बिट्टू का फ़ैसला
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 सागर/आर के तिवारी

गुलाबो!ये गुलाबो! सुन!खेलना बंद कर और ले ए डिब्बा अब्बू को खाना दे कर आ। वो सुबह ही बोल गये थे आज कल्लू मिस्त्री काम पर नहीं आयेगा तो मैं दोपहर में रोटी खाने घर नहीं आ पाऊँगा।

जिस पर गुलाबो जो अपनी एक सहेली के साथ लंगड़ी खेल रही थी थोड़ा मुँह बनाते हुए बोली अरे यार अम्मी आप मुझे खेलने नहीं देतीं!जिस पर उसकी माँ बोली अरी जा! खाना दे आ! फिर आकर खेल लेना।

 गुलाबो झुझंलाते हुये माँ के हाथ से खाने का डिब्बा लेकर अपने अब्बू असलम मियां को देने उसकी दुकान चली गई।असलम मियां की दुकान शहर के बीचों बीच भीड़-भाड़ वाले इलाके में थी। गुलाबो किसी तरह दुकान पर पहुंची उसे देख असलम गुस्से में बोला, कम्बखत कहाँ मर गई थी! भूख के मारे जान निकली जा रही थी और गुलाबो के हाथ से करीब-करीब डिब्बा झटकते हुए दुकान के एक कोने में बैठ कर खाना खाने लगा।

असलम जब तक खाना खाता रहा तब तक गुलाबो दुकान के बाहर रखे एक स्टूल पर बैठी बाज़ार में यहाँ-वहाँ नजरें दौड़ती रही कि तभी उसे एक फेरी वाला जो एक बांस में कई रंग बिरंगी चोटियों के साथ- साथ और भी सामान टांगे हुए निकला जिसे रोक उसने असलम से कहा अब्बू! मुझे यह लाल चोटी दिला दो। जिस पर असलम ने उस फेरी वाले से कहा जाओ मियां जाओ कुछ नहीं लेना है और गुलाबो से गुस्से में बोला चल ले, यह डिब्बा और जा घर। ऐ ले दे,वो ले दे तुझे तो हमेशा कुछ न चाहिये ! यहाँ क्या पैसे टपकते हैं!चल जा! गुलाबो अपने अब्बू की डांट सुन कर डर गई पर उसे इस तरह की डांट सुनने की आदत पड़ गई थी इसलिए बेमन से खाली डिब्बा ले अपने घर चल गई।

शकीला दरवाजे पर ही बैठी उसकी राह देख रही थी। उसने जैसे ही दूर से गुलाबो को देखा तो उठ कर खडी हो गई उसके चहरे पर मुस्कुराहट आ गई और चार कदम आगें बढ़कर उसके हाथ से डिब्बा लेते हुए गाल पर एक चुम्मा ले लिया पर जैसे ही गुलाबो के चहरे का पीला रगं देखा तो वहीं दरवाजे के बाहर ही बैठ उससे पूछने लगी अरे क्या हुआ मेरी शहजादी को? अब्बू ने कुछ कहा क्या?

शकीला जानती थी असलम गुलाबो को प्यार नहीं करता उसे प्यार करना तो दूर अच्छे मुंह बात भी नहीं करता, हमेशा किसी न किसी बात के बहाने उसे डांटता रहता है।

पर क्या करे कोई रास्ता भी नहीं था।

अभी वह यह सब सोच ही रही थी कि गुलाबो बोली अम्मी दुकान पर अब्बू से मैंने लाल चोटी दिलाने के लिए कहा तो उन्होंने मुझे डांट दिया और चोटी वाले को भी भगा दिया।

अब शकीला गुलाबो को क्या जबाब दे कुछ बतला भी नहीं सकती पर सोचने जरूर लगी कि क्या यह उसकी गलती का नतीजा है जो जवानी की नादानी में हुई है अब वह गुलाबो को कैसे बतलाये कि जिसे वह अपना पिता समझती है असल में वह उसका पिता नहीं है।

उसका पिता मेरा पहला पति था जो जब गुलाबो एक साल की ही थी एक एक्सिडेंट में खत्म हो गया था। उसकी मौत को मुश्किल से छह महीने ही हुये थे कि सलीम की मौसी का लड़का असलम मेरे घर मेरा दुख दर्द जानने आने लगा सलीम के न रहने के कारण घर में पैसों की तंगी आने लगी थी तो असलम कभी कभार पैसे से मदद कर दिया करता था। तभी एक दिन मेरा भाई मुझे अपने साथ अपने घर ले गया।

मुझे वहाँ रहते दस पन्द्रह दिन ही हुए थे कि एक दिन असलम वहाँ भी पहुँच गया।

मुझे पता नहीं क्यों उसका आना अच्छा लगा उस दिन वह

 हमारे यहाँ ही रुका और मेरे भाई से मुझसे निकाह करने की बात की जिस पर मेरे भाई ने उससे कहा भाई तुम कह तो ठीक रहे हो!

हमारे पुराने रिश्ते दार हो सलीम के मौसी के लड़के हो उस हिसाब से तुम्हारे साथ शकीला की शादी तुम्हारे साथ करने में मुझे कोई हर्जा नहीं है।

पर!शकीला क्या चाहती है इस रिश्ते के लिए उसकी मर्जी जरूरी है।

जिस पर असलम भी बोला ठीक है भाई जान आप शकीला से बात कर लीजिये।

तब दूसरे दिन मेरे भाई ने असलम से रात की हुई पूरी बात बतलाई और मेरी क्या मंशा है पूछी तब मैंने कहा मेरी डेढ़़ साल की बेटी है यदि वह उसे अपना नाम दे तो गुलाबो की खातिर मैं उससे शादी कर लूंगी मुझे पता नहीं क्यों थोड़ा डर भी लग रहा था! सोच रही थी असलम से शादी करके वह ग़लती तो नहीं कर रही पर मन में यह भी आ रहा था कि इतने दिनों से देख रही हूँ असलम मुझे बहुत चाहता है यह उसकी आखों में दिखता था और गुलाबो को भी बहुत चाहता था ।और जब मेरे भाई ने असलम से गुलाबो की बात की तो वह बड़े जोश और शान से बोला गुलाबो को वह अपनी ही बेटी और अपनी जान से ज्यादा प्यार करेगा और उसी विश्वास के सहारे मेरी शादी असलम से हो गई और फिर वह हम माँ बेटी को यहाँ अपने घर ले आया।

असलम की कार सुधारने की गैराज थी।

शादी के दो साल ही हुए थे कि असलम गुलाबो को हर छोटी बात पर डांटने लगा यदि प्लेट में आधी रोटी का टुकड़ा छोड़ दिया तो,यदि गलती से चाय फैल गई तो कभी मैंने ही उसे कुछ खिलोने लाने की बात की तो भी वह कहने लगा आजकल वैसे ही धन्धा मंदा है और यह यहाँ खाना बर्बाद कर रही है इसे आये दिन कुछ न कुछ चाहिए होता है तब मैं कहती बच्ची है एक निवाला छूट गया तो कौन सी कयामत आ गई तब वह मुझसे ही लड़ने लगता। वह मुझसे अपनी औलाद चाहता था पर मैं नहीं चाहती थी मैंने उससे शादी करने के वक़्त ही साफ़-साफ़ लब्ज़ों में कह दिया था मुझे गुलाबो के अलावा कोई औलाद नहीं चाहिए वह सलीम की निशानी है जिसे मैं खूब खुश रखना चाहती हूँ यदि कोई दूसरी औलाद पैदा होगी तो मुझे मजबूरन इसके हिस्से का प्यार उसे देना पड़ेगा और मैं यह नहीं चाहती सो भी वह मुझसे और गुलाबो से ख़फा रहता था। जिन्दगी की गाड़ी जैसे-तैसे चल रही थी। अब मेरा पूरा ध्यान गुलाबो की परवरिश पर था इसके लिए मैं असलम की हर खरी-खोटी सुनती रहती थी। पर जब असलम गुलाबो को कुछ कहता डांटता तब मुझे अपने फैसले पर पछतावा होता मैं सोचती मेरी जवानी की गलती की सजा मेरी बेटी को मिल रही है आज उसे अच्छी तरह याद है गुलाबो जब पैदा हुई थी तब सलीम ने तमाम नाते रिश्तेदारों को रोटी दी थी। पच्चीस किलो बताशा और रेवड़ी पूरे मुहाल में बाँटी थी। पूरी रात ढोलक की आवाज़ गूंजती रही थी। आज समझ आ रहा है कि बाप! बाप होता वही एक है जो अपनी औलाद के लिए सब कुछ कर सकता है। जिस तरह एक माँ अपना खून दूध के रूप में पिलाती है उसी तरह एक पिता भी अपनी औलाद के लिए खून पसीने की तरह बहाता है। सलीम कहता था मैं अपनी गुलाबो को खूब पढ़ाऊँगा उसकी परवरिश एक शहजादी की तरह करुँगा पर सलीम के वे सारे ख्वाब उसकी तमन्ना सारी की सारी उसकी मौत के साथ खत्म हो गई ।

पर आज जब मैंने अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी को इतनी दूर पैदल असलम को रोटी देने भेजा जिस पर भी उसे उस पर रहम नहीं आया उस वक़्त उसे शादी के वक़्त के अपने अलफाज जो शान से कहे थे कि गुलाबो मेरी सगी बेटी की ही तरह रहेगी याद नहीं।

अभी शकीला दरवाजे पर ही  गुलाबो को अपने गले से लगाये क्या-क्या सोच रही थी कि तभी शकीला के भाई हारुन की आवाज़ ने उसे चौंका दिया जो उनके नजदीक ही आकर बोला अरे! शकीला क्या बात है यहाँ दरवाजे पर तुम माँ-बेटी क्या कर रही हो?

सुनकर शकीला बोली कुछ नहीं भाई जान और उठकर घर के अंदर को जाते हुए बोली आइये अन्दर आईये।

हारुन शकीला के पीछे-पीछे कमरे में गया और वहीं एक कुर्सी पर बैठ कर फिर बोला क्या बात है? असलम ने कुछ कहा क्या?

जिस पर शकीला ने कहा भाई जान सच मानो तो मैंने असलम से शादी गुलाबो की परवरिश अच्छी हो जाये उसे एक बाप की मुहब्बत मिल जाये पर सब उल्टा हुआ।

असलम गुलाबो को बात-बात पर डांटने लगा है इससे गुलाबो  उदास रहती है वह तो बगल वाले कासिम की बेटी के साथ थोड़ा सा जो खेल कूद लिया करती है उतनी ही देर खुश रहती है और आज का पूरा किस्सा कह सुनाया। जिसे सुनकर हारुन शकीला से बोला अब तुम ही बतलाओ क्या करना है?

जिस पर शकीला बोली मुझे सिर्फ गुलाबो की खुशहाली चाहिए और कुछ नहीं मैं सिर्फ अपनी गुलाबो के लिए जीना चाहती हूँ गुलाबो मेरे लिए एक शहजादी से कम नहीं।

तब हारुन ने कहा ठीक है असलम को आने दो एक बार उससे भी बात कर लूँ वह क्या कहता है फिर सोचेंगे।

और फिर शाम को असलम के आने पर हारुन ने उससे कहा देखो भाई असलम! तुम्हें नेक इन्सान जान कर और शकीला ने गुलाबो की अच्छी परवरिश हो जाये तुम्हारे साथ शकीला की शादी करने को मैं राज़ी हुआ था पर तुम गुलाबो को प्यार करने की बजाय उसे हमेशा डांटते रहते हो आज तुम्हारी शादी को छह साल हो गये इतने समय में तो इन्सान को अपने नजदीक की बेजान चीजों से भी लगाव हो जाता है। वह घर के पालतू जानवरों से भी मुहब्बत करने लगता है और एक आप हैं कि ख़ुदा की जीती जागती दी हुई नेमत को दुलार तक नहीं करते। लानत है आप पर।

यदि आप इसी तरह का वर्ताव शकीला और गुलाबो के साथ करेंगे तो मैं अपनी बहिन को अपने साथ अपने घर ले जाऊंगा।

हारुन बोलता रहा पर असलम ने कोई जवाब नहीं दिया तो हारुन बोला आप कुछ कहते क्यों नहीं! इसका मतलब है मैं इन दोनों को अपने साथ ले जाऊं तब असलम जो इतनी देर से हारुन की बातें सुन रहा था एकदम से बोला नहीं-नहीं अब आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।

असल में असलम चुपचाप सोचता रहा कि यदि शकीला उसके घर से चली गई तो वह अकेला हो जायेगा उसे रोटी कौन बना कर देगा साथ ही समाज में उसकी बदनामी भी होगी फिर कौन उसके साथ शादी करेगा। धन्धे पर भी असर पड़ेगा सो अलग! सो तुरन्त परिस्थिती देख बोला नहीं-नहीं अब शिकायत का मौका नहीं दूंगा।

और फिर बात वहीं खत्म हो गई।

परन्तु कुछ ही समय तक ठीक ठाक रहा। असलम में अधिक परिवर्तन नहीं आया हाँ अब उसने गुलाबो को डांटना करीब करीब बंद कर दिया था पर मुहब्बत भी नहीं करता था।

यह शकीला समझ रही थी कि तभी एक हादसा हो गया।

हुआ ये था कि कुछ दिन बाद फिर गुलाबो असलम के लिए खाना लेकर गई थी पर दो घन्टे से भी अधिक समय हो जाने पर भी वापस नहीं आई तो शकीला को चिन्ता होने लगी कि क्या बात है! गुलाबो घर लौट कर क्यों नहीं आई। क्या असलम ने नहीं आने दिया?क्या दुकान बंद कर वह अपने साथ लायेगा पर असलम हमेशा देर रात तक घर आता है। कभी-कभी किसी गाड़ी में काम अधिक होता है तो बहुत देर हो जाती है।

उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे वह हमेशा की तरह दरवाजे पर ही बैठी उसकी राह देख रही थी।

जब तीन घन्टे होने को आये तो उसे अधिक ही चिंता होने लगी तब उसने अपने बगल वालों से इस बात की चर्चा की और अर्जी की कि कोई मेरी दुकान पर जाकर मेरी गुलाबो को ले आये ।

तब शकीला के एक पड़ोसी गुलाम अली असलम की दुकान पर गुलाबो को लेने गये पर जब उन्हें वहाँ पता चला कि गुलाबो दुकान पर आई ही नहीं तो वे बेचारे घबरा गये और यहाँ असलम मियां भी घबरा गये कि आखिर गुलाबो घर से दुकान पर मुझे खाना देने के लिए आई थी पर यहाँ पहुंची क्यों नहीं? उसके भी मन में तरह-तरह की शंका होने लगी। अब उसे उसकी आखों के सामने उसका वह मासूम चहरा घूम रहा था जो उसके सामने आता और अब्बू-अब्बू  कहता पर वह उसे कोई महत्व नहीं देता था बल्कि उसे हमेशा डांटने का मौका देखता था और वह बेचारी उसकी डांट सुनकर डर जाती थी। इतना सब सुनकर वह भी तुरन्त जैसी हालत में था उसी हालत में नौकर को दुकान देखने का कहते हुए तेज कदमों से ग़ुलाम अली के साथ अपने घर को चल दिया वहाँ घर के दरवाजे से शकीला ने अपने पड़ोसी और असलम को बग़ैर गुलाबो के आता देखा तो घबरा गई और जैसे ही वे लोग दरवाजे पर पहुंचे वैसी ही घबराहट में असलम से पूछा मेरी गुलाबो कहाँ है? जिस 

पर असलम भी घबरा कर इतना ही बोला वह दुकान पर पहुंची ही नहीं!

जिस पर शकीला चीखते हुए बोली आप क्या कह रहे हो? वह आपको खाना लेकर तीन घन्टे पहले गई थी और रोने लगी और रोते हुए बोली जाने कहाँ गई मेरी बच्ची! तब गुलाम अली असलम से बोले चलो भाई जान चलो पहले पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दें और वह जहाँ से दुकान जाती है वहाँ के दुकान वालों से भी पूछे।

तब असलम और गुलाम अली पहले पुलिस थाने गये वहाँ उन्हें पता चला करीब छह-सात साल की एक लड़की जिसे किसी आवारा सांड ने बुरी तरह जख्मी कर दिया था उसे वहाँ के कुछ रहम दिल इन्सान जिला अस्पताल ले गये थे और उसका इलाज कराया और उन्हीं लोगों ने यहाँ हमें थाने में खबर दी वह अभी वहीं अस्पताल में है।

जैसे ही इन्हें पता चला कि गुलाबो अस्पताल में जख्मी हालत में पड़ी है वैसे ही असलम गुलाम अली से बोला भाई जान आप जल्दी से घर जाओ और शकीला को ख़बर कर दो नहीं तो उसका दम निकल जायेगा! मैं गुलाबो के पास जा रहा हूँ पता नहीं मेरी फूल सी बेटी कैसी होगी।

गुलाम अली ने असलम की आखों में आये आंसूओ को देखा तो बोला आप घबराइये नहीं हौसला रखें और ख़ुदा पर भरोसा रखें आपकी गुलाबो सही सलामत होगी आप अस्पताल जाईये मैं शकीला बी को ख़बर करता हूँ।

यहाँ जैसे ही शकीला को गुलाम अली से पता चला कि गुलाबो अस्पताल में जख्मी हालत में पड़ी है तो वह घर को जैसे के तैसा छोड़ पागलों की तरह अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी उसके पीछे गुलाम अली और कुछ मुहल्ले के लोग भी उसके पीछे-पीछे अस्पताल पहुँचे।

जहाँ का नजारा देख शकीला को अपनी आखों पर भरोसा नहीं हो रहा था जिसे देख वह वहीं अस्पताल के वार्ड के दरवाजे पर ही ठहर गई।

उसने वहाँ देखा असलम गुलाबो को अपने सीने से लगाये आंसू बहा रहा था और कह रहा था हे ख़ुदा तूने मेरी शहजादी को बचा लिया तेरा लाख-लाख बार शुक्रिया अदा करता हूँ। और गुलाबो को चूमता हुआ बोला मुझे माफ़ कर दे बेटा मैं बहुत जल्लाद हूँ! मैंने कभी तुझे प्यार नहीं किया  हाँ बेटा मुझे माफ़ कर दे! मैं वादा करता हूँ अब तुझे कभी कुछ नहीं कहूँगा तूं ठीक हो जा ! मैं तुझे ढेरों खिलोने ला कर दूंगा और गुलाबो भी अपने अब्बू के सीने से लगी अपने आपको बहुत खुश नसीब समझ रही थी जो अपने पिता से यह सब ही तो चाहती थी।

अब शकीला भी अधिक देर तक उनसे दूर न रह सकी और दोनों के पास जा असलम के कंधे पर हाथ रखते हुए कुछ कहना चाह रही थी कि असलम उसे भी अपने आगोश में लेता हुआ बोला शकीला मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है मुझे माफ़ कर दो! जिसे सुनकर शकीला की आखों से भी जो आंसू अभी-अभी ही थमे थे वे फिर आखों से उबल पड़े और वह भी असलम से लिपट कर बोली अब चुप हो जाईये जो हो चुका उसे भूल जाईये।

वहां का वह नजारा देख ग़ुलाम अली के साथ जो-जो वहां आये थे उन सभी की आखों में आंसू थे।

और फिर दूसरे दिन असलम और शकीला अपनी गुलाबो को लेकर अपने घर आ गए। 

शकीला ने अस्पताल से घर तक के रास्ते में देखा जितना खुश असलम था तो उससे भी अधिक खुश गुलाबो थी और दोनों को खुश देख आज शकीला भी बहुत खुश थी और सोच रही थी आज लग रहा है असलम से शादी का उसका फ़ैसला ठीक ही था अब मेरी गुलाबो की अच्छी परवरिश हो जायेगी।

समाप्त 


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