फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ-साथ आंवले के पेड़ की पूजा भी की जाती है. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है. लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण है. इस एकादशी को आमलक्य एकादशी भी कहा जाता है.
आमलकी एकादशी फाल्गुन मास में मनाई जाती है इसलिए इसे फाल्गुन शुक्ल एकादशी या रंगभरी ग्यारस भी कहा जाता है। आमलकी एकादशी के दिन भक्त आंवला के पेड़ का पूजन करते हैं . माना जाता है की भगवान विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा जी को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है।
इस बार आमलकी एकादशी पर बना खास योग
आमलकी एकादशी तिथि 13 मार्च को सुबह 10:21 बजे से से 14 मार्च की दोपहर 12:05 मिनट तक रहेगी. और इसका व्रत आज यानी कि 14 मार्च को रखा जाएगा. ज्योतिष के मुताबिक आमलकी एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है, जो कि बेहद शुभ माना जा रहा है.