 मुझे अधिक भावुक देख मेरे काका बोले रोता क्यों है पगले!अरे रोते तो तब हैं जब बहन अपने घर से ससुराल जाती है अरे यहाँ तो तेरी बहन तेरे गाँव आ रही है तेरे घर आ रही।

 मैंने अपने आपको सम्हालते हुए काका से कहा अरे ऐ लोग कब के आये हुए हैं! और आपने इन्हें चाय बगैरह तक नहीं पिलाई तब अल्ताफ भाई बोले नहीं भाई आपके आने से पहले हम चाय और नस्ता दोनों कर चुके थे मैंने लाख मना किया पर आपके चाचा बोले हमारे यहाँ से जो भी राहगीर निकलता है पानी पीते हुए जाता है और आप तो मेरे घनश्याम को ही पूछते आये तो चाय पिये बिना कैसे चलेगा। मैंने अपना वही परिचय देना चाहा पर इन्होंने मेरी एक नहीं सुनी बोले घनश्याम को आ जाने दो तब तक आप यहाँ इत्मीनान से आराम करें। वे आगें बोले तो हम हमीद मियां के यहाँ रिश्ता पक्का कर दें जिस पर मैंने कहा जरूर! जरूर ! वहाँ आप अकेले नहीं जायेंगे मेरी बहन का रिश्ता तय हो और मैं न जाऊं और फिर हमीद मियां के घर मुस्लिम रीति रिवाज से नादिरा का रिश्ता पक्का किया कुछ समय बाद नादिरा और जमील का निकाह करा दिया।

आज भी बरसों से नादिरा के परिवार से मेरे परिवार के भाई बहन के प्यार के रिश्ते क़ायम हैं।मेरे ही क्या! नादिरा मेरी बहन होने के कारण हमारे पूरे गाँव की बहन की तरह रहती है सभी उसे हमीद मियां की बहू की तरह नहीं गाँव की बेटी की तरह सम्मान देते हैं।

मुझे आज भी उस इत्तेफ़ाक़ की रात और अल्ताफ भाई से मिलने की खुशी होती है।

समाप्त 


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