लघु कथा
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सागर/ आर के तिवारी

अचानक मलिका माइक पकड़ कर बोली,मेरी माँ मेरी माँ के साथ-साथ मेरी पिता भी हैं जिन्हें मेरे पैदा करने वाले पिता ने थोड़े से स्वार्थ के कारण तलाक देकर छोड़ दिया था।पर आज मैं अपनी माँ को सलाम करती हूँ जिनके हौसलों के आगें हमारी हर मुसीबत हार गई———

जिला फिरोजाबाद का एक मुहाल जिसमें कासिम मियां का घर था वे चूड़ियों के कारखाने में छोटे से मुलाजिम थे जिसकी पगार से उनके परिवार का आराम से भरण-पोषण हो जाता था। कासिम मियां के परिवार में उनकी पत्नी सरीना बी और एक लड़की जोया थी उसी घर के एक कमरे में उनकी बहिन जरीना बी भी रहतीं थीं,जिसे उसके शौहर मोहम्मद इकबाल ने दूसरी लड़की के निकाह करने के चक्कर में तलाक देकर छोड़ दिया था। जरीना की दो संताने थी एक लड़का और एक लड़की,लड़के का नाम अल्ताफ और लड़की का नाम मलिका था। कासिम मियां अपनी बहन को बहुत चाहते थे जरीना बी कम पढ़ी-लिखी पर निहायत ही सीधी-सादी और साधारण रहन-सहन वाली महिला थी वह बहुत ही मेहनती भी थी। कासिम मियां जिस चूड़ी के कारखाने में काम करते थे उसी कारखाने में वह भी दैनिक मजदूरी पर काम करती थी। घर का किराया लगता नहीं था क्योंकि कासिम मियां अपनी बहिन से किराया नहीं लेते थे, अलबत्ता आवश्यकता पड़ने पर मदद ही करते थे। जरीना बी का भी कारखाने से मिलने वाली मजदूरी से घर खर्च आराम से चल जाता था। वैसे भी जरीना फिजूलखर्ची महिला नहीं थी जोया (कासिम की बेटी)और मलिका में मात्र एक वर्ष का अंतर था तो दोनों बहिनें सहेलियों की तरह बहुत ही घुलमिल कर रहतीं थीं और एक दूसरे का बहुत ख़्याल भी रखतीं थीं । साथ साथ स्कूल जाना, साथ साथ खेलना और एक साथ बैठकर पढ़ाई करना। दोनों लड़कियां बहुत ही मेहनती थी अल्ताफ दोनों से करीब दो वर्ष बड़ा था वह भी अपनी दोनों बहिनों और अपनी माँ को बहुत चाहता था वह समझता था कि उसकी माँ  दिन-रात मेहनत करके हमारा पालन-पोषण कर रही है। वह खुद भूखी रह जाती है पर उसे और मलिका को कोशिश भर अच्छा खाना खिलाती है। जरीना बी लड़के और लड़की में अंतर नहीं समझती थी वह समाज के दकियानूसी विचारों से बहुत दूर थी कि लड़कियों को पढ़ाना ठीक नहीं या अधिक नहीं पढ़ाना चाहिए इस ओर वह विशेष ध्यान नहीं देती थी और मलिका को भी अच्छी तालीम दे रही थी इसमें भी उसके भाई कासिम ने उसका पूरा सहयोग दिया, सहयोग ही नहीं अपितु अपनी बेटी जोया को भी अच्छी तालीम देने का जज्बा रखा जरीना ने रात-दिन एक कर बच्चों को पढ़ाया जिसमें बच्चों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी अल्ताफ एमबीए की पढ़ाई कर नौकरी तलाशने लगा जिससे वह अपनी माँ का सहारा बन सके, अपनी बहिन को अच्छी तालीम दिला सके लिहाजा उसे एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी लग गई उसकी नौकरी लगने से घर में बहुत खुशहाली आ गई परिवार की गाड़ी जरा अच्छी तरह चलने लगी थी। इसी बीच कंपनी में अल्ताफ के साथ काम करने वाली एक लड़की से जरीना और कासिम मियां की रजामंदी से अल्ताफ का निकाह कर दिया जाता है।

अब घर में जरीना और अल्ताफ एवं मलिका क्योंकि घर में शादी के बाद एक शख्स के बढ़ने से जगह कम पड़ने लगी थी तो कासिम मियां के पड़ोस वाले घर में दो कमरे किराए से लेकर जरीना ने लड़के बहू को वहाँ रहने की व्यवस्था करा दी। अब मलिका और जोया दोनों अपनी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहीं थीं किसी तरह समय गुजरता जाता है और फिर मलिका का आखिरी वर्ष भी पूरा हो जाता है । आज मलिका की विद्यालय में वार्षिक दीक्षांत समारोह का आयोजन था आज विद्यालय में पास होने वाले विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय प्रबंध द्वारा डिग्री वितरण और सम्मान का कार्यक्रम रखा गया था उस कार्य क्रम में विद्यार्थियों के अलावा उनके माता-पिता को भी बुलाया गया था डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में मलिका का भी नाम था। आज कॉलेज का सभाकक्ष खचाखच भरा था मंच पर कुलपति के साथ अन्य  गणमान्य लोग भी बैठे थे। कार्य क्रम का संचालन कर रहे बंधु द्वारा उन सब विद्यार्थियों के नाम पुकार कर बुलाया जा रहा था, क्रम से जिस-जिस का नाम पुकारा जाता वह विद्यार्थी आता और अपनी डिग्री और सम्मान  लेता जा रहा था। कि तभी जरीना ने संचालक के मुख से मलिका का नाम सुना तो जरीना के पूरे बदन में एक खुशी की लहर सी दौड़ गई। मलिका अपने स्थान से उठकर मंच पर गई मंच पर पहुंचते ही मलिका ने सबका अभिवादन किया और फिर कुलपति जी से आग्रह कर बोली, सर यदि आपकी अनुमति हो तो मैं यह डिग्री जो आप मुझे देने वाले हैं उसे आप हमारी माँ के हाथ में दें तो मुझे बहुत खुशी होगी। मलिका की बात सुनकर कुलपति बहुत खुश होते हुए बोले हां हां क्यों नहीं आप अपनी मां को यहां बुलाइए यह सुनकर मलिका ने माइक से अपनी माँ को आवाज देकर बुलाया सुनकर पास बैठे कासिम मियां ने उठकर जरीना को संभाला और मंच की ओर ले गए जरीना के मंच पर पहुंचते ही हाल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी मंच द्वारा मलिका की डिग्री जरीना को दी गई, तभी अचानक मलिका माइक पकड़कर बोली, मेरी मां, मेरी मां के साथ-साथ मेरी पिता भी हैं जिन्हें मेरे पैदा करने वाले पिता ने थोड़े से स्वार्थ के कारण तलाक देकर छोड़ दिया था। पर आज मैं अपनी माँ को सलाम करती हूं जिनके हौसलों के आगें हमारी हर मुसीबत हार गई उन्होंने मुझे एवं मेरे भाई अल्ताफ को अच्छी तालीम दी अपने पैरों पर खड़ा किया, एक नया मुकाम दिलाया, एक पहचान दी जिसमें मेरे मामू कासिम मियां ने भी मेरी माँ को हर क़दम पर साथ दिया। आज मैं अपने मामू की भी शुक्रगुजार हूं मैं अल्लाह से प्रार्थना करतीं हूं ऐसे मामू सबको दे। मुझे जन्म देने वाले उस मेरे पिता का जिसका नाम लेकर मैं अपनी जुबान गंदी नहीं करना चाहती सोचा होगा कि मेरा वजूद उसी से है जो नहीं रहेगा तो मेरी मां और मेरा नाम खाक में मिल जाएगा पर मेरी मां के हौसले के आगे सब कपूर हो गया तलाक देकर दूसरों को रोटी और दो कपड़ों को मोहताज छोड़ने वाले पिता शायद भूल जाते हैं कि वह ऊपर वाला ही सबका पिता है जो अपने बच्चों का एक रास्ता बंद होने पर कई नए रास्ते खोल देता है। इस दुनियाँ के पिता तो अपनी जिम्मेदारीयों से तलाक दे कर भाग जाते हैं पर ऊपर वाला सबका मालिक  है। वह कभी भी अपने बच्चों से मुंह नहीं मोड़ता उस ऊपर वाले को तो मैंने नहीं देखा पर मेरा ख़ुदा तो मेरी माँ है जिसे मैंने जीता जागता देखा है मैं इनकी छांव में पली हूं। मैं एक बार फिर उन्हें सलाम करती हूं मलिका की बात खत्म होते ही पूरा सभाकक्ष “माँ तुझे सलाम” “माँ तुझे सलाम” की आवाजों से गूंज उठा और चारों ओर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज गई साथ ही साथ वहाँ की हर जुबां पर जरीना का भी नाम था।

 *समाप्त*


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