मियावाकी पद्धति का उपयोग कर पिछले दो वर्षों में प्रयागराज में लगभग 56,000 वर्ग मीटर घने जंगल उगाए गए
शेयर करें

मियावाकी पद्धति का उपयोग कर पिछले दो वर्षों में प्रयागराज में लगभग 56,000 वर्ग मीटर घने जंगल उगाए गए, महाकुंभ 2025 के भाग के रूप में पर्यावरण संरक्षण का समर्थन करते हुए, कचरे के ढेर को हरे-भरे जंगलों में रूपांतरित किया गया

महाकुंभ 2025: प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ 2025 की तैयारी के मद्देनजर, प्रयागराज के विभिन्न स्थानों पर घने जंगल विकसित किए गए हैं, जिससे शहर में आने वाले लाखों भक्तों को शुद्ध हवा एवं स्वस्थ वातावरण प्रदान किया जा सके। प्रयागराज नगर निगम ने पिछले दो वर्षों में अनेक ऑक्सीजन बैंक स्थापित करने के लिए जापानी मियावाकी पद्धति का उपयोग किया है, जो अब हरे-भरे जंगलों में तब्दील हो गए हैं। इन प्रयासों से न केवल हरियाली को बढ़ावा मिला है बल्कि पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए वायु गुणवत्ता में सुधार भी हुआ है।

नैनी औद्योगिक क्षेत्र में सबसे बड़ा वृक्षारोपण किया गया

प्रयागराज नगर निगम के आयुक्त, चंद्र मोहन गर्ग ने कहा कि वे मियावाकी पद्धति का उपयोग कर शहर के कई हिस्सों में घने जंगल उगा रहे हैं। निगम ने पिछले दो वर्षों में 55,800 वर्ग मीटर के क्षेत्र को कवर करते हुए शहर में 10 से ज्यादा स्थानों पर वृक्षारोपण किया है। वहीं नैनी औद्योगिक क्षेत्र में सबसे बड़ा वृक्षारोपण किया गया है, जिनमें 63 प्रजातियों के लगभग 1.2 लाख पेड़ लगाए गए हैं, जबकि शहर के सबसे बड़े कचरा डंपिंग यार्ड की सफाई कर बसवार में 27 विभिन्न प्रजातियों के 27,000 पेड़ लगाए गए हैं। यह परियोजना न केवल औद्योगिक अपशिष्ट से छुटकारा पाने में मदद कर रही है बल्कि धूल, गंदगी और दुर्गंध में भी कमी ला रही है। इसके अलावा, यह शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार कर रही है। मियावाकी वनों के कई लाभ हैं, जिसमें वायु एवं जल प्रदूषण में कमी, मिट्टी के कटाव को रोकना और जैव विविधता में वृद्धि आदि शामिल हैं

जैव विविधता को भी मिलेगा बढ़ावा

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर डॉ. एनबी सिंह के अनुसार, इस पद्धति का उपयोग करके घने जंगलों का तीव्र विकास गर्मियों में दिन और रात के तापमान में अंतर को कम करने में मदद करता है। ये वन जैव विविधता को भी बढ़ावा देते हैं, मिट्टी की उर्वरता में सुधार लाते हैं और जानवरों एवं पक्षियों को आवास प्रदान करते हैं। इसके अलावा, इस पद्धति द्वारा निर्मित बड़े जंगल तापमान में 4 से 7 डिग्री सेल्सियस तक कमी ला सकते हैं और महत्वपूर्ण पर्यावरणीय लाभ प्रदान कर सकते हैं।

मियावाकी पद्धति के संदर्भ में

प्रसिद्ध जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी ने 1970 के दशक में इस पद्धति को विकसित किया, जो सीमित स्थानों में घने जंगल उगाने का एक क्रांतिकारी तरीका है। इसे प्रायः ‘पॉट प्लांटेशन विधि’ के रूप में जाना जाता है, इसमें पेड़ों और झाड़ियों को एक दूसरे के करीब लगाना शामिल है जिससे उनकी वृद्धि तेजी से हो सके। इस पद्धति में पौधे 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं, जिससे यह शहरी क्षेत्रों को एक व्यावहारिक समाधान प्रदान करता है।

यह पद्धति घने रूप से लगाए गए देशी प्रजातियों के मिश्रण का उपयोग करके प्राकृतिक जंगलों की नकल करती है। यह मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करती है, जैव विविधता को बढ़ाती है और वन विकास में तेजी लाती है। मियावाकी पद्धति का उपयोग कर लगाए गए पेड़ पारंपरिक जंगलों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं, तेजी से बढ़ते हैं और समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करते हैं।

शहरी परिवेश में, इस पद्धति ने प्रदूषित, बंजर भूमि को हरे पारिस्थितिक तंत्र में रूपांतरित कर दिया है। इसने औद्योगिक अपशिष्ट, धूल एवं दुर्गंध को कम किया है और वायु एवं जल प्रदूषण पर सफलतापूर्वक अंकुश लगाया है। इसके अलावा, यह मिट्टी के कटाव को रोकता है और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देता है, जिससे यह पर्यावरणीय जीर्णोद्धार के लिए एक प्रभावी उपकरण बन जाता है।

परियोजना में विभिन्न प्रकार की प्रजातियां शामिल की गई

इस परियोजना में विभिन्न प्रकार की प्रजातियां शामिल की गई हैं, जिनमें फल देने वाले पेड़ों से लेकर औषधीय एवं सजावटी पौधे शामिल हैं। परियोजना के अंतर्गत लगाई गई प्रमुख प्रजातियों मेंआम, महुआ, नीम, पीपल, इमली, अर्जुन, सागौन, तुलसी, आंवला और बेर शामिल हैं। इसके अलावा, गुड़हल, कदंब, गुलमोहर, जंगल जलेबी, बोगनविलिया और ब्राह्मी जैसे सजावटी एवं औषधीय पौधे भी शामिल हैं।


शेयर करें
advertisment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!