क्या हुआ नजमा! यूं रंजो-गम किये क्यों बैठी हो?
सागर/आर के तिवारी
नजमा को गमगीन सा चुपचाप बैठे देखा तो उसकी ननंद जो अपनी ससुराल से अपने शौहर से किसी विवाद के चलते अपने मायके में ही तकरीबन पांच साल से रह रही थी, ने पूछा क्या बात है नजमा? किसी ने कुछ कहा क्या? सलीम से कुछ अनबन हुई क्या? तब नजमा ने कहा नहीं दीदी अनबन नहीं हुई यदि अनबन हुई होती तो कोई फर्क नहीं पड़ता अनबन तो कभी ना कभी खत्म हो ही जाती है। पर आपके भाई ने मेरा दिल तोड़ दिया है उन्होंने ऐसी बात कह दी जिसकी मैं कभी उम्मीद भी नहीं करती थी। जिस पर नूरी बोली पर ऐसा क्या हो गया और सलीम ने ऐसी कौन सी बात कह दी मुझे भी बतलाओगी कि नहीं, तब नजमा बोली दीदी आप बतलाइए ये तीन-तीन बच्चे क्या सिर्फ मेरे हैं?नूरी बोली नहीं तीनों बच्चे तुम्हारे और सलीम की ही औलाद हैं पर इससे तुम्हारे गमगीन होने से क्या वास्ता।तब नजमा बोली दीदी असल में बहुत दिनों से मुझे कमजोरी महसूस हो रही थी कभी-कभी चक्कर भी आ जाया करता था, तब आज सुबह सलीम को खाना खिलाने के बाद मैंने कहा सुनिए जी आज शाम को काम से लौटते हुए कुछ मेवा और थोड़ी शिलाजीत लेते आना!तो वह बोले पर क्यों लेता आऊँगा।क्या जरूरत है। मैंने कहा कुछ दिनों से बहुत थकान हो रही है कमजोरी महसूस हो रही है इसलिए। जिस पर वो बोले अरे काहे की थकान। दिन भर क्या करती रहती हो? तब मैंने कहा घर के सभी काम तो मुझे ही करना पढ़ते हैं। खाना बनाना,घर में झाड़ू पोछा बर्तन साफ करना। बच्चों की परवरिश करना। जिस पर वह बोले! यह कोई बड़े काम नहीं है सभी औरतें करतीं हैं और कोई भी कर सकता है वैसे भी पैसा कैसे कमाया जाता है मैं समझता हूँ दिन-दिन भर एक पैर पर खड़ा रहकर काम करता हूँ जब महीने के आखिरी दिन पैसा मिलता है।
मैं घर के खर्चों की कैसे पूर्ति करता हूँ यह मैं ही जानता हूँ और बच्चों की परवरिश में तुम क्या करती हो? क्या हाथ से निवाले खिलाती हो! वो सुबह स्कूल जाते हैं शाम को आते हैं फिर दिन भर तुम क्या करती हो!आराम ही तो करती हो, अरे आए दिन तो तुम नॉनवेज खाना बनाती हो इसके बावजूद भी तुम कहती हो कि कमजोरी हो रही है।
नूरी नजमा को समझाते हुए बोली नजमा यह एक सलीम की ही बात नहीं है उसकी तरह सोच रखने वाले बहुत से मर्द होती हैं जिन्हें औरतों की तकलीफों का अंदाजा नहीं होता इसमें उनकी कोई गलती भी नहीं क्योंकि उन्हें इन बातों का ख्याल भी नहीं आता वे इन बातों से अनभिज्ञ रहते हैं।
मुझे देख! और अपने आप को देख मुझसे तूं लाख दर्जे अच्छी है मेरी मजबूरी देख! मुझे आज तेरे यहाँ रहते हुए पांच साल हो गए पर तेरे दूल्हे मियां ने आज तक मेरी खैर खबर नहीं ली तूं तो यहाँ फिर भी अपने बच्चों के साथ रह रही है। वैसे एक बात जरूर कहूंगी मैंने कह तो दिया है कि यह अकेले सलीम की बात नहीं है, इस तरह की सोच कई लोग रखते हैं पर मेरा सलीम औरों की तरह नहीं है। तेरी सभी ज़रूरतें सलीम ही तो पूरी करता है। जरूर कोई बात होगी जिस वजह से ही सलीम ने आज तुझे ऐसा बोला। अरे घर के बाहर की दुनियाँ में मर्दों को भी न जाने कितनी टेंशन होती है। फिर भी मैं यही कहूंगी सलीम को तेरे साथ ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए था। मैं जानती हूँ मर्दों को भी जमाने की उलझनें रहतीं हैं,परेशानियाँ होतीं हैं।
इन्हीं परेशानियों के कारण उसने ऐसा बोल दिया होगा। फिर भी मैं यही कहूँगी उसे अपने अल्फाजों को बोलने के पहले समझ लेना चाहिए था कि इससे तेरे दिल पर क्या गुजरेगी। एक बात और मैं कहूंगी हम औरतें भी अपनी कुछ ना कुछ फरमायेंसें जायज या नाजायज उनके सामने रख दिया करते हैं। जबकि हमें भी उनकी समस्याएं समझने की कोशिश करना चाहिए। आखिर उनके बिना भी तो हम अधूरे हैं गर वो खुश नहीं रहेंगे तो हम भी कैसे खुश रह पायेंगे । देख एक बात और कहती हूँ हम औरतों की परेशानियों को हर कोई नहीं समझता पर हमें भी यह नहीं सोचना चाहिए कि वे सब कुछ समझते हैं।
भला उन्हें क्या पता कि तुम्हें घर के कामों में कितनी थकान होती है। यह बात अलग है उसे भी इस तरह दो टूक नहीं कहना चाहिए था।
पर तूं भी एक ही बात की गाँठ बांधकर इस तरह गमगीन होकर अपना और उसका दोनों का खाना खराब ही करेगी और कुछ नहीं होगा। अरे मियां बीवी में छोटी-छोटी तकरारें तो होती ही रहतीं हैं पर उन्हें अधिक तवज्जों नहीं दिया करते। मैं तो यहाँ तक कहती हूँ उसे तो इस बात का इल्म भी नहीं होगा कि तुझे उसकी बात का इस कदर बुरा लगा है क्योंकि मैं भी अपने भाई को जानती हूँ वह दिल का बिल्कुल नेक है। अरे पगली! क्या तूं उससे कभी कुछ तीखी बातें न बोल देती होगी। तो क्या वह तेरी तरह रोता बैठ जाता है। काम को नहीं जाता। अरे मर्दों के दिल भी फूल की तरह होते हैं पर उन्हें वे पत्थर की तरह मजबूत बनाये रहते हैं। मैं तो यहाँ तक कहती हूँ कि तूं यहाँ खाना पीना छोड़े गमगीन बैठी है और उसे इस सबका एहसास ही नहीं होगा कि तुझे उसकी बात इतनी नागवार लगी और देखना शाम को हर दिन की तरह जैसा आता है वैसा ही आएगा।
नूरी दीदी कि समझायस पर नजमा को भी अपने द्वारा सलीम से किये गए रूखे व्यवहार की याद आ गई! उसे याद आया एक दिन सलीम ने बोला नजमा मुझे आज जल्दी जाना है तुम सब काम छोड़कर मुझे अलग से चार परांठे बना दो खाना बाद में बना लेना। जिसमें मैं ही तुनक कर बोली थी मेरे क्या चार हाथ हैं अभी बच्चों को नाश्ता बनाया अब्बू को अलग से सिमईया चाहिए थी वह बनाई अब बीच में आपको परांठे चाहिए मैं भी औरत हूँ कोई मशीन नहीं। जिस पर भी सलीम ने मोहब्बत से यही कहा था मुझे पता है तुम्हें सभी काम करना पड़ रहे हैं अरे भाई तुम ही तो घर की मालकिन हो फिर और कौन करेगा। मैं नहीं जानता मुझे बस चार परांठे बना दो और मैंने भी बेमन से झुंझलाते हुए परांठे बना कर एक टिफिन में सलीम के हाथ में करीब करीब गुस्से में दे दिये जिस पर भी उसने मुस्कुराते हुए टिफ़िन लेते हुए एक गाना
गुनगुना दिया “बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा” और टिफ़िन लेकर घर से बाहर चला गया था। नजमा को इस तरह की कई छोटी-छोटी बातें याद आ गईं जब वह भी सलीम से रूखा- रूखा व्यवहार कर दिया करती थी। वह यह सब सोच ही रही थी कि तभी नूरी बोली अरे कहाँ खो गईं मेरी कोहिनूर जिस पर नजमा आखों में आंसू लिए बोली मुझे माफ़ कर दो दीदी आप सच कह रही हैं हम औरतें अपना ही सोचते हैं अपने मर्दों की नहीं सोचते। जिस पर नूरी बोली देख जिस तरह सभी मर्द गलती नहीं करते तो सभी औरतें भी गलती नहीं करतीं।
देख मुझे ही देख मेरे शौहर से तो मेरा भाई लाख दर्जा अच्छा है। मैं भी अपनी ससुराल में घर के सभी काम किया करती थी। अपने सास-ससुर का भी खूब ख़्याल रखती थी पर वहाँ मेरी कदर कोई नहीं करता था। सास-ससुर की कुछ मजबूरियां थी वो बेचारे क्या करते! बुढ़ापा था तो मेरे शौहर की कमाई पर ही जिंदा थे जिसका मेरे शौहर को कुछ अधिक ही गुमान था। वह आए दिन शराब के नशे में आता और मेरे साथ मारपीट करता था। जब मेरी बर्दाश्त से बाहर बात हो गई तो मैंने अपने एक पड़ोसी से सलीम के पास खबर भेज दी और मेरे भाई ने खबर मिलते ही देर किए बिना मेरे यहाँ पहुंच कर पूरी बिरादरी के सामने मेरे शौहर को भला बुरा कहा और मुझे अपने साथ यहाँ ले आया इसलिए कहती हूँ सभी मर्द एक से नहीं होते। चल अब उठ! और हाथ मुंह धो ले सलीम के आने का वक्त हो रहा है। तब नजमा उठी और हाथ मुंह धोकर फुर्सत ही हुई थी कि दरवाजे से सलीम की आवाज आई जो हमेशा से अपनी बड़ी बेटी बुलबुल को ही बुलाता आता था। नजमा और नूरी ने देखा सलीम के दोनों हाथों में भरे हुए थैले थे जिन्हें देख नूरी बोली सलीम! यह क्या है! पूरा बाजार ही उठा लाया क्या? जिस पर सलीम मुस्कुराता हुआ और नजमा की ओर देखता हुआ बोला दीदी नजमा अब कमजोर हो गई है। बेचारी काम करते-करते थक जाती है। इसलिए मैं कुछ मेवा लाया हूँ तूं इन मेवों को गुड़ मिलाकर इसे खिला दे जिससे यह चंगी-फंगी हो जाए आज सुबह-सुबह मैंने इसका मूड खराब कर दिया था। सलीम की इस तरह की प्यार भरी फिकरे बाज़ी सुनकर जहाँ नूरी को हंसी आ गई तो दूसरी ओर नजमा की आंखों में आंसू आ गए जिन्हें देखते हुए सलीम बोला अरे, मेरी बेगम की आंखों में आंसू! और बोला तूं चाहे तो जो तेरे मन में हो मुझसे कह दे पर इन्हें रोक कर रख। ये बहुत कीमती हैं। इन्हें अपनी प्यारी बुलबुल की विदाई के लिए संभाल कर रख जिस पर नजमा जोर से रोते हुए सलीम के सीने से लिपटकर बोली मुझे माफ़ कर दो मैं बहुत खुदगर्ज हूँ । तब नूरी ने कहा अब क्या यार तुम दोनों सारे गिले सिकवे अभी ही निकाल लोगे और नजमा से बोली अब चलो भाई फटाफट सलीम को चाय बनाओ जिससे मुझे भी मिल जाए। जिसे सुनते ही तीनों जोर से खिलखिला कर हंस दिए और गमगीन माहौल में खुशी की फ़िजा फ़ैल गई।
समाप्त