लेख़क ~ ज्योति शर्मा
आधुनिक जीवन की तेज़ रफ्तार में हम सब किसी न किसी चीज़ की तलाश में भाग रहे हैं—सफलता, नाम, धन, पद—मगर इस भागदौड़ में जो सबसे ज़रूरी चीज़ अक्सर पीछे छूट जाती है, वह है “खुशी”।
जी हाँ, वही खुशी, जो कभी एक बच्चे की मुस्कान में दिखती है, कभी माँ के हाथ की रोटी में मिलती है, कभी किसी पुराने दोस्त के साथ बिताए एक पल में झलकती है। पर क्या आपने गौर किया है कि जैसे-जैसे हमारी जिंदगी ‘आधुनिक’ होती जा रही है, ये छोटी-छोटी खुशियाँ हमसे दूर होती जा रही हैं?
क्या आप जानते है ? वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 के अनुसार
दुनिया में सबसे खुशहाल देश फिनलैंड है। इस मामले में फिनलैंड ने लगातार आठवें साल नंबर-1 रैंकिंग बरकरार रखी है। वेलबीइंग रिसर्च सेंटर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने 20 मार्च यानी वर्ल्ड हैप्पीनेस डे पर वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स 2025 जारी किया। सबसे खुशहाल देश के रूप में फिनलैंड 7.7 पाइंट के साथ पहले पायदान पर है। फिनलैंड के अलावा, डेनमार्क, आइसलैंड और स्वीडन टॉप चार में बने हुए हैं। ये सभी नॉर्डिक देश भी कहे जाते हैं। 147 देशों की इस लिस्ट में भारत 4.3 पाइंट के साथ इस बार 118वें स्थान पर रहा है। पिछली बार भारत लिस्ट में 126वें स्थान पर रहा था। इस मामले में भारत, पाकिस्तान और नेपाल से भी पीछे है।
हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत की स्थिति में सुधार
हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत पिछले साल के मुकाबले आठ पायदान ऊपर आया है। हालांकि, पाकिस्तान भारत से ऊपर है। 2025 की हैप्पीनेस लिस्ट में पाकिस्तान को 109वां स्थान मिला है। वहीं नेपाल भी भारत से ऊपर रहा, उसे 92 वां स्थान मिला है। जबकि श्रीलंका (133) और बांग्लादेश (134) भारत से पीछे हैं। इन देशों की रैंकिंग उन जवाबों पर आधारित थी जो लोगों ने अपने जीवन को रेट करने के लिए पूछे जाने पर दिया। यह स्टडी एनालिटिक्स फर्म गैलप और UN सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क ने किया।
इस लिस्ट में यूक्रेन, मोजाम्बिक, ईरान, इराक, पाकिस्तान, फिलिस्तीन, कांगो, युगांडा, गाम्बिया और वेनेजुएला जैसे देशों की रैंकिंग युद्ध, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे से घिरे होने के बाद भी भारत से अच्छी है।
इस लिस्ट में यूक्रेन, मोजाम्बिक, ईरान, इराक, पाकिस्तान, फिलिस्तीन, कांगो, युगांडा, गाम्बिया और वेनेजुएला जैसे देशों की रैंकिंग युद्ध, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे से घिरे होने के बाद भी भारत से अच्छी है। हैप्पीनेस के निर्धारक: विश्वास, सामाजिक संबंध, शेयर्ड मील और सामुदायिक दयालुता जैसे कारकों की खुशी में अहम भूमिका है, जो सामान्यतः धन से भी अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। भारत हालिया वर्षों में 2022 ही में टॉप-100 में जगह बनाने में कामयाब हुआ था। हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत का स्थान कम होने के कई कारण हैं। जिनमें असमानता, सामाजिक समर्थन की कमी, भ्रष्टाचार और उदारता की कमी शामिल हैं, जो भारत को खुशहाल देशों की सूची में पीछे धकेलते हैं।
ये आंकड़े हमे मजबूर कर रहे है कि
आख़िर खुशी है क्या? खुशी कोई वस्तु नहीं जिसे खरीदा जा सके। यह न कोई गंतव्य है, न कोई उपलब्धि; यह एक भाव है, एक अवस्था है, जो हमें हर उस क्षण में मिल सकती है जहाँ हम अपने और अपने आसपास के लोगों से जुड़ाव महसूस करते हैं।
पर अफ़सोस, हमने खुशी को भी एक ‘लक्ष्य’ बना लिया है—”जब मुझे नौकरी मिलेगी, तब खुश रहूँगा”, “जब घर बन जाएगा, तब खुशी आएगी”, “जब लोग मेरी तारीफ करेंगे, तब मैं खुद को सफल और खुश मानूँगा।”
पर क्या कभी ऐसा हुआ कि मंज़िल पाने के बाद वह खुशी वैसी ही रही जैसी कल्पना थी? शायद नहीं। क्योंकि खुशी मंज़िल में नहीं, रास्ते में छिपी होती है।
आज हम तकनीकी युग में जी रहे हैं। स्मार्टफोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया—ये सब हमें जोड़ने के लिए बनाए गए थे, मगर क्या आज हम वाकई जुड़े हुए हैं?
सोशल मीडिया पर ‘लाइक्स’ और ‘फॉलोअर्स’ के पीछे भागते हुए हम अपने जीवन की सादगी, आत्मीयता और मन की शांति कहीं खो बैठे हैं। हमारी मुस्कान अब स्क्रीन की रोशनी में धुंधली हो चुकी है, और असली बातचीत व भावनाएं इमोजी में सिमट गई हैं।
कभी-कभी लगता है कि हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि हँसने के लिए भी ‘कारण’ चाहिए, जबकि बचपन में तो हम हर चीज़ में खुशी ढूंढ लेते थे।
तो क्या सच में खुशी की चाबी हमारे हाथ से निकल चुकी है? नहीं, बिल्कुल नहीं।
खुशी पाने का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है “स्वीकृति”—स्वयं को, अपने हालात को, अपनी सीमाओं और अच्छाइयों को स्वीकार करना। जब हम तुलना करना बंद करते हैं, तब ही खुशी प्रवेश करती है।
दूसरा कदम है “आभार”। रोज़ सुबह उठकर जिन चीज़ों के लिए आप कृतज्ञ हो सकते हैं, उन्हें गिनिए—स्वस्थ शरीर, परिवार, एक दोस्त, या सिर्फ़ ये जीवन ही।
तीसरा और शायद सबसे ज़रूरी पहलू है “संबंधों में निवेश”। एक सच्ची बातचीत, बिना शर्त प्यार, किसी का साथ—ये वो चीज़ें हैं जो सबसे गहरे स्तर पर हमें खुशी देती हैं।
एक समाज, जो प्रतिस्पर्धा से भरा हो, वहाँ व्यक्ति की खुशी अक्सर सफलता से मापी जाती है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि हर व्यक्ति की खुशी का माप अलग होता है। किसी के लिए गाँव की मिट्टी में चलना खुशी हो सकती है, तो किसी के लिए किताबों में खो जाना।
सरकारों और नीतियों को भी यह समझना होगा कि मानव विकास केवल जीडीपी से नहीं, बल्कि ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ से भी मापा जाना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साथ-साथ मानसिक शांति, सामाजिक जुड़ाव और संस्कृति का संरक्षण भी एक खुशहाल समाज की नींव हैं।
सुबह की एक सैर,बच्चों के साथ खेलना,किसी ज़रूरतमंद की मदद,एक पुरानी किताब पढ़ना,बिना वजह गुनगुनाना,खुद से खुद की बातचीत ये सब चीज़ें पैसे नहीं माँगतीं, बस समय और ध्यान माँगती हैं। इन छोटे-छोटे रास्तों से बड़ी खुशियों को पाया जा सकता है। अंत मे मेरी बात का यही निष्कर्ष निकलता है कि खुशी कोई पहेली नहीं है, जिसे सुलझाना हो। यह वह धुन है, जो हमारे भीतर हमेशा बजती रहती है—बस हमें उसे सुनने के लिए शोर से दूर जाना होता है।
इस भागती दुनिया में ज़रा ठहरिए। अपने मन को टटोलिए। वहाँ कहीं, गहराई में, एक मासूम मुस्कान आज भी आपका इंतज़ार कर रही है।
आइए, आज हम तय करें कि हम ज़िन्दगी को ‘सिर्फ़ काटेंगे’ नहीं, बल्कि जिएँगे—हर उस पल में खुशी ढूँढते हुए जिसे हमने कभी नज़रअंदाज़ कर दिया था।
अपनी बात को एक शायराना अंदाज़ में समाप्त करूंगी की-
“खुशियाँ तलाशें नहीं, बाँट लिया करो,
हर मुस्कान में ज़िन्दगी जी लिया करो।
जो पास है उसी में बहारें हैं छुपी,
हर लम्हे को गले से लगा लिया करो।
