लेखक : हेमंत आजाद
स्वतन्त्र पत्रकार एवं स्तंभकार
भारत भूमि के एक ऐसे महान संत जिन्हे भक्ति भाव, सत्य, कर्म, के लिए जाना जाता है जिनकी भक्ति भाव भजन दोहों को सभी धर्म संस्कृति सम्मान देती हैंI भारत भूमि के ऐसे संत जो (मोची) चमड़े के जूते बनाने का कार्य करते थे और उनकी भक्ति भाव भजन दोहों ने उन्हें संत श्री से शिरोमणि बना दिया I
जिन्हें महारानी मीरा बाई अपना गुरू मानती थीं जिनके विचारों काव्य को गुरू ग्रंथ साहिब में सम्मिलित किया गया I ऐसे संत रविदास जी जिनको सिक्ख गुरु मै सम्मालित किया ऐसे महान संत रविदास जी थेI
गुरू रविदास जी का जन्म – संत रविदास जी का जन्म 13वी सदी में इतिहास अनुसार 1376 -7 7 मै उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के गोवर्धनपुर दफी में हुआ इतिहास अनुसार उस समय भारत में मुगल शासन काबिज़ था और भारत में हिन्दू पर चारों तरफ अत्याचार, गरीबी, अशिक्षा का बोल बाला था I
भारत के हिंदू को धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता था। परंतु सदगुरु रविदास जी ने सदैव जात पात का घोर खंडन किया तथा आत्म ज्ञान और ध्यान कर्म का मार्ग दर्शन कराया।।
संत शिरोमणि रविदास जी के सदमार्ग दोहों में अंश अध्याय उपदेश इस प्रकार रहे
गुरू रविदास जी कहते हैं
ऐसा चाहूं राज मै।।
मिले सबन को अन्न।।
छोटे बड़े सम बसे।।
रविदास रहे प्रसन्न।।
अर्थात् – मै ऐसा राज्य देखना चाहता हू जहां सभी मानव जीवन के लोगों को खाने रहने समान रूप से मिले जहा भेद भाव जात पात ना रहे जहां मानव पर शासक बनने का विचार धारा ना हो
मानव जाति मै कोई पराधीन ना हो।।
रैदास जाति मत पुसाई।।
का जात। का पात।।
ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद्र।।
सबन की एक जात।।
मानव जीवन में किसी भी व्यक्ति के रंग भेद भाव जाति पाती को नही पूछना चाहिए ना ही मानव को जाति रोग का बखान करना चाहिए क्योंकि इस संसार में सभी की एक ही जाति धर्म है और वो मानव जाति ही है।
रविदास हमारो राम जी।।
दशरथ करि सुत नाही।।
राम हमुओ माहि रमि रहयो।।
बिसब कुट बह माहि।।
गुरू रविदास जी कहते हैं कि राम नाम तो सभी के हदय में वास करते हैं।।
राम अकेले राजा दशरथ के नही ना सीता माता के राम तो कण कण में वास करते हैं।।
जात पात के फेर में।।
उरझी रहे सब लोग।।
मनुष्यता को खात है।।
रविदास जात को रोग।।
गुरू रविदास जी कहते हैं की जात पात में उलझे हुए लोग एक बीमारी के समान है जो निरन्तर ये भेद भाव जात पात को बढ़ाते रहें हैं।।
जिससे समाज में भाई चारा एकता एवं अखंडता संप्रभुता को हानि करते हैं।।
अतः मानव को जाति पति भेद भाव की भावना से दूर रहना चाहिए।
मानव जाति वर्ग को एकता अखंडता संप्रभुता भाई चारे और समता मूलक समाज कल्याण की भावना को जन जागृति हमे सद गुरु रविदास जी के काव्य भजन दोहों में प्रेरित करते हैं।।