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ज्योति शर्मा – हर वर्ष विश्वभर में 3 मार्च के दिन विश्व वन्यजीव दिवस(world wildlife day ) मनाया जाता है। विश्व वन्यजीव दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य विश्वभर में वन्यजीवों की सुरक्षा तथा वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रति लोगों को जागरूक करना है। आज के दिन विश्वभर में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए जागरुकता अभियान और कई कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता हैं। हर वर्ष अलग-अलग थीम के माध्यम से लोगों में जागरुकता फैलाई जाती है। यह थीम लुप्त हो रहे जीवों और प्राकृतिक वनस्पतियों के संरक्षण से संबंधित होती है।

     20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 68वें सत्र में 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस घोषित किया था। इसे थाईलैंड की ओर से विश्व के वन्यजीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मनाने के लिए प्रस्तावित किया गया था। साल 1872 में वन्य जीवों को विलुप्त होने से रोकने के लिए सबसे पहले जंगली हाथी संरक्षण अधिनियम (वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट) पारित किया गया था।

    वर्ष 2022 में विश्व वन्यजीव दिवस की थीम ‘पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना (Recovering Key Species For Ecosystem Restoration)’है । वर्ष 2021 में विश्व वन्यजीव दिवस की थीम ‘वन और आजीविकाः लोगों और ग्रह को बनाए रखना’ था। वर्ष 2020 में इसकी थीम ‘पृथ्वी पर जीवन कायम रखना’ रखी गई थी। इससे पहले साल 2019 में ‘पानी के नीचे जीवन: लोगों और ग्रह के लिए’ की थीम पर विश्व वन्यजीव दिवस का आयोजन हुआ था। साल 2018 में शेर, बाघ जैसी बिल्ली की प्रजातियों को शिकारियों के खतरे से बचाने के लिए ‘बड़ी बिल्लियां-शिकारियों के खतरे में’ की थीम रखी गई थी। इस सब के बाबजूद  प्रदूषण में लगातार बढ़ोतरी होने के कारण वातावरण पर इसका ख़तरनाक प्रभाव पड़ रहा हैं । जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस भी मनाया जाता हैं। इसके लिए IUCN एक सूची जारी करता है जिसे ” रेड डाटा बुक “के नाम से जाना जाता है इसमें सभी प्रकार के जीवों की प्रजातियों का रिकार्ड रखा जाता है।राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस 2020 रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी पर हर 20 मिनट पर इंसानों की आबादी में जहा 3500 का इज़ाफा हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर जीव जंतुओं की एक प्रजाति लुप्त हो रही है।हालात ऐसे ही रहे तो अगले 30 सालों में धरती की 20 फीसदी प्रजातियां हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएंगी।

      भारत में वन्य जीवों के विलुप्त होने की एक उच्च संभावना में भारतीय हाथी , बंगाल टाइगर ,भारतीय शेर ,भारतीय गेंडा ,गौर ,शेर जैसी पूंछ वाला अफ्रीकी लंगूर ,तिब्बती हिरन, गंगा नदी डॉल्फिन, नील गिरि तहर, हिम तेंदुए, काली बत्तख ,ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, जंगली उल्लू , सफेद पंख वाली बत्तख ,काली गर्दन वाला सारस , पश्चिमी ट्रैगोपैन -गिद्ध ,ओलिव रिडले कछुआ आदि लुप्त होने की कगार पर हैं। इनके लुप्त होने की वजह में आज, प्राकृतिक परिदृश्य के विनाश में मानव हस्तक्षेप एक प्रमुख वजह है। प्रदूषण , तस्करी, शिकार और अवैध शिकार करने से दुनिया भर में जानवरों और मछलियों की संख्या पर काफी बुरा प्रभाव डाल रहे है।
      वल्र्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि समाप्त हो रहे जीवों में जंगली जीव ही नही बल्कि पहाड़ों, नदियों व महासागरों में रहने वाले जीव भी शामिल हैं। 1970 से अब तक इन जीवों की संख्या में तकरीबन 80 फीसदी की कमी आई है। पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का मानना है कि जानकारी के अभाव, लालच, कम जोखिम और अधिक पैसे कमाने के मौके के चलते वन्य जीव अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है। इस मामले में भारत बड़ा हॉटस्पॉट बन कर उभरा रहा है। बाघ और तेंदुए की खाल, उनकी हड्डी और शरीर के अन्य अंग, गैंडे के सींग, हाथी दांत, कछुए, समुद्री घोड़े, सांप का विष, नेवले के बाल, सांप की खाल, कस्तूरी मृग की कस्तूरी, भालू का पित्त और पिंजरे में रखे जाने वाले पक्षी जैसे पेराफीट ,मैना और मुनिया की तस्करी बढ़ी है। वर्ष 2018 में ट्रैफिक इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 से 2017 तक भारत में कम से कम 5772 पैंगोलिन को अवैध व्यापार के रास्ते पकड़ा गया। पेटागोनियन समुद्री घोड़ा उन तीन समुद्री घोड़ो में से एक है जिसे उसके औषधीय गुणों के कारण तस्करी का शिकार बनाया जा रहा है। भारतीय स्टार कछुए की तस्करी विश्व स्तर पर अब सबसे अधिक की जाती है।वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने देश भर में ऐसे 1900 से ज्यादा शिकारियों की पहचान की है, जो वन्यजीवों के शिकार में लिप्त हैं। देश में सबसे ज्यादा गैंडे के 239 शिकारी हैं। इसके अलावा 186 पैंगोलिन के शिकारी, 185 टाइगर के शिकारी, 170 तेंदुए के शिकारी, 134 कछुए और 37 हिरन के शिकारी हैं। चार साल में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने 1800 से ज्यादा जब्तियां की हैं।

         राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority – NTCA) के अनुसार, 2021 में भारत में लगभग 126 बाघों की मौत हुई है। एनटीसीए के मुताबिक, इस साल मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 44 बाघों की मौत हुई । उसके बाद 26 मौतों के साथ महाराष्ट्र दूसरे और 14 मौतों के साथ कर्नाटक तीसरे नंबर पर है।

वाइल्ड लाइफ़ ट्रेड मॉनिटरिंग नेटवर्क ‘ट्रैफ़िक’ के अनुसार दुनिया के अलग-अलग देशों में हुए लॉकडाउन का वन्यजीव संरक्षण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। लॉकडाउन के कारण वन्य जीव संरक्षण के काम से जुड़े स्टाफ़ की गतिविधियां भी बाधित हुईं और यह उन लोगों के लिए सुनहरा मौक़ा साबित हुआ जो जंगली जानवरों का अवैध शिकार करते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक़, लॉकडाउन में जंगली जानवरों के अवैध शिकार के 88 मामले सामने आए जबकि लॉकडाउन शुरू होने से पहले ये आंकड़ा 35 था। कई अन्य वन्य जीवों के शिकार के आंकड़े भी हैं । एक तरफ जहां वन्य जीवों के संरक्षण के लिए विश्व वन्य जीव दिवस व अन्य संरक्षण के दिवस और जागरूकता अभियान मनाये जा रहे हैं तो दूसरी तरफ इस तरह के आंकड़े जो हमारे प्रकृति सम्पदा का हिस्सा वन्य जीवों के जीवित रहने के संकट को हमारे सामने दर्शाते हैं जिससे हमें ये सभी संरक्षण दिवस पर सोचने को मजबूर करते हैं कि कोई कार्यक्रम या थीम को आयोजित कर लेने से मात्र वन्य जीवों का संरक्षण किया जा सकता हैं ? या फिर क्या इसके लिए सरकार और क़ानून का रुख सख़्त होना आवश्यक हैं?


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