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आर के तिवारी
सागर

सुनो जी,आजकल माँ जी! जीजा जी के ऊपर अधिक ही प्रेम वर्षा रही हैं! रामलाल जी अपनी पत्नी कमला की बातें सुनकर बोले तुम कहना क्या चाहती हो? तब उनकी श्रीमती जी बोलीं देखिए जब से दीदी का विवाह हुआ है तब से माँ जी हम लोगों की कम ही फ़िक्र करतीं हैं आजकल तो वे जीजा जी को बहुत स्नेह कर रही हैं।
तब रामलाल जी बोले यार कमला तुम समझती नहीं हो!अरे भाई मैं माँ जी का बेटा हूँ तुम उनकी बहू हो इसलिए हम तो उनके अपने ही हैं और सोनू भी उनकी बेटी है इसलिए माँ का हम पर प्यार स्वाभाविक रहता ही है उसे दिखलाने की आवश्यकता नहीं होती। हम पर उनकी ममता हमेशा रहती है परंतु जीजा जी सोनू के पति हैं वे माँ के बेटे नहीं! दामाद हैं।
आज भले ही कोई कहे कि बहू बेटी के बराबर होती है और दामाद बेटे के बराबर होते हैं पर यह सिर्फ मन को बहलाने की बात होती है या यूँ कहें की आपस में कुछ समझौता बना रहे इसके लिए इतनी आत्मीयता के शब्दों का प्रयोग किया जाता है। यहाँ यह भी सत्य है कि हर जगह ममता का दिखावा नहीं होता पर उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है ।
अब देखा जाए तो माता-पिता अपनी बेटी को,अपने बेटे को कभी भी एकांत में या सभी के बीच भी डांट सकते हैं पर बहू को ऊंची आवाज में भी बात नहीं कर सकते चाहे फिर वह एकांत ही क्यों न हो, इसी तरह दामाद से भी ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकते। दामाद, दामाद ही रहता है बेटा नहीं बन सकता। इसके पीछे उन माता-पिता की मजबूरी भी कह सकते हैं जो कि उनकी बेटी उनके भरोसे ही जीवन भर के लिए छोड़ दी जाती है। अब माता-पिता की हमेशा यही सोच रहती है की दामाद या बेटी के ससुराल वालों से बेटी को कोई तकलीफ़ ना हो इसलिए वे अपने दामाद और दामाद के माता-पिता का सम्मान बखूबी करते हैं। वैसे भी हमारी संस्कृति में दामाद पूज्य होते हैं इसलिए समय-समय पर माता-पिता उनको स्नेहपूर्वक सम्मान देते हैं जिससे वे प्रसन्न रहें और उनकी बेटी का वे लोग हमेशा ख्याल रखें, उसके सुख-दुख की चिंता करें और थोड़ा मुस्कुराते हुए उनकी आखों में झांकते हुये बोले यार, तुम महिलाओं के सोचने का ढंग ही निराला है अब तुम्हारी माँ का ही देख लो वे भी तो मुझे कितना चाहतीं हैं हमेशा ही मुझे तरह-तरह के पकवान घर से बना-बना कर भेजा करती हैं साथ ही किसी न किसी बहाने तीज-त्यौहारो पर मुझे नये-नये कपड़े ला कर देतीं हैं।अरे मुझे ही क्या मेरे भाइयों को,मेरे माता-पिता को भी कितना सम्मान और समय-समय पर कपड़े देतीं हैं।
यह सब मेरी माँ या तुम्हारी माँ का ही हाल नहीं है यह हाल हर लड़की के माता-पिता का है। वे अब क्या करें बेटी के सुख के लिए यह सब करना पड़ता है। माँ की ममता अपरंपार है।
कल जब हमारी बेटी होगी और जब वह बड़ी होगी तब उसका भी हम विवाह करेंगे उस वक़्त माँ की ही तरह यह सब हमें भी करना होगा।
रामलाल की बातें सुनकर कमला बोली आप ठीक कह रहे हैं मुझे क्षमा करें। मैंने यहाँ तक सोचा ही नहीं तब रामलाल जी मुस्कुराते हुए बोले समय आने पर सभी को समझ आ जाती है इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं।
समाप्त


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