ज्योति शर्मा – सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को “अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस” मनाया जाता हैं । हमारे समाज में महिला का प्राचीन समय से ही विशेष महत्व रहा हैं। एक महिला कभी माँ, कभी पत्नी, बेटी- बहन न जाने कितने रिश्ते निभाती हुई अपने जीवन को व्यतीत कर देती हैं। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं के सम्मान , महिलाओं और पुरुषों में समानता लाने और महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत एक मज़दूर आंदोलन के रूप में हुई, जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र ने सालाना आयोजन की मान्यता दी। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का प्रारंभ वर्ष 1908 में हुआ ,जब अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में क़रीब 15 हज़ार महिलाएं सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थीं। ये महिलाएं काम के कम घंटों, बेहतर तनख़्वाह और वोटिंग के अधिकार की मांग के लिए प्रदर्शन कर रही थीं। महिलाओं के विरोध प्रदर्शन के एक वर्ष बाद 1909 मे सवर्प्रथम न्यूयॉर्क शहर में यह दिवस मनाया गया। इसके पश्चात प्रसिद्ध जर्मन एक्टिविस्ट क्लारा ज़ेटकिन के प्रयासों के बदौलत इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस ने साल 1910 में महिला दिवस के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानने की सहमति दी। इसके फलस्वरूप 19 मार्च 1911 को पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और जर्मनी में आयोजित किया गया। बाद में महिला दिवस की तारीख को साल 1921 में बदलकर 8 मार्च कर दिया गया। तब से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है।
भारत में प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को ‘ राष्ट्रीय महिला दिवस ’ स्वतंत्रता सेनानी व कवयित्री सरोजिनी नायडू का जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। साथ ही विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ भी मनाया जाता है। महिलाओं पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए प्रत्येक वर्ष 25 नवंबर को संपूर्ण विश्व में ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ भी मनाया जाता है।
यह सभी दिवस महिलाओं को समाज में समानता, सम्मान और उनके अधिकारों को दिलाने के लिए व महिलाओं को जागरूक करने के लिए मनाए जाते हैं परंतु इन सभी दिवस को मनाने मात्र से आज समाज में महिलाएं समानता, सम्मान अभी भी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर पा रही हैं । कभी महिलाएं घरेलू हिंसा, कभी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, छेड़खानी व अन्य तरीकों से हिंसा का शिकार हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार देश में 2018 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,78,277 मामले दर्ज किए गए ,जबकि वर्ष 2017 में आंकड़ा 3,59,849 था। कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लागू हो जाने के बाद से घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिली।
राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की 23,722 शिकायतें मिली , जो पिछले छह वर्षो में सबसे ज्यादा है । रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में जुलाई तक महिलाओं के खिलाफ हिंसा की 2,914 रिपोर्ट दर्ज हुई है। इस मामलों में घरेलू हिंसा, रेप, अपहरण और दहेज हत्या के मामले शामिल हैं वही इस वर्ष घटी रेप की जघन्य घटनाएं उन्नाव, हाथरस में ,बलरामपुर, झारखंड के दमुका मे घटित हुई ।
वही 2021 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों की लगभग 31,000 शिकायतें पिछले साल राष्ट्रीय महिला आयोग को प्राप्त हुईं, जो 2014 के बाद से सबसे अधिक हैं, जिनमें से आधे से अधिक उत्तर प्रदेश से हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा कि साल 2020 की तुलना में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शिकायतों में 30 फीसदी की वृद्धि हुई हैं।
ऐसी ही कई घटनाएं देश में लगातार हो रही हैं, जिनमें छोटी बच्चियों के साथ रेप की घटनाएं दर्ज हो रही हैं और कई ऐसी घटनाएं भी हैं जो दर्ज ही नहीं हो पाती हैं लेकिन फिर भी इस सब को रोकने और महिला सुरक्षा के लिए विशेष कदम नही उठाए जा रहे है। बस जब भी महिलाओं से सम्बंधित कोई दिवस मनाने की बात आती है तो महिलाओं को शुभकामनाओं को दे देने मात्र से बस सब कुछ सही है मान लिया जाता है, जबकि सच आज सभी के सामने मौजूद है ।
———-