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सागर । रानी अवन्तीबाई लोधी विश्वविद्यालय सागर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया । यह कार्यशाला बीए कर्मयोगी विषय पर राजभवन में होने वाले प्रदेश के समस्त कुलगुरू व कुलसचिव के एक दिवसीय सेमीनार से पहले सभी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की गई। कार्यशाला का विषय शैक्षणिक सदस्यों में कर्मयोगी बनने की भावना रहा। कार्यशाला का शुभारंभ सरस्वती पूजन एवं वेद मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। कार्यशाला में उपस्थित अतिथियों का स्वागत पौधा भेंट कर किया गया।

कार्यशाला के अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो. विनोद कुमार मिश्रा ने सर्वप्रथम श्विचार मंथनश् शब्द के तात्पर्य को व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा कि अच्छा वक्ता वही होता है जो श्रोताओं के मन को भी पढ़ लेता है। हमें सकारात्मक सोचना चाहिए तथा समस्या और समाधान दोनों पर चर्चा करना ही मंथन है। प्रत्येक व्यक्ति को सेवा का भाव ही उसे कर्मयोगी बनाता है। हमें शिक्षा और समाज को समझना होगा, उनकी समस्याओं को गिनाना नहीं बल्कि उनके समाधान खोजने होंगे। हमें अपनी दृष्टि को साफ रखना होगा। हम जो आज कर रहे हैं उसका परिणाम कल जरूर मिलेगा। उन्होंने श्रीमदभागवत गीता के श्लोक श्कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनश् को अपने जीवन में चरितार्थ करने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों की समस्याओं को सुनना होगा, समय की पाबंदियों पर ध्यान रखना होगा और अपने कर्तव्यों का सच्चे मन से पालन करना ही हमें कर्मयोगी बनाता है।

कार्यशाला का स्वागत वक्तव्य विश्वविद्यालय की कुलसचिव प्रो. शक्ति जैन ने किया। वक्ता के रूप में अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा विभाग, संभाग सागर की विशेष कर्तव्य अधिकारी डॉ. भावना यादव ने कर्मयोग का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि कर्म में लीन होना ही कर्मयोगी है।

कार्यशाला के विषय विशेषज्ञ के रूप में सर हरीसिंह गौर महाविद्यालय, सागर के प्राचार्य डॉ. अरविन्द जैन ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में परीक्षा संबंधी चुनौतियाँ विषय पर अपने वक्तव्य में विद्यार्थियों के प्रवेश से लेकर प्रश्नपत्र तैयार करवाना, परीक्षा परिणाम तैयार करवाना आदि में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला। साथ ही उनके निदान भी प्रस्तुत किये। कन्या स्नातकोत्तर उत्कृष्ट महाविद्यालय, सागर के प्राचार्य डॉ. आनंद तिवारी ने श्कर्मयोगी कैसे बनेश् तथा व्यक्ति का इस धरती पर जन्म कैसे हुआ? पर प्रकाश डालते हुये पंचतत्वों के सम्मिश्रण से मनुष्य का जन्म बताया।

प्रो. रेणुबाला शर्मा ने कहा कि बिना किसी फल की आकांक्षा के कर्म करना ही कर्मयोगी है। विश्वविद्यालय के वित्ताधिकारी श्री अभयराज शर्मा ने महान कर्मयोगियों के जीवन चरित्र और उनकी आदतों से प्रेरणा लेने का संदेश दिया। कार्यशाला के संयोजक डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में व्यवहारिक क्रियान्वयनश् विषय पर वक्तव्य पर देते हुए कहा कि एक ओर जहाँ रोजगार के अवसर पर ध्यान दिया गया है वहीं दूसरी ओर कौशल विकास और नवाचार को विकसित करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य है। डॉ. ब्रजेश रिछारिया ने कहा कि इन्द्रियाँ अर्जुन का प्रतीक और चेतना कृष्ण का जो कि हमें कर्म एवं सकर्म का बोध कराती हैं।

कार्यशाला का संचालन डॉ. अल्का पुष्प निशा ने किया तथा कार्यशाला समन्वयक डॉ. मिथलेश शरण चौबे ने आभार व्यक्त किया। उक्त कार्यशाला में सहायक कुलसचिव श्री पंचम सनौडिया एवं अमन अग्रवाल, प्रो. रजनी दुबे, डॉ. एम. के. मिश्रा, डॉ. मुकेश कुमार अहिरवार, डॉ. स्वर्णलता तिवारी, डॉ. भावना पटेल एवं अन्य महाविद्यालयों से आये हुए अतिथियों में प्रो. मधु स्थापक, प्रो. प्रतिमा खरे, प्रो. सरोज गुप्ता, प्रो. रंजना मिश्रा, डॉ. बिन्दु श्रीवास्तव, डॉ. डी. एन. नामदेव, डॉ. सत्या सोनी, डॉ. सुनील बाबू विश्वकर्मा, डॉ. अश्विनी सूर्यवंशी, डॉ. सिम्मी मोदी, डॉ. चंदन सिंह, श्री सुभांशु शुक्ला, डॉ. श्रद्धा सोलंकी, डॉ. उदित मलैया, डॉ. दिनेश अहिरवार, डॉ. सिद्धि त्रिपाठी सहित विश्वविद्यालय के कार्यालीन स्टॉफ एवं विद्यार्थियों की उपस्थिति रही ।


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