सागर/आर के तिवारी- देखो! बटुआ मिल गया
मैंने आवाज़ लगाई घर के अंदर से एक युवती दरवाजा खोल कर बाहर आई जिसके चेहरे और आंखों को देख मुझे लगा जैसे वह बहुत देर तक रोती रही हो! मुझे देख वह बोली कहिए किससे मिलना है?मैंने पूछा किशनलाल जी का घर यही है। उसने कहा हाँं वो अंदर हैं मैंने कहा क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?मेरी बात पर उसने अंदर की ओर मुड़कर पापा कहते हुए आवाज लगाई जिसे सुनकर एक तकरीबन साठ साल के वृद्ध व्यक्ति दरवाजे पर आए और मुझसे बोले कहिए! मैंने कहा आप ही किशनलाल जी हैं! वह बोले हाँ पर आप! मैंने देखा उनके चेहरे पर भी दुख और वेदना के चिन्ह स्पष्ट दिख रहे थे। उनकी भी आंखें लाल थी जिनमे अभी भी आंसुओं की हल्की झलक साफ दिख रही थी। मैंने कहा मेरा नाम रामलाल है मैं बच्चों की स्कूल के पास चाट की दुकान लगाता हूँ। कल शाम मैं अपनी दुकान बंद कर घर जाने के पहले हमेशा की तरह झाड़ू लगा कर सफाई कर रहा था तब सफाई के दौरान यह बटुआ वहाँ पड़ा मिला उस वक्त वहाँ कोई नहीं था जिससे मैं पूछ सकूं कि यह किसका है। तब इसे अपने जेब में रखकर मैं अपने घर चला गया। घर पर इत्मीनान से इसे खोला तो इसमें रखे पैसों के साथ एक कार्ड मिला जिससे आपके घर का पता चला जिसमें फोन नंबर भी लिखा था जिसे मैंने कई बार लगाया पर वह लगा नहीं इतना कहते हुए मैंने वह बटुआ उन्हें दे दिया जिसे देख वे झपटते हुए से लेते हुए रोने लगे और बोले आपने मुझ गरीब की जिंदगी बचा ली,मेरी बेटी की जिंदगी बचा ली हाँ अब याद आया मैं उस स्कूल के पास से गुज़रा था तभी मेरे एक परिचित का फोन आया मैंने साईकिल से उतर कर फोन पर बात की और फोन वापिस जेब में रख घर चला आया संभवतः यह बटुआ वहीं फोन निकालने रखने के दौरान गिर गया होगा। रात को लाइट न होने के कारण फोन भी डिस्चार्ज हो गया था। तब मैंने उनसे कहा आप देख लीजिए, इसमें रखे पैसे पूरे हैं कि नहीं। तब वे बोले आप कैसी बातें करते हैं! यदि बटुआ मिला है तो पैसे भी पूरे होंगे।
मैंने कहा फिर भी देख लीजिए जिस पर वो बोले अरे! क्षमा करें मैं आपको अंदर तक आने का कहना भूल गया आईये-आईये अंदर आईयेगा तब मैं अंदर गया। मैंने उस छोटे से कमरे में देखा, एक कोने में एक महिला जो भी गमगीन ही बैठी थी जिससे वो बोले अरे सुनती हो रमा! देखो! बटुआ मिल गया। जिसे सुनते ही वह बहुत खुश और आश्चर्य करते होते हुए बोलीं क्या? और भगवान का धन्यवाद करने लगीं । मुझे एक कुर्सी पर बैठने का इशारा कर उसी युवती से वे बोले बेटा कुसुम! जा अंकल को पानी ला और फटाफट चाय बना दे। मुझे भी एक कप दे देना। मैं उन्हें ऐसे देख रहा था जैसे मैंने वास्तव में किसी मरे हुए व्यक्ति में जान डाल दी हो। मैं कुर्सी पर बैठते हुए उनसे फिर बोला एक बार आप अपना बटुआ तो देख लीजिए। जिस पर वे बोले भाई साहब आप क्या समझ रहे हैं! मैं और मेरा परिवार इसमें रखे पैसों के लिए दुखी हैं। नहीं, पैसे तो मुश्किल से हजार दो हजार ही होंगे। अरे! इसमें मेरी इस बिटिया की नौकरी का आर्डर रखा था, जिसे कल ही की तारीख में दूसरे शहर जाकर जॉइनिंग देना है। मुझे आप ईश्वर के द्वारा भेजे उनके दूत की तरह हैं जिनसे हम सभी, रात भर प्रार्थना करते रहे।
जब तक चाय आ गई मैंने और किशन लाल जी ने चाय पी चाय पीकर मैं उठकर बैठक से बाहर जाने लगा तो वह बोले भाई साहब मैं किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूं समझ नहीं पा रहा हूँ ।
तब मैंने कहा अरे भाई धन्यवाद उस ईश्वर का करो जिसने मेरे मन में इस बटुए में रखे पैसों को देख लोभ नहीं आने दिया क्योंकि उसे पता था कि इस बिटिया का भाग्य ही इस बटुए में है। नहीं तो मैं इसके पैसे निकाल कर बाक़ी के कागज और यह बटुआ किसी नाले या कचरे में फेंक देता।
इतना कहता हुआ मैं उनसे राम-राम करता कमरे से बाहर निकल आया।
समाप्त