संस्कारवान युवा ही वर्तमान पीढ़ी की सबसे बड़ी धरोहर हैं तथा संस्कारहीन युवा शिक्षा जगत की सबसे बड़ी समस्या है- अपर कलेक्टर रूपेश उपाध्याय
सागरI पं. दीनदयाल उपाध्याय, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, सागर में भारतीय ज्ञान परम्परा के अंतर्गत गुरू पूर्णिमा महोत्सव में व्याख्यानमाला, भाषण तथा गीत-कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अपर कलेक्टर रूपेश उपाध्याय, मुख्य वक्ता डाॅ जी.एस. चैबे, विशिष्ट अतिथि सुकदेव तिवारी, नितिन शर्मा, जनभागीदारी अध्यक्ष तथा प्रमोद चौबे तथा अध्यक्ष के रूप में डाॅ सरोज गुप्ता प्राचार्य उपस्थित रही।

मुख्य अतिथि अपर कलेक्टर रूपेश उपाध्याय ने कहा कि युवा पीढ़ी में संस्कारवान युवा ही वर्तमान पीढ़ी की सबसे बड़ी धरोहर हैं तथा संस्कारहीन युवा शिक्षा जगत की सबसे बड़ी समस्या है। हमे इस विषय पर आज के दिन मंथन करना चाहिए। शिष्यों को अपने गुरूजनों का सम्मान करके भारतीय प्राचीन परम्परा का निर्वहन करना चाहिए। मुख्य वक्ता डाॅ जी एस चौबे ने कहा कि गुरू के प्रति समर्पण, आस्था तथा विश्वास के कारण शिष्य सभी संकटों से परे हो जाता है। गुरू की महिमा के रूप में ब्रहमा, विष्णु, महेश के सभी गुणों को ज्ञान के रूप में समाहित किया जा सकता है। वास्तव में गुरू ऐसे सरोवर हैं जिनमें स्नान कर शिष्यों को शांति मिलती है। पृथ्वी को यदि कागज बनाया जाए और दरख्तों को कलम बनाकर सातों समुद्रों की स्याही बनाकर भी गुरू की महिमा का बखान भी नहीं किया जा सकता है। गुरू जड़ और शिष्य फूल के समान है।
वरिष्ट शिक्षक एवं साहित्यकार श्री सुकदेव तिवारी ने भारतीय प्राचीन वैदिक परम्परा के संबंध में बताया कि 18 पुराणों की रचना ब्रहमा से प्रारंभ होकर ब्रहमांण पुराण पर सामप्त होती है। आपने प्राचीन वैदिक ज्ञान जिसमें चार वेद, चार उपवेद, 18 पुराण, 18 उपपुराण और 6 वेदांग का उल्लेख करते हुये इन 50 ग्रंथों को भारतीय ज्ञानपरम्परा की धरोहर बताया। आपने भारद्वाज ऋषि द्वारा भगवान राम को वैदिक मार्ग पर चलने की कथा का विस्तार से वर्णन किया। जनभागीदारी अध्यक्ष नितिन शर्मा ने कहा कि भारत गुरू शिष्य परंपरा का देश है जिसमें चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, रामदास शिवाजी, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद जैसे अनेक गुरू शिष्यों ने भारत में संस्कारों की धरोहर को पल्लवित करने का कार्य किया है। डाॅ सरोज गुप्ता ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि गुरू स्वयं पूर्ण ईश्वर है गुरू ही रचयिता है, गुरू ही पालनकर्ता है और गुरू ही संहारक है। गुरू के बिना भवसागर पार करना असंभव है स्वतंत्रता के पूर्व अंग्रेजों ने लगभग साढ़े सात लाख भारतीय गुरूकुलों की परम्परा को समाप्त कर मैकाले की मानसिक गुलाम बनाने वाली शिक्षा को आरंभ किया जिसका परिणाम यह हुआ कि हम तन से भारतीय और मस्तिस्क से अंग्रेज बन गये। कुलगुरू परम्परा को फिर से अस्तित्व में लाकर हम भारतीय ज्ञानपरम्परा की श्रेष्ठता को प्राप्त कर सकते हैं। पं. प्रमोद चौबे ने कहा कि वैदिक काल में गुरू पूर्णिमा का दिन शिक्षा सत्र के प्रारंभ करने का समय होता था। गुरू अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले मार्गदर्शक हैं। कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों द्वारा भाषण एवं गीत प्रतियोगिता का आयोजन किया गया तथा भोपाल से प्रसारित डाॅ मोहन यादव मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम का प्रसारण महाविद्यालय परिवार ने देखा। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ के जिला नोडल डाॅ अमर कुमार जैन ने किया। कार्यक्रम में 300 से अधिक विद्यार्थी उपस्थित थे।
