- सागर / आर के तिवारी
महिने की पहली तारीख थी मैं बैंक से पैन्शन निकाल कर बाज़ार से सब्जी-भाजी और कुछ किराने का सामान लेकर खुशी-खुशी घर आया।
मैं जैसे ही घर पहुंचा मेरे छोटे-छोटे दो नाती नातिन दौड़ कर मेरे पास आये और उन्होंने मेरे दोनों थैले अपने छोटे-छोटे हाथों से लेना चाहे मैंने कहा रुको जरा बेटा बजन दार हैं! अन्दर को चलो और इतना कहते मैं अन्दर वाले कमरे में पहुँच गया और वहीं जमीन पर बैठकर मैंने थैलियों में से जिसके लिए वो उतावले हो रहे थे कुछ नमकीन और गरमा-गरम समोसे निकाल दिये उन्हें पता था आज “पहली तारीख” है दादू पैन्शन निकाल कर आयेंगे और हमें गरमा-गरम समोसे जरूर लायेंगे। बेचारे बच्चे पूरा एक माह तक पहली तारीख का इन्तजार करते हैं। हाँ क्योंकि सभी खर्चे निकालने के बाद पैन्शन बमुश्किल पन्द्रह तारीख़ तक ही चल पाती है और फिर परचून वाले से, दूध वाले से उधार ले कर गुजारा करते हैं।
अभी मैं बच्चों को समोसे दे ही रहा था कि दरवाजे से आवाज़ सुनाई दी वह आवाज़ और किसी की नहीं अमित मिश्र की थी जिसने वहीं से कहा राम-राम काका और मैंने भी हँसते हुए कहा राम-राम मालगुजार आओ-आओ मैं तो पहले से जानता हूँ कोई चूक जाये पर हमारे मालगुजार नहीं चूकने वाले वे पहली तारीख को बीमा की किस्त लेने जरूर आयेंगे तभी बीच में मेरी पत्नी जो वहीं सोफे पर बैठी हुईं थीं बीच में मुझसे बोलीं आप अमित को मालगुजार क्यों कहते हो!
तब मैंने कहा यार भाग्यवान वह बीमा कंपनी का एजेंट है सो बीमा की किस्त लेने घर-घर जाकर लेता है और फिर उसके कमीशन से उसका गुजारा होता है।
तब अमित बोला जो घर के अन्दर हमारे नजदीक आगया था और उनकी बातें सुनकर हँसते बोला काकी इन्हें कहने दो कम-से-कम कमीशन खोर तो नहीं कहा मालगुजार ही कहा है। तब मैंने उसे बीमा की किस्त देते हुए कहा यार इसे बंद कर दें तो? तब वह बोला पर क्यों?
यदि इसे बीच में बंद कर देंगे तो आपको बहुत नुकसान हो जायेगा फिर आपको परेशानी क्या है! अरे जब किस्त के पैसे न हों मुझे बोल दिया करें मैं भर दिया करूँगा। जिस पर मैंने कहा यार देना तो मुझे ही पड़ेगा चाहे जब भी देना पड़े। तब वह बोला देखो काका आप तो पैन्शन वाले हैं अरे जो नौकरी कर रहे हैं उन्हे भी कभी-कभी किस्त भरने में परेशानी होती है।
अरे घरों में इतने खर्च हैं कि पूछों मत कितना भी पैसा हो सब खर्च हो जाता है। इसलिए जो बच गया वही बहुत है और इसीलिए मैं अधिकांश लोगों से पहली ही तारीख़ को किस्त ले लिया करता हूँ। और फिर अब आपकी उम्र को देख और स्वास्थ को देख कोई भी आपका बीमा नहीं करेगा वह तो मैंने कैसे किया मैं जानता हूँ। अब थोड़ा सा वक़्त और बचा है चलने देवें ।
यार तुम्हें क्या बताऊँ कभी-कभी एक-एक पैसे के लिए परेशान हो जाता हूँ अब तुम्हीं बताओ आजकल इस ज़रा सी पैन्शन में क्या होता है! घर में तमाम खर्चे हैं ऊपर से बिजली का बिल बर्तन वाली को देना रिशतेदारों में भी आना-जाना लगा रहता सो वहाँ भी कुछ लगता ही है। लड़का बहू का आसरा नहीं है। मैं तो बस यह चाहता हूँ कि
इन बच्चों की जरूरतें पूरी होती रहें मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।
तभी गुड़िया बोली दादा जी मेरा स्कूल का बैग पूरा फट गया है देखो दस जगह सिल रखा है तभी सोनू भी बोला दादा जी मेरे स्कूल के जूते देखो मैंने कहा ठीक है बस इस माहिने और चला लो अगले महीने की पहली तारीख को तुम दोनों को साथ लेकर जाऊंगा और तुम्हें बैग और तुझे जूते दिला दूंगा कहते-कहते मैंने अपनी पत्नी से कहा तुम क्या देख रही हो!
अरे तम्हारी एक महिने की दवा मैं लेता आया हूँ देखो इस किराने वाले सामान के थैले में रखी हैं।
देखो अब लापरवाही न करना दवा समय से खा लिया करो। पिछले महीने पैन्शन पहली तारीख को खाते में जमा नहीं हुए थी क्योंकि दो तीन दिनों की सरकारी छुट्टी हो गई थीं इसलिए तीन दिन बाद पैसा मिल पाया था और दवा खत्म हो गई थी वैसे मेडिकल स्टोर वाले दवा उधार दे दिया करते हैं पर तुमने नहीं बतलाया कि दवा खत्म हो गई है। बेचारे किराना दुकानदार,दूध वाले भी उधर दे दिया करते हैं और उनकी उधारी भी मैं महीने की पहली तारीख को चुकता कर दिया करता हूँ।
तब अमित बोला चाचा रिटायर होने के पहले तो खूब मजे से दिन गुजरते होंगे! मैंने कहा यार उस वक्त भी पहली तारीख की राह देखा करते थे। पहले बच्चों की परवरिश पर खर्च की चिंता रही। कभी-कभी उनकी जरूरतों की उनकी पढ़ाई लिखाई के लिए पैसों का भी इंतजाम उधार लेकर ही करना पड़ता था और फिर उस उधारी को चुकता करने के लिए पहली तारीख का ही इंतजार करते थे। बच्चे बड़े होते गए तो खर्च भी बड़े होते गए कैसे करके जीवन चलता रहा। मज़े क्या होते हैं बेटा! हम मध्यम वर्ग के परिवार और छोटी नौकरी वाले क्या जाने। फिर बच्चों के विवाह की चिंता उस पर होने वाले खर्चों की पूर्ति के लिए जीपीएफ फंड का सहारा या बाजार के दुकानदारों, मित्रों का सहयोग लेना पड़ता रहा। और जिसे चुकता करने के लिए यही पहली तारीख होती थी। अब आप कहीं घूमने जाने की बात करो तो भैया मजबूरी में भले ही किसी जरूरी काम से या किसी रिश्तेदार के यहां शादी विवाह में जाना हुआ तो बस वही घूमना कह सकते हैं। या अपने माता-पिता के कर्मकांडों के कारण जाना हुआ तो वही तीर्थ यात्रा समझ लो। हाँ नौकरी में पैसा थोड़ा अधिक मिलता रहा तो तीज-त्यौहारो पर उत्साह से उन्हें मना लिया करते थे। पर उस वक्त भी आज की ही तरह महीने की पहली तारीख पर नजर रखते थे। यह सब मेरी ही कहानी नहीं !अधिकांश नौकरी वालों की और पेंशन वालों की कहानी है और अब तो महंगाई की मार बढ़ती जा रही है तो घबराहट भी होने लगी है। समझ नहीं आता कौन से खर्च कम करें बिजली का बिल कमर तोड़ दिया करता है। फिर भी क्या करें! अरे जब हम बिजली अधिक जलाएंगे तो फिर बिल भी वैसा ही आएगा। आज हम अपनी सुविधाओं के लिए सोचते हैं और उन पर कितनी बिजली खर्च करते हैं वह भूल जाते हैं। और फिर बिल कमर तोड़ दिया करता है। रात-दिन टीवी चल रहा,पहले छोटे-छोटे कपड़े महिलाएं हाथों से धो लिया करती थीं पर अब वाशिंग मशीन से चाहे दो कपड़े हों चाहे दस उसी से धुलना हैं पंखे,बल्ब,मिक्सी मोटर पंप,फोन चार्जिंग कहां नहीं बिजली जल रही!आज हर किसी के हाथ में फोन है तो हर किसी के हाथ मोटरसाइकिल है अब भईया उनके खर्च उठाएं या घर गृहस्थी के। सो जैसे-तैसे परिस्थिति से समझौता करता हुआ जीवन काट रहा हूं
और अब बुढ़ापा अलग सामने खड़ा है तो दवा भी लग गई है। पर जीना है तो जी रहे हैं। पर! मैं उनके बारे में सोचता हूं जिनकी नौकरी नहीं या जिनकी आज पेंशन नहीं वे बेचारे कैसे अपना जीवन यापन करते होंगे! मुझे तो पहली तारीख का भरोसा रहता है और मेरी तरह सब्जी वाला,किराने वाला, दूध वाला, मेडिकल स्टोर वाला भी पहली तारीख की राह देखा करते हैं कि हमारी उधारी आज मिल जाएगी पर उन विचारों का भगवान ही मालिक है क्योंकि आज हजारों में एक दो ही लोगों की औलाद ऐसी होतीं हैं जो अपने बूढ़े माता-पिता की चिंता करतीं हैं नहीं तो सबको अपनी-अपनी ही पड़ी है पर वे भूल जाते हैं कि एक दिन वे भी बूढ़े होंगे और उन्हें भी मेरी ही तरह पहली तारीख का इंतजार रखना होगा। भईया मैं तो भगवान से प्रार्थना करता हूं की हे भगवान मैं कुछ दिन और इसी तरह जीवित बना रहूं और अपनी इस पैन्शन से अपने इन छोटे-छोटे नाती पोतों का पालन पोषण कर सकूं उनको अच्छा इंसान बना सकूं पढ़ा लिखा सकूं इनकी आमदनी का और कोई जरिया नहीं है। मेरी बात सुनकर अमित बोला चाचा जी किसी ने सच ही कहा है कि मूल से सूत अधिक प्यारा होता है।
समाप्त