“वैश्विक मंच पर हिंदी का गौरव”
अभिव्यक्ति/ ज्योति शर्मा
10 जनवरी का दिन प्रत्येक वर्ष हिंदी भाषा के उदात्त गौरव और उसके वैश्विक विस्तार का प्रतीक बनकर हमारे समक्ष आता है। विश्व हिंदी दिवस, एक ऐसा पर्व है जो न केवल हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है, बल्कि यह भाषा के माध्यम से विश्वबंधुत्व की भावना को जागृत करता है। यह दिवस भारतीय मनीषा की उस अखंड परंपरा को सजीव करता है, जिसमें भाषा केवल संवाद का माध्यम न होकर, आत्मा का विस्तार और विचारों का सेतु बनती है।
हिंदी: एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत
हिंदी भाषा की जड़ें वैदिक संस्कृति और संस्कृत व्याकरण के विशाल भंडार में विद्यमान हैं। यह भाषा अपने आप में सहजता, सरलता और गहनता का अद्भुत समन्वय है। हिंदी साहित्य में तुलसी, कबीर, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा और दिनकर जैसे मनीषियों ने इसे न केवल साहित्यिक ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि इसे मानवीय संवेदनाओं का स्वर भी प्रदान किया। हिंदी की काव्यात्मकता, उसकी लयात्मकता और उसमें निहित दर्शन इसे विशिष्ट बनाते हैं।
वैश्विक परिदृश्य में हिंदी का उदय
आज हिंदी अपनी मातृभूमि की सीमाओं से परे, विश्व के कोने-कोने में गूंज रही है। प्रवासी भारतीयों ने इसे मॉरीशस, त्रिनिदाद, फिजी, सूरीनाम और अन्य देशों में पल्लवित और पुष्पित किया है। वर्तमान समय में, हिंदी डिजिटल युग के माध्यम से विश्व भाषा के रूप में उभर रही है। सिनेमा, साहित्य, और सोशल मीडिया ने इसे नई पीढ़ी के हृदय तक पहुंचाने का सार्थक प्रयास किया है।
हिंदी के समक्ष चुनौतियां और समाधान
हिंदी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती उसकी जड़ों से विमुखता है। अंग्रेज़ी के अंधानुकरण ने कहीं न कहीं हमारी भाषा के प्रति सम्मान को कम किया है। लेकिन, हिंदी अपनी आत्मशक्ति से इस चुनौती का समाधान करने में सक्षम है। आवश्यकता इस बात की है कि इसे साहित्य, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुदृढ़ बनाया जाए।
हिंदी का भविष्य: हमारी जिम्मेदारी
विश्व हिंदी दिवस हमें यह अवसर प्रदान करता है कि हम इस भाषा की समृद्धि को आत्मसात करें और इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करें। हिंदी केवल संवाद की भाषा नहीं, बल्कि भावों, संस्कारों और परंपराओं का जीवंत दस्तावेज़ है।
“हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तां हमारा”—यह केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना का प्रतिबिंब है। हिंदी दिवस का यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि अपनी भाषा के प्रति सम्मान और उसके प्रचार-प्रसार में योगदान देना हमारा नैतिक दायित्व है।
“हिंदी केवल भाषा नहीं, यह हमारी आत्मा है। इसे सहेजना और आगे बढ़ाना हमारा दायित्व है।”
