ज्योति शर्मा
भारतीय संस्कृति में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नवरात्रि के नौ दिन होते हैं जिनमें मां शक्ति की उपासना की जाती है। मां शक्ति इन्हीं सभी नौ दिनों में अलग-अलग रूप धारण करती है और अपने भक्तों पर कृपा – आशीर्वाद बरसाती है । मां शक्ति हमारे बीच नौ दिन आकर हमे बताती है कि नारी को किस तरीके से सम्मान दिया दिया जाए,वह किस तरह पूज्यनीय है। मां शक्ति के यह रूप न केवल मां जगदंबे की आराधना से जुड़े हुए हैं बल्कि प्रत्येक नारी के जीवन से भी जुड़े हुए हैं ।
नारी, न केवल एक शक्ति का प्रतीक है बल्कि वह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका महत्व हमें समझना चाहिए। नारी न केवल एक जीवन की आरंभिक शक्ति होती है, बल्कि वह समाज की शक्ति दाता है।
नारी के पास अद्वितीय गुण होते हैं – सहानुभूति, संवाद, और साहस। जिससे वह अपने परिवार, समाज, और देश की रक्षा करने के लिए तैयार रहती है।
इन गुणों के अलावा नारी में एक “सहनशक्ति ” का भी विशेष गुण होता है, जिस गुण से वह अपने न किए जाने वाले सम्मान को बल्कि अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को भी सहन कर जाती हैं । नारी के इसी गुण को समाज सबसे अधिक आजमाता है कि यह तो सब कुछ सह जाएगी।
लेकिन हमारे समाज को यह समझना होगा कि नारी का महत्व सिर्फ उसके शारीरिक शक्ति से ही नहीं, बल्कि उसकी बुद्धि, विचारशीलता, और उसके सामाजिक साहस से भी होता है। वह पढ़ाई करती है, व्यवसाय में सफलता प्राप्त करती है, और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए कठिनाइयों का सामना करती है।सरहद पर अपनी जान की बाज़ी लगा देती है । सभी कर्तव्यों को पूण्य करने के बाद भी क्या यह नारी माँ शक्ति के समान पूज्यनीय नही है?
नारी हमारे समाज मे समृद्धि और सामाजिक सुधार लाती है। उसकी आत्मनिर्भरता, साहस, और संघर्ष की कहानियाँ हमें प्रेरित कर सकती हैं कि हम सभी कुछ पा सकते हैं, चाहे कुछ भी हो। नारी को शक्ति का प्रतीक मानना हम सभी की जिम्मेदारी है, और हमें उसके समर्थन में खड़े होना चाहिए, ताकि वह अपने सपनों को पूरा कर सके और समाज में सबके साथ उनकी साक्षरता और समानता का समर्थन कर सके। नारी वह शक्ति है जो हमारे समाज की साक्षरता, विकास, और सामाजिक प्रगति की दिशा में हमारे साथ है, और हमें उसका सम्मान और समर्थन देना चाहिए।
साथ ही सबसे पहले हमारे समाज की नारी वर्ग को यह समझना महत्वपूर्ण है की वह माँ शक्ति की तरह ही शक्तिशाली है । वह ऐसा सब कुछ करने में समर्थ हैं जिससे वह इस समाज का और स्वयं उसका भला कर सके।
हमारे पुराणों में भी नारी का महत्व व्यापक रूप से उजागर होता है, और उन्हें दिव्य और शक्तिशाली प्रतीक बताया गया है। भारतीय पौराणिक कथाओं के माध्यम से, नारी को देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है और विभिन्न देवियों के माध्यम से उनकी महत्वपूर्ण भूमि को समझाया गया है।
नारी के शक्ति रूप और उसके महत्व को हमारे समाज के द्वारा विशेष बोले जाने वाले आदर्श शब्दों से समझ सकते है-
(मनुस्मृति ३/५६ ।। के अनुसार)
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
अर्थात जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
इसी के अनुसार नारी वर्ग को ही नही बल्कि समस्त समाज को यह समझना होगा कि जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते है उसी तरह हमारे समाज मे पुरुष और नारी दोनों को समान सम्मान और समानता का अधिकार जरूरी है।
‘नारी न केवल मात्र स्त्री है बल्कि वह स्वयं शक्ति है।’