सागर/आर के तिवारी I “एक अदालत का दृश्य जहाँ जज साहब बिट्टू के केस का फैसला नहीं कर पा रहे कि बिट्टू को किसके सुपुर्द करें माँ के या उसके पिता के तब वे बिट्टू पर ही अपना फैसला ख़ुद करने के लिए छोड़ देते हैं”-
अदालत खचा-खच भरी हुई थी- मामला था बिट्टू के माता-पिता के बीच में तलाक़ का! तलाक़ का फैसला भी आने में अधिक कोई अड़चन नहीं थी क्योंकि दोनों पति पत्नी की रज़ामंदी हो गई थी। बस एक पेंच फंसा था और वह था उनके बेटे बिट्टू का कि वह कहाँ रहेगा! माँ के साथ या पिता के साथ! उसे दोनों ही अपने-अपने पास रखने के लिए जज साहब से गुहार लगा रहे थे। दोनों अपने-अपने तर्क दे रहें थे पिता का कहना था मैं पिता हूँ बच्चे पर मेरा अधिकार है मैं उसकी परवरिश अच्छी तरह से कर सकूँगा।उधर माँ कहती नहीं! मैं माँ हूँ मेरा अधिकार है और मैं उसकी परवरिश अच्छी तरह से कर लूंगी मैं सरकारी नौकरी में हूँ मेरी आमदनी रमन से अधिक है।
तब जज साहब ने कुछ सोचते हुए सुमन से कहा आपका बेटा आठ साल का है। जिसकी जिम्मेदारी आप में से जो अच्छी तरह उठा सके,उसके फर्ज को जो निभा सके, वह उसे अपने पास रखे इसमें उस बच्चे के भविष्य का सवाल है। पर इस बात को आप दोनों में से कोई मानने को तैयार नहीं है इसका फैसला आप दोनों को समझदारी से उसके हित को देखते हुए लेना चाहिए पर आप दोनों एक ही बात पर अडे हुए हैं कि बिट्टू मेरे पास रहेगा अदालत की नजर में आप दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं इसलिए अदालत नहीं समझ पा रही है कि इसका फैसला किसके पक्ष में दे। तब बिट्टू की माँ जज साहब से बोली आप बिट्टू से ही पूछ लीजिये कि वह किसके साथ रहना चाहता है।
जज साहब ने सुमन के कहने पर बिट्टू को कहा कि बेटा तुम इस कटघरे में आकर हमें बतलाओ कि आप किसके साथ रहना चाहते हैं। अपने पिता के साथ या अपनी माँ के साथ।
बिट्टू जब कटघरे में आया तब रमन का दिल बड़ी तेजी से धड़कने लगा। वह सोचने लगा पता नहीं “क्या होगा बिट्टू का फैसला” उसे शंका थी शंका ही क्या उसे लग रहा था बिट्टू अपनी माँ के साथ ही रहना पसंद करेगा, जिसका कारण भी वह समझ रहा था। एक तो सुमन उसकी माँ है दूसरी बात सुमन उससे अधिक पैसा कमाती है और बिट्टू भी उसी के पास अधिक समय तक रहता आ रहा है जिससे सुमन ही उसकी सभी जरूरतों को पूरा करती आ रही है इसके साथ ही बिट्टू अभी बच्चा है! बेचारा दुनियाँ दारी क्या समझे इसलिए उसके दिल में घबराहट होने लगी उसने सोच लिया था कि बिट्टू सुमन के साथ ही रहना पंसद करेगा यह सोच कर वह बहुत दुखी हो गया।
पर बिट्टू ने जो जज साहब से कहा उसे सुनकर अदालत में बैठे हर शख्स की आखों में आंसू आ गए और रमन तो खुशी से पागलों की तरह रोने लगा तो दूसरी तरफ सुमन को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका बेटा उसके साथ रहना नहीं चाहेगा।
असल में बिट्टू से जब जज साहब ने पूछा कि आप किसके साथ रहना पंसद करोगे सोच कर जवाब देना। तुम आठ साल के हो मैं समझता हूँ तुम्हारे फैसले से तुम्हारे भविष्य का सवाल है! और आज अदालत भी मानवीय मूल्यों को महत्व देते हुए अपना फैसला करेगी।
बिट्टू ने कटघरे में खड़े होकर पहले तो अपने पिता की ओर देखा फिर अपनी माँ की ओर देखा और अदालत में बैठे सभी पर अपनी नजरें घुमाई उस वक़्त उसकी नज़र सबसे पीछे की बेंच पर बैठे दो चहरों पर ठहर गई जिनकी आखों में एक आशा की किरण चमक रही थी। वो लोग और कोई नहीं बिट्टू के दादा-दादी थे।
तब फिर जज साहब से बोला जज साहब! वैसे मैं रहना तो दोनों के साथ ही चाहता था पर यह संभव नहीं लग रहा है, इसलिए मुझे किसी एक के साथ मजबूरन रहना होगा। जज साहब! मेरी माँ एक सरकारी शिक्षक है जिससे उन्हें अच्छी पगार मिलती है। दूसरी तरफ मेरे पिता जी हैं जो एक प्राईवेट कम्पनी में काम करते हैं जिससे उनकी कम तनख्वाह है।
हमारे माता-पिता ने अपनी मर्जी से प्रेम विवाह किया था।
उनके इस विवाह से हमारे दादा-दादी खुश नहीं थे पर उन्होंने उनकी खुशी के लिए समझौता कर लिया था।
दो साल बाद मेरा जन्म हुआ मैं जब चार वर्ष का हुआ तो मेरा स्कूल में दाख़िला हो गया।
उसी दरम्यान मुझे मेरे पापा और मेरी माँ के बीच चल रहे विवाद का पता चला और यह भी मालूम हुआ कि यह विवाद इनके विवाह का एक साल भी पूरा नहीं हुआ था और चलने लगा था। जिसका कारण था! मेरी माँ मेरे दादा-दादी से अलग रहना चाहती थी उनकी सोच थी कि मैं खूब कमाती हूँ तो अलग रह कर ऐशो-आराम की जिन्दगी जियेंगे मौज़ मस्ती से रहेंगे यहाँ इनकी रोटी बनाने नहीं रहना और पापा उनसे अलग नहीं रहना चाहते थे। वे कहते जो कुछ भी है रूखा-सूखा दादा-दादी के साथ ही मिल जुल कर खायेंगे।
धीरे-धीरे यह विवाद बढ़ता गया और फिर बात तलाक तक आ पहुँची।
और इस केस के चलते मेरे माता-पिता अलग-अलग रहने लगे यहाँ मेरी उम्र कम होने के कारण मेरी परवरिश के लिए अदालत ने मेरी माँ को सक्षम मानते हुए मुझे उनके सुपुर्द कर दिया।
फिर मेरे पिता ने मुझ पर अपना अधिकार जताया तब माननीय अदालत ने एक व्यवस्था के तहत सप्ताह में मुझे दो दिन पापा के साथ और पांच दिन माँ के साथ रहने के आदेश कर दिए और मैं उसी व्यवस्था के अनुसार इन दोनों के साथ रहने लगा।
पर आज जब मैं आठ साल का हो गया और इनके तलाक का फैसला भी आने में अधिक कोई अड़चन नहीं है बस यही कि मुझे किसके साथ रहना चाहिए।
हाँं जज साहब मैं समझता हूँ कि आज के फैसले के बाद मुझे या तो अपनी माँ के साथ रहना होगा या पिता के साथ और इसी के फैसले के लिए मैं बहुत सोच कर कहता हूँ कि मैं अपने पिता के साथ रहना चाहूंगा। बिट्टू के फैसले को सुनकर सुमन तो लगभग चीख ही पड़ी वह बोली नहीं•••यह कैसे हो सकता है ! मैंने नौ महीने इसे अपनी कोख में रखा है। इतना बड़ा किया है। तो दूसरी तरफ रमन को अपने कानों पर ही विश्वास नहीं हो रहा था कि बिट्टू मेरे साथ रहना चाहेगा।
अदालत में बैठे सभी उसके फैसले से आश्चर्य चकित थे स्वयं जज साहब भी इस फैसले का सोच भी नहीं रहे थे और उपस्थित जन समूह में सबसे पीछे बैठे बिट्टू के दादा-दादी की आंखों से आंसू बहने लगे थे। हाल में अधिक हलचल देख जज साहब ने ऑर्डर-ऑर्डर कह सभी को चुप रहने का संकेत किया और फिर बिट्टू से बोले बेटा क्या मैं जान सकता हूँ तुम्हारे इस फैसले का क्या कारण है? क्यों तुम अपनी माँ के साथ नहीं रहना चाहते? तब बिट्टू बोला जज साहब असल में यहाँ सवाल मेरा माँ या पिता के साथ रहने का नहीं है। सवाल है किस कारण से यहाँ यह केस चल रहा है। बिट्टू की बात किसी के समझ नहीं आई। तब जज साहब बोले तुम कहना क्या चाहते हो!स्पष्ट कहो! जिससे सभी लोग और अदालत भी समझ सके। तब बिट्टू बोला जज साहब आज से दो वर्ष पहले अदालत के हुए फैसले में मुझे कुछ दिन माँ के साथ नानी के घर रहना पड़ा तो कुछ दिन पिता के साथ रहना पड़ा इस बीच जब मैं नानी के घर रहता था उस वक्त नानी मेरी माँ को कई बार समझाती थी कि बेटा लड़की का ससुराल में ही रहना उचित होता है। इस तरह मायके में अच्छा नहीं वो कहतीं ये शादी विवाह के बंधन ईश्वर के द्वारा बनाये जाते हैं जिन्हें हम इंसानों को अपनी समझदारी से इन रिश्तों को निभाना होता है। छोटी-छोटी बातें हर घर परिवार में होतीं रहतीं हैं कोई नई बातें नहीं पर इस तरह कोई अपने ही दांपत्य जीवन को नष्ट नहीं करता। अरे बेटा तेरे सास-ससुर भी कितने दिन के मेहमान हैं और मैं भी कितने दिन तुम्हारे साथ रहूंगी। एक बात और मेरी नानी ही मेरा अधिक ख्याल रखी थी। मेरी माँ तो अधिकांश समय स्कूल और अपनी सहेलियों के साथ किटी पार्टी में मशगूल रहती थी कभी-कभी देर रात तक आती तो तब तक मैं अपनी नानी के साथ ही सो जाता था। सुबह नानी ही मुझे स्कूल के लिए तैयार करती मेरा लंच तैयार करती थी।
जज साहब मेरी नानी बहुत अच्छी है। और इधर जितने दिन मैं पिता के पास रहता उतने दिन मेरे दादा-दादी ही मेरा ख्याल रखते सच पूछो तो मुझ में उनकी जान थी। पिताजी देर रात आते और सो जाते मैं कैसा हूँ, क्या करता हूँ, क्या खाता हूँ इसकी उन्हें कोई फिक्र नहीं रहती थी।
रात को मैं अपने दादा-दादी के साथ ही सोता था वही सुबह मुझे स्कूल के लिए तैयार करते दादी ही मेरा लंच तैयार करती थी। मुझे किसी भी चीज की जरूरत रहती उसकी पूर्ति मेरे पापा नहीं मेरी दादी और दादा जी करते। वे मुझ पर अपनी जान तक निछावर करने से पीछे नहीं रहते थे। दादाजी और दादी ने भी पिताजी को समझाया उनसे कहा बेटा! यदि बहू हम लोगों के साथ नहीं रहना चाहती तो तूं जा उसके साथ रह। अरे हम लोगों के पीछे क्यों अपनी जिंदगी खराब करता है। हम तो पके हुए फल हैं कितने दिन डाल में लगे रहेंगे एक न एक दिन तो जमीन पर टपकना ही है। तब पिताजी कहते ऐसा कैसे हो सकता है! आखिर आप लोगों ने मुझे पैदा किया है पढ़ाया लिखाया है। अपनी सारी जिंदगी की कमाई मुझे सौंप दी। मेरी खातिर आप दोनों ने गरीबी में दिन कटे। अपने सुखों को नहीं देखा। भला आपके एहसानों को कैसे भूल सकता हूँ और यदि मैं ऐसा करूंगा तो कल मेरा बिट्टू भी वही सब करेगा जो मैं करूंगा। नहीं पिताजी मैं इतना खुदगर्ज नहीं और इस तरह हर बार बात आई गई हो जाती थी। जज साहब मेरे स्कूल के साथी भी मुझसे कहते कि बिट्टू! कभी तूं अपने पापा के घर से बस में बैठता है तो कभी नानी के घर से! जज साहब उस वक्त में चुप रह जाता हूँ पर उन्हें पता रहता है कि हमारे माता-पिता अलग-अलग रह रहे हैं तब उनमें से कोई कहता हमारे माता-पिता तो दादा -दादी के साथ रहते हैं। तो कोई-कोई कहता यार बिट्टू मेरे घर का भी हाल तेरे जैसा ही है,मेरे पापा हमारे दादाजी के साथ तो माँ नानी के साथ रहती है। मुझे भी अपने दादा-दादी के साथ रहने का मन करता है पर क्या करें हम छोटे बच्चे जो हैं।
बिट्टू आगें बोला जज साहब! मेरे पापा भले ही मेरा ख्याल नहीं रखते पर फिर भी मैं उन्हीं के साथ रहना चाहूंगा। कम-से-कम इस बहाने मैं अपने दादा-दादी के साथ तो रह लूंगा जो रात-दिन मेरी ही चिंता में घुट रहे हैं। देखो! जरा देखो! वहाँ पीछे की लाइन में वह दोनों बैठे हैं। अभी उनकी उम्र कुल साठ- बासठ साल ही होगी पर लग ऐसे रहे हैं जैसे अस्सी साल के हों हाँं जज साहब! यदि मैं अपनी माँ के साथ पूरी तरह चला जाऊंगा तो ये दोनों बमुश्किल एक साल तक ही जीवित रह पाएंगे!वह दोनों मर जाएंगे! हाँ जज साब वह दोनों मर जाएंगे! और मैं अपने दादा-दादी को मरते हुए नहीं देख सकता। अब आपको कैसे बतलाऊं कि वह मेरे लिए क्या नहीं करते शायद उतना एक मां-बाप भी नहीं करते होंगे जितना वे मेरे साथ करते हैं।
हाँं जज साहब मुंह का निवाला हो या दादी की साड़ी के छोर में बंधा हुआ एक सिक्का हो सब मुझ पर निछावर कर देती है। हाँं जज साहब जब मेरा इतना थोड़ा विछोह वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे तो हमेशा का बिछुड़ना वह कैसे सहन कर पाएंगे! वह जल्दी ही मर जाएंगे यहाँ बिट्टू अपनी ही धुन में कहे जा रहा था और उधर अदालत में बैठे सभी अपनी आंखों से आंसू बहा रहे थे। पीछे बैठे उसके दादा-दादी की तो सिसकियां ही निकल रही थीं। खुद जज साहब भी अपनी आंखों के आंसू रोक नहीं पाए तो बोले बस बिट्टू! बस!भगवान के लिए अब चुप हो जाओ और तभी सुमन भी खड़ी होकर रोते हुए बोली! जज साहब मुझे तलाक नहीं चाहिए! मैं अपने बिट्टू के साथ उसके दादा-दादी के साथ रहूंगी।
अदालत में बैठे सभी की आँखे नम थी और सन्नाटा छाया था। जिसे तोड़ते हुए जज साहब बोले आज बिट्टू के फैसले से मैं! मैं ही क्या! यहाँ उपस्थित सभी सोच रहे होंगे कि बिट्टू का फैसला वह फैसला है जिसे हम सभी को समझना चाहिए कि उसने ऐसा फैसला अपने दादा-दादी के लिए किया है। जबकि यह उसके माता-पिता को सोचना चाहिए कि जो माता-पिता जीवन भर हमारी परवरिश में अपनी सामर्थ्य से भी अधिक खर्च करने में सोचते तक नहीं तो वहीं अन्त में अपने जीवन भर की पूरी कमाई हुई पूंजी हँसते हुए हमें दे जाते हैं। यहाँ उपस्थित सभी को बिट्टू के फैसले का सम्मान करते हुए उसका अनुसरण करना चाहिए।
बिट्टू का यह फ़ैसला समाज में एक क्रान्ति की तरह चारों ओर जागृति लाने का काम करेगा मेरा ऐसा मानना है।
“यहाँ मैं खास कर हर बहू-बेटों से कहना चाहता हूँ कि वे बिट्टू के इस फैसले से शिक्षा जरूर लें जिससे उनके घर परिवार में विघटन और विद्रोह न हो सके और उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय बीते।
समाप्त