विकसित भारत के लिए समावेशी विकास और समगतिशील विकास के सभी पक्ष महत्वपूर्ण - प्रो दिवाकर सिंह राजपूत
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सागर। “आजादी के जब 100 वर्ष पूरे हों यानि वर्ष 2047 तक हमारा देश पूर्ण विकसित हो चुका हो, इसके लिये हम सबको एक साथ समन्वित रूप से प्रयास करना होगा। विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने के लिए समावेशी विकास की बात बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है” प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में अपने विचार दिए।

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा महाराष्ट्र के वर्धा समाज कार्य संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिवस सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्य प्रदेश के मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने कहा कि “शिक्षा, स्व-रोजगार, संस्कृति, स्वास्थ्य, सुरक्षा, सम्पर्क और सम्वाद इन सात ‘स’ पर केन्द्रित योजनाओं के क्रियान्वयन को साकार करते हैं तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि विकास की स्थापना में हमारा देश विश्व में शीर्ष पर होगा। हमको गाँव की ओर चलना होगा, जल जंगल जमीन को सम्मान देना होगा, बच्चों बुजुर्गों महिलाओं दिव्यांग और कमजोर तबके के लोगों को संभालना होगा। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में जीतने के लिये स्थानीय संसाधनों का समुचित उपयोग, मानव संसाधन प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी और दूरदर्शिता के साथ आत्मबल को भी समझने की जरूरत है।”
प्रोफेसर राजपूत ने इस हेतु देश की हरएक इकाई के समगतिशील विकास के लिये प्रारूप ERPA मॉडल को प्रस्तुत किया। जिसमें शिक्षा, सुधार, सहभागिता एवं जागरूकता से संबंधित विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला।
पेनल डिस्कशन में विषय विशेषज्ञ के रूप में प्रो दिगंबर तंगलवाड, डॉ भावना वर्मा, डॉ राहुल गुप्ता, डॉ गौरव गौर ने सारगर्भित व्याख्यान दिये। सत्र की सह अध्यक्षता प्रोफेसर जयंत उपाध्यक्ष ने की और राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक प्रो बंशीधर पांडे विषय की रूपरेखा रखी। कार्यक्रम में ऑनलाइन और ऑफ लाइन माध्यम से देश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों से विद्वतजन सहभागिता किये।


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