सागर/आर के तिवारी
अब चुप भी हो जाइए अब्बू। जब आपको कुछ पता ही नहीं तो मत बोला कीजिए। आपको पता भी है?आप क्या कह रहे हैं? आप अपनी ही बेटी पर तोहमत लगा रहे। भला उसकी गलती क्या है! अब वह यहाँ नहीं आएगी तो कहाँ जाएगी? औरतों का एक घर ससुराल होता है,कि दूसरा घर मायका। अब ससुराल में पति अच्छा मिले और सास-ससुर भी कायदे वाले हों, वजनदार हों तो औरतों को वह ससुराल जन्नत की तरह होती है। और गर बदमिजाज और बेगैरत हों बहू की कद्र करने वाले न हों बहू को तकलीफ दें! तो वही ससुराल उन बेटियों को जहन्नुम की तरह बन जाती है। हाँं जब उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया तो वह कहाँ जायेगी। उसकी क्या खता थी?बस उसने इतना ही कहा था कि, वह जो पढ़ाई कर रही थी उसका इम्तिहान देना है। जिसके लिए उसने इम्तिहान देने के लिए यहाँ आने की बात कही थी। जिस पर वो उसको आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे। उनका कहना था जितना पढ़ लिया सो पढ़ लिया! अब घर का काम करो। इस पर साहिबा ने उनसे मिन्नत भी की! कि इस साल का इम्तिहान दे लेने दें मेरी साल भर की मेहनत बेकार चली जायेगी! पर उसकी बात का उन पर कोई असर नहीं हुआ। जिस पर साहिबा ने जब इम्तिहान देने की जिद की तो उसकी सास ने दूल्हे मियां से कहा क़ासिम! इसे इसके मायके छोड़ आ! और क़ासिम इसे यहाँ ले आया क़ासिम मियां जब यहाँ आया उस वक़्त आप तो थे नहीं आप नवाज पढ़ने मस्जिद गये थे आपको क्या पता कि उसका मिज़ाज कैसा था। वह यहाँ आया और आते ही बड़ी बेअदबी से मुझसे बोला लीजिये!अपनी बहिन को अपने पास रखिये। इसे पढ़ाई का जुनून सवार है अब इसे यहीं रखिये और खूब पढ़ाईये ,डॉ बनाईये मैं कुछ समझूँ कुछ उससे बोलूं कि उसके पहले ही वह पाँव पटकते हुए घर से बाहर निकल गया।
अब आप ही बोलो साहिबा यहाँ हमारे पास नहीं रहे तो कहाँ रहेगी और एक आप हैं कि उसे ही भला बुरा कह रहे हैं । अरे आपको उसके इरादे के बारे में जानना चाहिए था! कि उसका इरादा क्या है?वह क्या चाहती है? अरे यार चार दिन हो गए उसे यहाँ आए हुए! तभी से रो-रो कर बुरा हाल है उसका,ऊपर से रोज़ा भी रखे है। अरे,आप बाप हैं! समाज की दकियानूशी बातों की सोचते रहेंगे कि लोग क्या कहेंगे! क्यों आई है यहाँ ? क्या कारण है? अरे जमाने में हर तरह के लोग होते हैं। कुछ सिर्फ लोगों में बुराईयां ही तलाशते हैं तो कुछ समझदार भी होते हैं। अरे भाई आज इंसान चांद पर पहुंच रहा है। पहले की बातें कुछ और थीं कि लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता था।अरे लड़कियों को ही क्या ! लड़के भी कहाँ सभी पढ़ पाते थे। पर अब जमाना बदल गया है।अब बिना पढ़ाई लिखाई के इंसान तरक्की नहीं कर सकता। वैसे भी हर इंसान को हक है कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो! तो मेरी बहन भी जो वह चाहेगी वह वही करेगी। खुदा यहाँ हम चार जन को पेट भर रोटी देता है तो उसे भी देगा! पर,उसका इरादा यदि और तालीम हासिल करने का है!तो वह जरूर पढ़ेगी! यदि आप उसका साथ नहीं दे सकते तो भी कोई बात नहीं पर मैं अपनी बहन के मकसद को पूरा करने में उसकी मदद जरूर करूंगा। सलीम अपने पिता हारून को समझा रहा था जो अपनी ही बेटी साहिबा जिसे ससुराल वाले उसके यहाँ छोड़ गये थे से कह रहा था कि जब तेरे ससुराल वाले नहीं चाहते कि तूं आगे न पढ़ाई करे तो तूं काहे को जिद किए है। पर सलीम की दलील सुनकर साहिबा की ओर मुखातिब होकर हारुन मियां उससे बड़ी मुहब्बत से बोले इधर आ! मेरे पास आ बेटा! बोल क्या चाहती है तूं? क्या है तेरा इरादा? तब साहिबा अपने पिता के पास जो सोफे पर बैठे थे वहीं जमीन पर बैठकर बोली अब्बू! मैं सिर्फ अपनी इस वर्ष की पढ़ाई पूरी करना चाहती हूँ जो मेरी शादी की वजह से पूरी नहीं हो सकी थी। मैंने अपने सास-ससुर से ये कभी नहीं कहा कि, मैं घर के काम नहीं करूंगी और न यह कहा कि मैं यहाँ ससुराल में नहीं रहना चाहती। मैंने सिर्फ यही कहा था कि मेरे इस साल का इम्तिहान करा दो बस।
इतनी सी बात पर सभी एक तरफ़ फैसला कर बैठे। बोले पढ़ाई-लिखाई कुछ नहीं होगी! न इस साल का इम्तिहान और न आगे की पढ़ाई। मैंने उनसे बहुत मिन्नते की!कि देखो! मेरी अभी तक की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। मेरे अब्बू ने बड़ी मेहनत से अपना पेट काट-काट कर मुझे पढ़ाया है। तब हारुन मियां बहुत अफसोस करते हुए साहिबा से बोले बेटा मुझे माफ़ कर दे,मैं तेरी ख्वाहिश को समझ नहीं पाया! जबकि तेरा भाई तेरे जज्बातों को समझ गया। हाँं बेटा तूं जब तक चाहे इस घर में रहे और जितना भी पढ़ना चाहे पढ़े, मेरी खुदा मदद करे जिससे मैं तेरी आरजू को पूरा कर सकूँ ।
तेरे भाई ने सच ही कहा है। बेटियों का मायके में पूरा अधिकार होता है। हाँं बेटा! तेरा इस घर पर पूरा-पूरा अधिकार है।
तूं अपनी पूरी तालीम हासिल कर। बेटा मुझे तेरी एक बात और भी बहुत अच्छी लगी कि, तूने यह नहीं कहा कि तूं अपनी ससुराल में नहीं रहना चाहती। मैं समझ सकता हूँ तेरे दिल में अपने पति और अपने सास-ससुर के प्रति लगाव है। तूं उनका, तेरे साथ किये रवैये से ख़फा नहीं है। तूं फिक्र न कर! मैं तेरे ससुर और पति क़ासिम से बात करूंगा।उन्हें समझाऊंगा। मैं तेरा घर बर्बाद नहीं होने दूंगा। मुझे भरोसा है वो लोग भी तेरे जज्बातों को ठंडे दिमाग से सोचकर जरूर समझेंगे।
इतना कहते-कहते हारुन मियां की आंखें भर आईं उन्होंने सलीम से कहा बेटा! खुदा तुझ जैसी औलाद सबको दे। जो अपने बाप को भी सही रास्ता दिखला सके और अपने बहन-भाई के रिश्तों की भी कद्र कर उनके बुरे वक्त में काम आए। जिससे भाई-बहन के रिश्ते हमेशा कायम रहें।
तब सलीम बोला अब्बू मुझे माफ़ करना। मैंने गुस्से में आपसे न जाने क्या-क्या कह डाला। जिस पर हारुन मियां मुस्कुराते हुए बोले कोई बात नहीं बेटा! तूने मुझे सही रास्ता दिखलाया है।
दूसरी तरफ पास ही बैठी साहिबा उन दोनों की बातें सुनकर मुस्कुराने लगी। जो एक सुकून की मुस्कुराहट थी।
समाप्त
