बिट्टू का फ़ैसला
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सागर / आर के तिवारी

 यार गुरुवर देखो,रामलाल जी ने कुछ अपनी जेब में रख लिया है। गुरुवर ने मुझसे कहा क्या रख लिया है?और यहां रखने को क्या रखा है? यहाँ भोजन का कार्यक्रम चल रहा है, सभी लोग भोजन कर रहे हैं। मैंने फिर कहा नहीं-नहीं मैंने देखा है रामलाल जी सबकी नजरें चुराकर अपनी जेब में कुछ रख रहे थे, पर यह नहीं पता क्या है। तब तक हमारी बातें वहां भोजन कर रहे अन्य व्यक्तियों ने भी सुन ली थीं तो उनके भी मन में जिज्ञासा हुई कि रामलाल जी ने क्या रखा है? गुरुवर मुझसे बोले यार पंडित जी रामलाल जी को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं वे गरीब जरूर हैं पर चोर या बेईमान नहीं। मैं फिर भी अपनी बात पर अड़ा रहा तब वहां उपस्थित लोग जो रामलाल जी से परिचित नहीं थे वे भी जिद्द करने लगे कि जरूर कोई वस्तु उन्होंने चुराई है तभी तो सभी लोग कह रहे हैं और इसी जिद्दम जिद्द में किसी ने रामलाल जी से तलाशी देने को कहा जिस पर रामलाल जी अपना सर झुकाए खड़े रहे तब मैंने भी कहा हां हां आप तलाशी दीजिए जिस पर गुरुवर हम सभी से बोले आप लोग शांत रहिए और “रामलाल जी से कहा क्या बात है रामलाल जी? यह लोग आपसे कुछ पूछ रहे हैं,” बतलाइए आपने अपने जेब में क्या रखा है? तब रामलाल जी ने अपनी आंखों में आंसू लाते हुए अपनी जेब में हाथ डालकर बाहर निकाला जिसे देखकर हम सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि रामलाल जी के हाथ में कोई सोने या चांदी की वस्तु नहीं थी अपितु चार पूरी ही थीं हम सब उनकी आंखों में देख रहे थे और रामलाल जी कह रहे थे गुरुवार मैंने चोरी नहीं की आज दो दिन से मेरे बच्चों को खाने को कुछ नहीं मिला, मैं तो यहां आप सभी के साथ डिनर कर रहा हूं पर मेरा छोटा सा बेटा घर पर भूखा है। बस उसी के लिए ऐ “चार पूरियां” आप सब से छुपा कर जेब में रख ली थीं । “अब आप चाहे इसे मेरी चोरी कहो या मेरी मजबूरी कहो औलाद भूखी रहे और मैं पेट भर खाऊं  मेरी आत्मा नहीं मानी”

 “रामलाल की बातों को सुन और हाथों को देख हम लोगों ने अपनी नजरें झुका ली”

और गुरुवर मेरी ओर अजीब सी नज़रों से देखने लगे जैसे कह रहे हों आप कितने ओछे स्तर के आदमी हो।

  समाप्त


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