कहानी: ईद की ईदी
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सागर/आर के तिवारी

मेहरुन्निसा ने नोट हाथ में लिया और दौड़ कर अन्दर वाले कमरे में जहाँ हामिद और उसकी बीवी थे गई और वह नोट उन्हें दे दिया।

बमुश्किल दो मिनट ही हुए थे कि हामिद और उसकी बीवी दोनों बैठक में आये और मुझसे बोले यार पंडित जी यह क्या है?आपने मेहरुन्निसा को पांच सौ रूपये का नोट काहे को दिया है? मैंने कहा यार मैंने उसे बतौर ईदी दी है।

जिस पर हामिद बोला पर ईद को गये छैह महीने हो गए! 

तब मैंने कहा तो क्या हुआ यार मैं उस वक़्त आया भी कहाँ था जो उसे ईदी देता।

भाई आज आया तो समझलो मुझे आज ही ईद है मेरी बात सुनकर हामिद मेरा मुंह देखता रह गया और फिर जाने क्या सोचता अन्दर वाले कमरे में चला गया।

असल में एक बार मैं पुष्कर गया था उसी दरम्यान अपने पुराने मित्र हामिद जो जयपुर में मोटर साइकिल मैकेनिक था  के घर गया ।

मुझे देख उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। जिसे मैं अपने शब्दों में वयां नहीं कर सकता।

मुझे बैठक में बैठाकर वह अन्दर वाले कमरे में चला गया और जाते-जाते मुझसे कह गया यार पंडित जी हाथ-मुँह  धोना हो तो आंगन की ओर ईशारा करते हुए बोला वहाँ बाथरूम में धो लीजिये।

मैं भी सफ़र में थका हुआ था सो तुरन्त बाथरूम में हाथ-मुंह धोने चला गया।

मैंने हाथ धोये ही थे कि हामिद की बीवी की आवाज़ सुनाई दी जो बाथरूम से सटे हुए कमरे से हामिद से बोल रही थी।

 अब क्या होगा!अब क्या करें! घर में खाने का सामान तो कुछ भी नहीं है जो दाल चावल आटा था दो दिन पहले ही सब खत्म हो गया।

दो दिन से चाय और ब्रेड में काम चल रहा है।

आप भी दस दिन से दुकान नहीं गये।

जिस पर हामिद बोला अरे तुम भी पागलों की तरह बात कर रही हो! पूरा शहर दस दिन से बंद है! किसी की दुकानें नहीं खुल रहीं और खोले भी कैसे समाज के ठेकेदार आ जाते हैं बंद कराने इस बीच मुश्किल से दो दिन छोड़ दो घन्टे को कर्फ्यू खुलता है उतने समय में जो जितना बाज़ार से सामान ला पाता था लाता था। अब जब घर में पैसा ही नहीं तो सामान कहाँ से लायें।

पता नहीं इन राजनेताओं को हम गरीबों की,रोज कमा कर खाने बालों की मजबूरियाँ नहीं दिखतीं कि हम कैसे अपने परिवार की दाल रोटी चलायेंगे।

इन्हें सिर्फ अपनी राजनीति दिखती है फिर चाहे छोटे-छोटे बच्चे एक कटोरी दूध को तरस जायें या बीमार दवा के लिए परेशान हो जायें। हमें ही देख लो घर में दाना नहीं अब दो दिन से हड़ताल खत्म भी हुई तो पैसे नहीं!

जिस पर हामिद की बीवी बोली मैं कुछ नहीं जानती आप जाईये कहीं से भी थोड़ा खाने-पीने का इन्तजाम कीजिये जाईये।

तब हामिद बोला पर यार अभी किसके पास जाऊं कौन उधार दे देगा! किराने की दुकान वाले की पहले ही बहुत उधारी है। अब और उधर देता है या नहीं?

जिस पर वह बोलीं मैं कुछ नहीं जानती आप जाईये कहीं से भी अभी फिलहाल में थोड़ा नाश्ता  ही ले आईये।

उनकी बातें सुनकर मैंने फटाफट अपना मुंह धोया और वापिस बैठक में आ गया अब मेरा दिमाग बहुत तेजी से चल रहा था कि क्या करूँ! कि तभी हामिद की बेटी वहाँ आ गई और मैंने फौरन उसे ईदी के बहाने पांच सौ रूपये दे दिये।

 जिस पर ही हामिद ने आ कर कहा यह क्या है पंडित जी?आपने हमारी बातें सुन ली!

और फिर मुझे गले से लगाता हुआ बोला यार दोस्त हो तो आपके जैसा जिस पर मैंने कहा यार वह दोस्त किस काम का जो दोस्त के मुसीबत में काम न आये।

और फिर हामिद बाजार से बहुत सा नाश्ता,दाल चावल आटा लाया तब हम सभी ने एक साथ बैठकर खाना  खाया।

 परन्तु जब मैं शाम को वापिस आने लगा तो हामिद की बीवी भराई आवाज़ में बोली। भाई जान मेरी आपसे एक गुजारिश है! अबकी ईद पर आप मेरे यहाँ जरूर आईयेगा। मैंने उस वक़्त उसकी आखों में आये आंसूओ को देखा तो बोला इन आंसुओ को बाहर नहीं आने दीजिये! ये बहुत कीमती आंसू  हैं इस तरह की छोटी-छोटी बातों में नहीं बहाना चाहिए। आप विश्वास रखो अबकी बार मैं ईद पर जरूर आऊंगा जिस पर उसके चहरे पर मुस्कुराहट आ गई और मैं भी मुस्कुराते हुए घर से बाहर आ गया।


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