- आर के तिवारी,सागर
यह कहानी मोहन,सीमा और अशोक के बीच जो आपस में भाई-बहन और जीजा हैं कुछ समय बाद जिनके बीच रंजना आती है और फिर कहानी चारों के जीवन पर केन्द्रित हो जाती है।
दीदी!जीजा जी को समझा लीजिए अब ये बच्चे तो है नहीं! जो इन्हें वे हमेशा कुछ ना कुछ कहते रहें जब बच्चे थे तब अलग बात थी डांटना-डपटना चल जाता था पर अब वे बड़े हो गए हैं। उनका भी बोल बाला बड़ी-बड़ी सोसाइटी में हो गया है। बड़े-बड़े घरों के लड़के अब इनके मित्र हैं, इसके अलावा मेरे भाई, और अन्य मायके वाले भी अक्सर घर आते-जाते रहते हैं और जीजा जी हैं कि कभी टीवी बंद करने का या आवाज कम करने का कह कर डांटते हैं या जब उनके दोस्त या मेरे मायके वाले हंसी मजाक करते हैं तब भी डांटते हैं। देर रात तक लाइट जलती होती देखकर भी डपट देते हैं। अभी दो दिन पहले की ही बात है ये थोड़ी देरी से घर आए तब भी डांटते हुए बोले! मोहन! इतनी देर कहाँ लगा दी मैंने हमेशा कहा है घर समय से आया करो!पर ये चुप रहे इन्होंने कुछ नहीं कहा। अब आप ही बतलाइए यह कहाँ का न्याय है।
मैं आश्चर्य से रंजना का मुँह देखती रही और सोचती रही इसे क्या हो गया? और यह क्या कह रही है? कि जीजा जी को समझ लीजिए! मैं सोचने लगी इन्होंने मोहन से ऐसा क्या कह दिया जिससे यह उनकी शिकायत मुझसे कर रही है। मुझे जहाँ तक याद है इन्होंने मोहन से एक बेटे की ही तरह प्यार किया है। मैं तो उसकी बहन थी,पर यह बहनोई होते हुए भी एक बड़े भाई, एक पिता की तरह मोहन को चाहते थे। हाँं मेरा मोहन था भी बड़ा प्यारा वह जब तीन वर्ष का था जब मेरे माता-पिता का एक एक्सीडेंट में देहान्त हो गया था। मेरी शादी हो चुकी थी मोहन मुझसे दस वर्ष छोटा था। माता-पिता के देहांत के बाद मोहन की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई थी। मेरे पति भी बहुत ही समझदार और परिस्थिति को समझने वाले इंसान थे। उन्होंने जब देखा कि मोहन का दुनियाँ में मेरे सिवा और कोई नहीं है तो वे खुद ही मुझसे बोले थे। सीमा! मोहन की चिंता ना करना! वह तुम्हारा छोटा भाई ही नहीं मेरा साला भी है मैं उसे अपनी औलाद की तरह ही पालूंगा उस वक़्त उनके हृदय की विशालता देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए थे जो वे खुशी के आंसू थे। और जैसा अशोक ने कहा था उन्होंने उसकी परवरिश वैसी ही की । हाँ ऊपरी तौर पर वे सख्त जरूर दिखते थे पर थे नहीं उसे सख्ती से डांटते भी थे और जिसका कारण था कि कहीं मोहन अधिक लाड प्यार में बिगड़ ना जाए और जमाने वाले तो बैठे ही होते हैं उंगली उठाने के लिए कहेंगे कि बेचारा बिना मां-बाप की औलाद था सो पालन-पोषण कौन करता! बहन बहनोई कहाँ तक देख भाल करते माँ बाप की बात अलग होती है। और जिसका नतीजा यह हुआ कि मोहन ने अच्छी पढ़ाई की और सरकारी नौकरी भी लग गई अच्छे घर में विवाह भी हो गया उसकी अपनी दुनियां बस गई थी। फिर भी वह मेरे ही साथ मकान के एक हिस्से में अपनी पत्नी के साथ रहता था खाना हम सभी का एक ही साथ बनता था और सभी साथ बैठकर खाते भी थे।
अभी मोहन के विवाह को मुश्किल से छह माह ही हुए थे कि आज रंजना अशोक की शिकायत कर रही थी।
मैंने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया रंजना अपनी शिकायत कर अपने कमरे में चली गई ।
मैं सारे दिन इसी उधेड़बुन में रही कि अशोक ने मोहन से ऐसा क्या कह दिया कि उसका बुरा रंजना को लगा मैं सोचने लगी हो सकता है अशोक ने मोहन को कुछ ग़लत तरीके से डांट दिया होगा जो रंजना को पसंद नहीं आया। आखिर रंजना उसकी पत्नी जो है। अशोक शाम को जैसे ही घर आए आते ही हमेशा की तरह मुझसे बोले मोहन आ गया! मैंने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया तो वह मुझसे बोले तुम्हें क्या हुआ? क्या तबीयत ठीक नहीं है? मैंने फिर भी कोई जवाब नहीं दिया तो वह मेरे पास आए और मेरा हाथ पकड़ मुझसे बोले क्या बात है? पर मेरी आंखों में आए आंसुओं को देख घबरा कर बोले सीमा! क्या बात है? तुम रो क्यों रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या? तब मैंने कहा नहीं किसी ने कुछ नहीं कहा। पर आप मेरी कसम खाओ आज के बाद मोहन से कुछ नहीं कहोगे मेरी बात सुनकर वह बोले कुछ नहीं कहूंगा? मतलब क्या है तुम्हारा? क्या मैं उसे मारता पीटता हूँ! क्या कहता हूँ मैं? मैंने कहा! वह बड़ा हो गया है। शादीशुदा है। अब वह बच्चा नहीं है। जिस पर अशोक आश्चर्य करते हुए बोले क्या कह रही हो तुम? मोहन मेरा बेटा जैसा है। मैंने उसे अपनी जान से अधिक चाहा है। आज वह 22 वर्ष का हो गया। क्या? कभी मैंने उस पर हाथ उठाया! नहीं ना!पर आज तुम क्या कह रही हो! मैं हमेशा उसके लिए ही सोचा रहा कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाए तो मेरी जिम्मेदारी पूरी हो जाए। भगवान ने मुझे औलाद नहीं दी पर मैं मोहन को ही अपनी औलाद समझ कर खुश होता रहा। पर तुमने ऐसा क्यों कहा कि आप मोहन को कुछ नहीं कहा करें। क्या मोहन ने मेरी शिकायत की? तब मैंने कहा नहीं, मोहन मेरा भाई और आपका साला होने के साथ-साथ रंजना का पति भी है अब यदि कोई उसके पति को डांटेगा तो उसे बुरा नहीं लगेगा क्या? तब अशोक बड़ी लंबी सांस लेते हुए बोला वाह! यह बात है। अच्छा हुआ सीमा तुमने समय से मुझे बतला दिया कि मोहन पर मेरा नहीं रंजना का हक है। मैं तो दीवानों की तरह मोहन को प्यार करता रहा। खैर तुम चिंता मत करो मैं आज के बाद मोहन को कुछ नहीं कहूंगा। अभी अशोक ने इतना ही कहा था कि तभी मोहन, जो ऑफिस से आकर दरवाजे से ही हमारी बातें सुनकर वहीं ठहर गया था आया और अशोक के पैरों में गिरकर रोते हुए बोला नहीं जीजा जी! नहीं, ऐसा मत करना नहीं तो यह मोहन जीते जी ही मर जाएगा! मुझे आप और दीदी से बड़ी कोई दौलत नहीं। मैंने हमेशा आपको पिता और दीदी को माँ ही समझा है। यदि आप दोनों नहीं होते तो मैं भी नहीं रहता। मुझ अनाथ को कौन पालता हाँं जीजा जी रंजना क्या जाने! पर मैं समझता हूँ । मैं थोड़ा बड़ा हो गया था सब समझने लगा था। शायद जो मेरी माँ मेरी परवरिश करती उससे कहीं ज्यादा दीदी ने की है। मैंने भी दीदी को हमेशा माँ की ही तरह जाना है और आपको पिता की तरह। आपने मेरे बचपन से लेकर बड़े होने तक की सभी ज़रूरतें पूरी की हैं कैसे की हैं मैं नहीं जानता पर समझता हूँ,आपने अपने शौक पूरे नहीं किए होंगे मैं जानता हूँ आप दोनों कभी औरों की तरह बाहर घूमने तक नहीं गए! घूमना तो दूर शायद बाहर होटल में भी खाना खाने नहीं गए होंगे। दीदी ने हमेशा जरूरत के हिसाब से ही अपने लिए साड़ियां ख़रीदी औरों की तरह मैंने उनकी अलमारी में भरीं नहीं देखीं ठीक उसी तरह आपने भी जीवन भर दो जोड़ी कपड़ों में गुजारा किया वह सब मेरी जरूरतें पूरी करने के कारण, मुझे अच्छी तालीम दिला सकें उसके लिए आपने अपना घर खर्च और जेब खर्च काट कर मुझे ट्यूशन भी भेजा। और उसी का परिणाम है मैं आज एक काबिल और नौकरी वाला इंसान बन पाया। मैं समझता हूँ आपने मुझे साला नहीं बेटा ही समझा है। यह रंजना क्या जाने की आप लोग मेरे लिए क्या हो! मैंने ईश्वर को नहीं देखा पर समझा जरूर हूँ यदि वह है! तो बस आप लोगों की तरह ही होगा। बचपन में मैं बीमार भी हुआ होंगा तो समझ सकता हूँ आप लोगों पर क्या गुजरी होगी। आप लोगों की तो रोटी तक छूट जाया करती होगी दोनों रात-दिन मेरे बिस्तर के पास ही बैठे ईश्वर से मेरे ठीक होने की दुआ करते होंगे।मैं गीले कपड़े में ना सोऊं उसके लिए दीदी ने अपनी साड़ी तक का पल्लू मेरे लिए बिस्तर पर बिछा दिया होगा और खुद गीले में सोती रही होगी। हाँ आपने जब-जब भी मुझे डांटा होगा वह सब सिर्फ मेरे अच्छे के ही लिए। यह बात ना मेरे दोस्त समझ पाएंगे और ना रंजना के भाई और अन्य मायके वाले। रंजना को आप माफ़ करना वह नादान है और यहाँ अभी उसे कितना सा ही वक़्त हुआ है मुश्किल से चार-पांच माह हाँं दीदी थोड़ा वक़्त लगेगा वह भी समझ जाएगी। यहाँ मोहन भावनाओं में जाने क्या-क्या कहता जा रहा था पर उसे नहीं पता था कि रंजना भी अपने कमरे के दरवाजे से सटी खड़ी-खड़ी उसकी सारी बातें सुन रही थी,सुन ही नहीं रही थी अपितु अपनी ग़लती का अहसास होते ही उसकी आंखों से आंसू भी बह रहे थे और जब उसके जज्बात भी हद पार कर गए तो वह भी दौड़कर अपने जीजा जी के पैरों में गिरकर माफ़ी मांगने लगी तब मैंने उसे उठाकर अपने सीने से लगाकर कहा! रोते नहीं! ग़लती हमेशा छोटों से ही होती है और हमेशा बड़े उन्हें माफ़ कर देते हैं। यह सब देख अशोक को लगा ईश्वर ने उसका घर टूटने से बचा लिया नहीं तो समाज के लोग यही कहते वह “पिता नहीं जीजा जी” थे।